आसमां जहांगीर को "निशान-ए-पाकिस्तान"
२३ मार्च २०१८पाकिस्तान के राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने शुक्रवार को पाकिस्तान दिवस के मौके पर 141 पाकिस्तानी नागरिक और विदेशी नागरिकों को सम्मानित किया. विज्ञान, कला, साहित्य, खेल, मीडिया के क्षेत्र में योगदान देने वाले ऐसे नागरिकों को हर साल 23 मार्च के दिन सम्मानित किया जाता है. लेकिन इस बार सम्मान पाने वालों में सबसे खास नाम रहा आसमां जहांगीर का. मानवाधिकारों और लोकतंत्र के लिए पूरी उम्र काम करने वाली आसमां को मरणोपरांत यह सम्मान मिला है. शुक्रवार को सरकार ने उन्हें "निशान-ए-पाकिस्तान" सम्मान से नवाजा. 11 फरवरी को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हुआ था.
1952 में लाहौर में जन्मी आसमां के लिए अधिकारों की लड़ाई आसान नहीं रही. कई मौकों पर उन्हें डराया-धमकाया गया और उनसे मार-पीट भी की गई. एक बार आसमां ने दावा किया था कि पाकिस्तान की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसी आईएसआई उन्हें जान से मारने की कोशिश कर रही है. आसमां पाकिस्तान की सेना की खुलकर आलोचना करती थीं. देश में लोकतंत्र के लिए आवाज बुलंद करने वाली आसमां को 1983 के दौरान नजरबंद भी किया गया. परवेज मुशर्रफ के कार्यकाल में उन्हें फिर से हिरासत में लिया गया.
आसमां जहांगीर ने कई मौकों पर सरकार के फैसलों के खिलाफ आवाज उठाई. उनकी मौत के बाद पाकिस्तान में एक चिंता भी नजर आती है. चिंता यही कि कौन अब आसमां की विरासत को आगे बढ़ाएगा, वो भी एक ऐसे समाज में जहां महिलाओं की स्थिति अब भी चिंताजनक है.
महिलाओं के अधिकार
आसमां ने देश में पुरुष प्रधान समाज के वर्चस्व के खिलाफ आवाज उठाई थी. वो भी तब जब महिलाओं के लिए राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में जगह बेहद ही सीमित थी. 1980 के दौरान, आसमां के काम को एक वकील और कार्यकर्ता के तौर पर पहचान मिली. उनकी मदद से देश में "द वूमेन एक्शन फॉरम" बनाया गया था.
इस्लामाबाद में मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली नसरीन अजहर कहती हैं कि उस वक्त राजनीतिक दल प्रतिबंध झेल रहे थे तो मीडिया सेंशरशिप का दौर देख रहा था. नसरीन मानती हैं कि देश में लोकतंत्र के लिए होने वाले संघर्ष में महिलाओं की आवाज हमेशा ही मुखर रही है. अजहर कहती हैं, "पिछले बरसों में पाकिस्तान के कानून निर्माताओं ने मानवाधिकारों और महिला मुद्दों से जुड़े तमाम कानून पारित किए है." नसरीन की मानें तो आज डर सरकार से नहीं है बल्कि धर्म के नाम पर राजनीतिक लाभ चाहने वाले गुटों से है.
बतौर ब्लॉगर काम करने वाली रशिमा फातिमा की राय इससे अलग है. राशिमा कहती हैं कि आसमां और अन्य कार्यकर्ताओं के कामों के कारण कुछ सुधार तो हुआ है लेकिन अब भी महिला कार्यकर्ताओं के लिए चीजें आसान नहीं है. फातिमा के मुताबिक, "पाकिस्तान में अधिकांश लोग आज भी महिलाओं की राय और उनके विचार को गंभीरता से नहीं लेना चाहते. कई बार मुझे महसूस होता है कि मेरे ब्लॉगों को एक तबका इसलिए भी पढ़ रहा है क्योंकि मैं लड़की हूं." लेकिन महिलाओं में जोश कम नहीं हुआ है और देश की कई महिला कार्यकर्ता, आसमां जहांगीर के कदमों पर आगे बढ़ना चाहती हैं.
रिपोर्ट: सायमा हैदर जैदी