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आसमान को लौट गया प्यार का जंगली फरिश्ता

१४ अगस्त २०११

मासूम आंखों में शरारत मचलती और बिजली की तरंगों की तरह बेचैन हरकतें भावुकता का तूफान उठातीं... 60 साल पहले इन्हीं के दम पर शम्मी कपूर ने हिंदी फिल्मों को प्यार करने का एक नया अंदाज दे दिया. अंदाज अब भी है पर शम्मी नहीं.

तस्वीर: AP

रविवार सुबह पांच बजे 79 साल के शमशेर राज कपूर उर्फ शम्मी कपूर ने मुंबई में आखिरी सांस ली. उनके गुर्दे खराब हो गए थे और वह पिछले कई साल से डायलिसिस पर चल रहे थे. इसी महीने की सात तारीख को उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया. यहां उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया. हालत इसके बाद थोड़ी स्थिर हुई थी पर अब सब कुछ थम गया है. प्यार का सबक सिखलाने आसमान से आया फरिश्ता लौट गया है.

छह दशकों का फिल्मी सफर

पृथ्वी राज कपूर से हिंदी फिल्मों को कपूर खानदान के रूप में जो अभिनय परंपरा मिली है, दूसरी पीढ़ी के दिग्गज शम्मी ने उसमें अपने अंदाज से कई रंग भरे और वो भी ऐसे वक्त में जब बॉलीवुड पर उनके बड़े भाई राजकपूर और देवानंद जैसे बॉलीवुड के दूसरे का नायकों का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था. एक दो नहीं पूरे 10 साल तक वह अपनी अलग रूमानी छवि से हसीनाओं को लुभाते रहे. उसके बाद के 50 साल चरित्र अभिनेता के रूप में हिंदी फिल्मों पर उनका दखल रहा.

1951 के जीवन ज्योति से लेकर 2011 के रॉकस्टार तक के सफर में उनके खाते में 50 से ज्यादा फिल्में और उससे बहुत ज्यादा उनके हंसते मुस्कुराते, गुस्साते गुर्राते और भावुकता का तूफान उठाते किरदार हैं. वह प्रिंस हैं और राजकुमार भी, जंगली और जानवर भी, हीरो भी ब्लफमास्टर भी, मुजरिम और डाकू भी, बदतमीज, ब्रह्मचारी और विधाता भी. कश्मीर की कली में शर्मिला टैगोर के साथ उनका प्रेम कश्मीर और पूरी दुनिया के लिए एक कभी न भूलने वाली सौगात बना. लोगों ने इसी फिल्म के जरिए पहली बार धरती के स्वर्ग के नजारे का रंगीन फिल्मी पर्दे पर दीदार किया और फिर उसके बाद तो हिंदी फिल्मों के लिए यह जगह प्रेम की वादी के रूप में ही मशहूर हो गई.

संगीत से लगाव

संगीत में उनकी गहरी रुचि थी और खुद पर फिल्माए जाने वाले गानों को वह खुद चुनते. फिर मोहम्मद रफी की आवाज उनमें जान भरती. रफी के साथ उनकी जोड़ी ने हिंदी फिल्मों को कई जबर्दस्त हिट गाने दिए हैं. उछल कूद वाले गाने और डांस का नया अंदाज भी उन्होंने शुरू किया और अस्त व्यस्त जीवनशैली को नायकों के जीवन का हिस्सा बनाया. बाद में राजेश खन्ना ने हिंदी फिल्मों के नायकों की इसी परंपरा से शुरुआत की और फिर उसे कई और दिशाओं में ले गए.

अभिनय के कई रंग

हालांकि ऐसा भी नहीं था कि उन्होंने गंभीर भूमिकाएं नहीं की. 1966 में तीसरी मंजिल और फिर 1968 में आई ब्रह्मचारी से उन्होंने अपने आलोचकों का मुंह बंद किया. बाद के सालों में फिल्मों में नई पीढ़ी का दखल बढ़ा और शम्मी का बढ़ता वजन भी उनके लिए बड़ी मुसीबत बना. 1971 में हीरो के रूप में आखिरी हिट फिल्म अंदाज के बाद उन्हें अपने लिए नई भूमिकाएं तलाशनी पड़ीं. जिन नायिकाओं के साथ उन्होंने कभी नायक बन कर वादियों में गाने गाए थे, उन्हीं के लिए बाद की फिल्मों में शम्मी उनके पिता भी बने. हालांकि भूरी दाढ़ी और बड़े डीलडौल के साथ उनकी बुजुर्ग शख्सियत भी हिंदी फिल्मों के लिए काम की साबित हुई और फिर अगले कई दशकों के लिए उनकी नई भूमिका तय कर दी गई. फिल्मों ही नहीं विज्ञापन की दुनिया में भी इस छवि ने कामयाबी के झंडे गाड़े. कई साल बीत गए हैं पर भारत में आज भी लोग बारातियों का स्वागत पान पराग से करने की मांग इसी छवि के दम पर करते हैं.

1974 में मनोरंजन के जरिए उन्होंने निर्देशन में भी हाथ आजमाने की कोशिश की. लेकिन फिल्म को मिले कम दर्शकों ने उन्हें अहसास दिला दिया कि यह काम उनका नहीं.

इंटरनेट से दोस्ती

उम्र बढ़ने के साथ फिल्मों में उनका दखल कम होता गया और तब इस नए दौर में उन्होंने इंटनेट से दोस्ती की. उन्होंने इंटरनेट यूजर्स कम्युनिटी ऑफ इंडिया की स्थापना की और शुरूआत से ही इसके चेयरमैन रहे. फेसबुक और ट्विटर पर एक अकाउंट चलाने के साथ ही जंगली डॉट ओआरजी डॉट इन नाम की वेबसाइट भी चलाते थे जो उनके मशहूर परिवार के बारे में है. शारीरिक विवशताओं ने उनकी गतिविधियों को व्हील चेयर पर समेट दिया था लेकिन इंटरनेट उनके लिए बड़े काम का साबित हुआ. वहां उन्हें पूरी स्वच्छंदता से उड़ान भरने का मौका मिलता रहा. हर रोज वह काफी वक्त इसके साथ ही गुजारते थे.

कपूर खानदान की जिस चौथी पीढ़ी को आज रणबीर और करीना के रूप में शोहरत मिल रही है, उसे यहां तक पहुंचाने में शम्मी कपूर की बड़ी भूमिका रही है. हिंदी फिल्मों पर बड़े भाई राज की कामयाबी की रोशनी के बीच भी उन्होंने अपने लिए अलग राह बनाई. पिछले छह दशक बता रहे हैं कि सदियां बीत जाएंगी पर हिंदी फिल्मों के नायकों का इन राहों से गुजरना जरूरी बना रहेगा.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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