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आवा आदिवासियों के अस्तित्व की जंग

२३ अगस्त २०१३

आदिवासियों की अपनी अलग ही दुनिया है, जिसमें वे खुश हैं. लेकिन खुद को सभ्य कहने वाले इंसान उन्हें चैन से नहीं रहने देते. ब्राजील के अमेजन जंगलों में रहने वाले आवा आदिवासियों के साथ भी ऐसा हो रहा है.

तस्वीर: Survival International/Domenico Pugliese

ब्राजील की खूबसूरत अमेजन घाटी के पीछे कुछ ऐसा भी है जहां आम तौर पर दुनिया की नजर नहीं जाती. यहां बसता है शिकारी आदिवासी समुदाय आवा. बाहरी दुनिया से बिलकुल अलग-थलग करीब 450 आदिवासी यहां रहते हैं. इन आदिवासियों ने पूरी तरह जंगलों में रहना सीखा है. उन्हें जीने के लिए वर्षावनों की जरूरत है. उनकी जिन्दगी यहां मिलने वाले फल पौधों और जानवरों के भरोसे चलती है. जर्मनी में मारबुर्ग यूनिवर्सिटी के रिसर्चर वोल्फगांग कांप्फहामर इन आदिवासियों पर काम कर रहे हैं. उनका कहना है कि वक्त के साथ बड़ा बदलाव आया है, "यह सब जानते हैं कि अमेजन बहुत बड़ा वर्षावन होने की छवि के उलट ऐसा इलाका है, जहां कम पोषक तत्व मिलते हैं. इसका मतलब यह है कि यहां के संसाधन दूर दूर के इलाकों तक फैले हैं. इसे हासिल करने के लिए बड़े इलाके में घूमना पड़ता है. सिर्फ दूरी के हिसाब से ही नहीं, वक्त के हिसाब से भी."

आवा की सुरक्षित जमीन का एक तिहाई हिस्सा लकड़ी माफिया और घुसपैठियों की नजर हो चुका है.तस्वीर: Toby Nicholas/ Survival

बढ़ती मुश्किलें

वक्त के साथ इनकी मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं. आवा आदिवासियों के इलाके में घुसपैठ हो रही है. लकड़हारे यहां आकर लकड़ियां काट रहे हैं और लोगों को भागना पड़ रहा है. जंगलों को नष्ट किया जा रहा है ताकि यहां मवेशी चर सकें. इतना ही नहीं, यहां एक पूरे समुदाय की बुनियादी जरूरतों को ही जला दिया गया. गैरकानूनी लकड़ी तस्करों को सरकार का भी कोई डर नहीं. आवा की सुरक्षित जमीन का एक तिहाई हिस्सा लकड़ी माफिया और घुसपैठियों की नजर हो चुका है.

आवा आदिवासियों की जिन्दगी यहां मिलने वाले फल पौधों और जानवरों के भरोसे चलती है.तस्वीर: Fiona Watson/Survival

आवा आदिवासियों के लिए काम करने वाली संस्था सरवाइवल इंटरनेशनल को फिक्र है कि अगर कुछ किया नहीं गया तो आवा आदिवासियों का पूरा तंत्र बिगड़ सकता है और पर्यावरण का नुकसान अलग होगा. वोल्फगांग कंफहामर को भी यह चिंता सता रही है, "हम अपने पश्चिमी समाज में देखें तो मुझे नहीं लगता कि हम अगले दशकों तक भी आदिवासी समाज जैसे मूल्य हासिल कर पाएंगे. जहां तक उनका कुदरत के साथ रिश्ते का सवाल है और जहां तक उपभोक्ता मानसिकता का सवाल है." हिफाजत के लिए सरकार का दखल जरूरी है. नहीं तो आवा जाति के हंसते, मुस्कुराते चेहरे इतिहास बन जाएंगे.

रिपोर्ट: आभा मोंढे

संपादन: ईशा भाटिया

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