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आसान नहीं डिजिटल भारत का सपना

४ जुलाई २०१५

डिजिटल भारत का सपना सुनने में भले कर्णप्रिय लगे, इसकी राह आसान नहीं है. जिस देश में अब भी एक बड़ी आबादी संचार क्रांति से अछूती हो, वहां यह सपना अभी दूर की कौड़ी ही लगता है.

तस्वीर: AP

मोदी सरकार का यह कदम अपने आप में क्रांतिकारी है. लेकिन इसके लिए न तो समुचित तैयारी की गई है और न ही जमीनी हकीकत का ध्यान रखा गया है. ऐसे में इसकी राह में सरकार को कई चुनौतियों से जूझना पड़ेगा. इस योजना के तहत वर्ष 2016 तक देश के ढाई लाख गांवों को इंटरनेट से जोड़ने की बात कही गई है. लेकिन इंटरनेट की धीमी गति और देश के ज्यादातर इलाकों तक इसका सुलभ नहीं होना ही इसकी राह की सबसे बड़ी बाधा है. एक ताजा अध्ययन के मुताबिक, इंटरनेट की गति के मामले में भारत का स्थान दुनिया भर में 115वां है. देश में पिछले अप्रैल के आखिर तक ब्रॉडबैंड ग्राहकों की तादाद दस करोड़ से महज कुछ ही ज्यादा थी. सवा सौ करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले देश में यह आंकड़ा दस फीसदी से भी कम है.

केंद्र सरकार ने कहा है कि पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ समेत कम से कम दस राज्य ऑप्टिकल फाइबर केबल के मजबूत नेटवर्क के साथ डिजिटल भारत के सपने को पूरा करने की राह पर कदम बढ़ाने के लिए तैयार हैं. लेकिन जमीनी हकीकत इसके उलट है. पश्चिम बंगाल की बात करें तो रिलायंस समूह की कंपनी रिलायंस जियो राजधानी कोलकाता में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का काम कर रही है. लेकिन इस परियोजना की गति काफी धीमी है और फिलहाल सरकार भी यह बताने की स्थिति में नहीं है कि यह महात्वाकांक्षी परियोजना कब तक पूरी होगी.

तस्वीर: AP

वैसे, महानगर में इसकी सहायता से कुछ वाई-फाई हॉट स्पॉट बना कर सरकार और इस कंपनी ने अपनी पीठ जरूर ठोक ली है. लेकिन पूरी परियोजना कब तैयार होगी, यह कहना मुश्किल है. इसके अलावा मोबाइल फोन के बढ़ते ग्राहकों के बावजूद कॉल की क्वालिटी में लगातार गिरावट आ रही है. कॉल ड्रॉप देश में सबसे बड़ी समस्या बन कर उभरा है. एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में इन मोबाइल कंपनियों ने अपनी लुभावनी योजनाओं के जरिए करोड़ों ग्राहक तो बना लिए हैं, लेकिन उनको ढंग की सेवा मुहैया कराने के लिए अपना आधारभूत ढांचा उस अनुपात में विकसित नहीं किया है. नतीजतन गांव तो गांव शहरी इलाकों में भी कॉल ड्रॉप की समस्या लगातार बढ़ रही है. सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में मोबाइल कंपनियों को फटकार लगा चुका है. लेकिन समस्या जस की तस है.

ताजा पहल के तहत ब्रॉडबैंड हाइवे बनाने की योजना है. लेकिन जब देश में ऑप्टिकल फाइबर केबल ही नहीं बिछ पाए हों तो भला तेज गति वाले ब्रॉडबैंड हाइवे कैसे बनेंगे, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है. देश के ज्यादातर हिस्सों में मोबाइल नेटवर्क पहुंचने के बावजूद अब भी 42,300 गांव ऐसे हैं जहां तक इसकी पहुंच नहीं है. सरकार इस खाई को कैसे पाटेगी, इसका भी कहीं कोई जवाब नहीं मिलता. इसी तरह फोन तक सबकी पहुंच का नारा तो उछाल दिया गया है. लेकिन जब शहरों में ही मोबाइल फोन नेटवर्क ठीक से काम नहीं करता तो भला गांवो की बात कौन करे.

डिजिटल भारत के सपने को साकार करने के लिए सरकार ने आम नागरिकों तक डिजिटल सेवाएं पहुंचाने के मकसद से सेवा केंद्र खोलने का भी फैसला किया गया है. लेकिन इसमें भी कनेक्टिविटी की समस्या आड़े आएगी. वैसे, सबसे पहले वर्ष 2006 में इस परियोजना का अनुमोदन किया गया था. लेकिन यह बेहद धीमी गति से आगे बढ़ती रही. बीते दस वर्षों में तकनीकी मोर्चे पर हालात में कोई क्रांतिंकारी बदलाव देखने को नहीं मिला है. इसी तरह इस सपने को पूरा करने के लिए अगले पांच वर्षों के दौरान सूचना तकनीक क्षेत्र की नौकरियों के लिए एक करोड़ छात्रों को प्रशिक्षित करना, ई-गवर्नेंस, ई-क्रांति, इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना और सबके लिए सूचना जैसे कई पायदान तय किए गए हैं. लेकिन जब तक देश में संचार व्यवस्था का आधारभूत ढांचा ठीक नहीं होगा, तब तक इनमें से किसी को मूर्त रूप देना संभव नहीं है. ऐसे में केंद्र की तमाम योजनाओं की तरह कहीं डिजिटल भारत का सपना भी सपना ही नहीं रह जाए.

ब्लॉग: प्रभाकर

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