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आवाज़ में शोर की छंटाई

१४ दिसम्बर २००९

किसी मशीन की गड़गड़ाहट की भयानक आवाज़, कोई देर तक सुने तो उसके कान फट जाएं. अब इसे ख़त्म करना है तो इसी की एक प्रतिलिपि हमें तैयार करनी पड़ेगी. यानी इसी के समान और समांतर एक तरंग पैदा करना, जिसे एंटी न्वॉयज़ कहते हैं.

शोर के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी होते हैं.तस्वीर: AP

शोर दरअसल हवा में तैरती हुए एक दबाव तरंग है. प्रति शोर या एंटी न्वॉयज़ उस तरंग की एक छाया छवि है यानी मिरर इमेज है. एक उसी के बराबर और विपरीत एक कंपन या वाइब्रेशन. जब शोर और उसकी मिरर इमेज यानी प्रति शोर टकराते हैं तो वे मिलते हैं खुद को मिटाते हुए जिसे विज्ञान की भाषा में डेस्ट्रक्टिव इंटरफेरेंस कहा जाता है.

एंटी न्वॉयज़ पैदा करने के दो तरीक़े हैं. एनालॉग यानी गैर डिजिटल तरीक़ा वैक्यूम ट्यूब तकनीक के इस्तेमाल से. जो कुछ कुछ सीसॉ यानी ऊपर नीचे जाने वाले झूले की तरह वाली तकनीक.

विधि के ज़रिए एक लाउड स्पीकर जो आती हुई ध्वनि तरंगों के उठते ही हवा का ज़ोर फेंकता है. जैसे ही ध्वनि तरंग बैठती हैं वह हवा वापस खींच लेता है. इस विधि के लिए ध्वनि के सोर्स के पास ही न्वॉयज़ कैंसिलेशन वाला स्पीकर रखना पड़ता है. उसके ऑडियो का लेवल भी शोर भरी ध्वनि के सोर्स जैसा होना चाहिए.

तस्वीर: AP

दूसरा तरीक़ा है डिजीटल, जिसमें ध्वनि तरंगों को अंकीय बौछार के रूप में बदल दिया जाता है एक सिगनल प्रोसेसर की मदद से. उन अंकों की मदद से कम्प्यूटर फ़ौरन मिरर इमेज तरंगों यानी एंटी न्वॉयज़ वेप्स की फ्रिक्वेंसी और उसके आयाम की गणना कर लेता है. ये विशिष्टताएं फिर किसी भी सामान्य स्पीकर को भेजी जाती हैं और हवा में प्रसारित कर दी जाती हैं.

शोर भरी ध्वनियों से निपटने का बाज़ार अब फैलता जा रहा है. अमेरिका और यूरोप में क़रीब छह कंपनियां एंटी न्वॉयज़ सिस्टम बेच रही हैं. ध्वनियों की विकृति दूर करने के लिए अब एलेक्ट्रॉनिक मफ़लर जैसे उपकरण भी सामने आ रहे हैं. एक तरफ़ तकनीक की दुनिया में ये कोशिशें हैं लेकिन इसका मुक़ाबला तकनीक के विकास के दूसरे रूपों से है. वैज्ञानिक कहते हैं कि यह अजीब विरोधाभास है. उनका कहना है कि औद्योगिक पर्यावरण जिस तरह से फल फूल रहा है वह नाज़ुक तकनीकी के प्रति ज़रा कम संवेदनशील है. यानी भारी मशीनों के बीच एंटी न्वॉयज़ तकनीकें ज़्यादा देर नहीं टिक पाती.

ज़ाहिर है कोई भी ऐसी ध्वनि को सुधारने की विधि परफ़ेक्ट नहीं है. डिजीटिल तकनीक पंखों और टरबाइनों जैसी दोहराव वाली शोर ध्वनियों के साथ तो बेहतर काम करती हैं लेकिन अचानक पैदा हुए और छितरे हुए कोलाहल को वे नहीं रोक सकतीं. एनालॉग सिस्टम इस तरह की आवाज़ों को थोड़ा सुधार देता है लेकिन वह लो फ्रिक्वेंसी की ध्वनियों को भी मिटा देता है फिर वे अच्छी हों या बुरी. और जानकारों का कहना है कि अभी सीटी सरीखी पैनी ध्वनि और कर्कश आवाज़ों की ख़राबियों को दुरुस्त करने वाली बाज़ार में कोई भी तकनीक नहीं है.

अब ऐसी आवाज़ों का क्या किया जाए. तो वैज्ञानिक यह भी सलाह देने में देर नहीं करते कि करना क्या है कानों में अगुंली ठूंस दीजिए और मुमकिन हो तो वहां से हट जाइए.

रिपोर्ट: एजेंसियां/एस जोशी

संपादन: ए कुमार

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