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आसान है नोबेल शांति पुरस्कार का अंदाजा लगाना!

७ अक्टूबर २०११

क्या आपने अंदाजा लगाया कि इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार किसे मिल रहा है? अगर नहीं, तो पुरस्कार समिति के अध्यक्ष टोबयोर्न यागलांट को हैरत होगी. यागलांट कहते हैं कि इस साल तो विजेता स्वभाविक है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

नोबेल के शांति पुरस्कार का एलान शुक्रवार को होना है. यागलांट ने नहीं बताया कि विजेता कौन हो सकता है, लेकिन जानकारों का अनुमान है कि यह अरब जगत में हुई क्रांतियों से जुड़ा हो सकता है. एक इंटरव्यू में यागलांट ने कई संकेत दिए जिनसे यह समझा जा सकता है कि शांति पुरस्कार का विजेता चुनने वाली समिति किस आधार पर सोच रही है.

विकीलीक्सतस्वीर: picture-alliance/dpa

सोचिए, कौन हो सकता है

नोबेल के नामांकन के लिए आखिरी तारीख एक फरवरी थी. उसके बाद समिति के सदस्य 28 फरवरी तक अपने सुझाव जोड़ सकते थे. जनवरी में ट्यूनिशिया में क्रांति हो चुकी थी और राष्ट्रपति बेन अली का पद जा चुका था. लेकिन यागलांट ने कहा कि समिति के पास दुनिया में हो रही और घटनाओं के बारे में सोचने के लिए भी काफी वक्त था. उन्होंने कहा, "हमने तब अरब क्रांति से जुड़े कई नायकों को देखा. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि पुरस्कार उसी दिशा में जाएगा क्योंकि दुनिया में और भी कई सकारात्मक चीजें हो चुकी थीं."

यागलांट ने कहा, "सबसे सकारात्मक बदलाव को पुरस्कार मिलेगा. इसलिए मैं हैरान हूं कि अब तक विशेषज्ञ अनुमान नहीं लगा पाए हैं क्योंकि मेरे लिए तो यह एकदम स्वाभाविक है."

इस साल शांति पुरस्कार के लिए रिकॉर्ड 241 नामांकन हुए. इनमें 188 व्यक्ति हैं और 53 संस्थाएं. रूस की मानवाधिकार कार्यकर्ता स्वेत्लाना गानुशकिना, सबसे बड़े खुलासे करने वाला विकीलीक्स और क्यूबा के बागियों को नामांकित करने वालों ने उनके नाम जाहिर कर दिए हैं.

यागलांट का कहना है कि पांच सदस्यों वाली स्वतंत्र समिति शुक्रवार को आखिरी बैठक में अपना फैसला करेगी. जब उनसे सीधे सीधे पूछा गया कि क्या अरब जगत की क्रांति पुरस्कार की पंक्ति में हैं, तो उन्होंने कहा, "हां, एक वह है. लेकिन और भी हैं."

ट्यूनिशिया की क्रांतितस्वीर: picture alliance/dpa

संस्था भी हो सकती है

कुछ अनुमान 27 देशों के संगठन यूरोपीय संघ का नाम भी लेते हैं क्योंकि इसे शांति स्थापित करने वाली संस्था के रूप में देखा जा रहा है. हालांकि नॉर्वे यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं है लेकिन यागलांट इसके कट्टर समर्थक हैं. पर इसे नोबेल मिल सकता है क्या? यागलांट बोले, "हां, बेशक...लेकिन आज..." और फिर वह 10 सेकंड्स के लिए अटक जाते हैं क्योंकि उनका एक साथी उन्हें टोक देता है.

यागलांट बताते हैं कि जरूरी नहीं कि यह एक बड़ा नाम हो, यह एक बड़ा मिशन भी हो सकता है जिसने दुनिया के लिए कुछ महत्वपूर्ण किया हो.

नॉर्वे के पूर्व प्रधानमंत्री यागलांट 2009 में नोबेल पुरस्कार समिति के अध्यक्ष बने. उसके बाद से दोनों बार के शांति पुरस्कारों पर जमकर विवाद हुआ है. 2009 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पुरस्कार दिया गया और 2010 में चीन के विद्रोही नेता लिऊ शियाओबो को.

किस किस का नाम

वैसे जब संभावितों का जिक्र होता है तो उनमें उत्तरी अफ्रीका के कई ब्लॉगर और कार्यकर्ताओं का नाम उभर कर सामने आता है. मिस्र में अप्रैल 6 यूथ मूवमेंट और इसके संस्थापक इसरा अब्देल फतह कई संभावित सूचियों में दिख चुके हैं. अप्रैल 6 यूथ मूवमेंट कई राजनीतिक संगठनों का एक समूह है जिसने बदलाव के लिए अहिंसा का सहारा लिया. इसकी स्थापना 2008 में ही हो गई थी और फतह को तभी हिरासत में ले लिया गया.

वाएल गोनिमतस्वीर: DW

एक नाम अहमद माहेर का भी है जिन्होंने अप्रैल 6 मूवमेंट को फेसबुक पर जबर्दस्त समर्थन दिलाया. मिस्र के कंप्यूटर इंजीनियर वाएल गोनिम का भी जिक्र हो रहा है जिन्होंने वी आर खालेद सईद नाम का फेसबुक पेज बनाया. खालेद सईद की सिकंदरिया में पिछले साल जून में पुलिस की पिटाई की वजह से मौत हो गई थी. मिस्र की क्रांति के दौरान गोनिम को गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें 11 दिन तक जेल में रखा गया. और जब उन्हें रिहा किया गया तो काहिरा के तहरीर चौक पर लाखों लोगों की भीड़ ने उनका स्वागत किया. उनका नाम टाइम मैग्जीन के 2011 के 100 सबसे प्रभावशाली लोगों में शामिल किया गया.

नोबेल समिति ट्यूनिशिया को भी चुन सकती है जहां से लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों की शुरुआत हुई और पूरे अरब जगत में फैल गई. ट्यूनिशिया की ब्लॉगर और यूनिवर्सिटी में टीचिंग असिस्टेंट लिना बेन महेनी का नाम भी चर्चा में है जिन्होंने जिने अल अबिदिने बेन अली की नीतियों की अपने ब्लॉग अ ट्यूनिशियन गर्ल पर खूब आलोचना की. ट्यूनिशियाई क्रांति के दौरान उन्होंने पूरे देश की यात्रा की और आंदोलनों का दस्तावेजीकरण किया.

विकीलीक्स को भी नामांकन मिला है. नॉर्वे के एक सांसद ने यह कहते हुए विकीलीक्स को नामांकित किया कि इसने बोलने की आजादी को बढ़ावा दिया है.

रिपोर्टः एपी/डीपीए/वी कुमार

संपादनः ए कुमार

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