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आसियान की नई भूमिका और अहम परीक्षा

२४ फ़रवरी २०११

आसियान यूरोपीय संघ जैसा बनना चाहता है. लेकिन उसके लिए जिस तरह की एकजुटता और व्यवस्था की जरूरता है, क्या संगठन उसके लिए तैयार है? इसका पता जल्दी ही चल जाएगा क्योंकि उसे एक बड़ा काम मिला है.

तस्वीर: AP

थाईलैंड और कंबोडिया के बीच इसी महीने की शुरुआत में प्रीहा विहेर मंदिर को लेकर सीमा विवाद हुआ जिसमें कम से कम आठ लोगों की मौत हो गई. अब दोनों देश युद्ध विराम पर सहमत हैं और इसकी निगेहबानी का जिम्मा उन्होंने इंडोनेशिया को सौंपा है. इसका एलान जकार्ता में आसियान देशों के विदेश मंत्रियों बैठक की समाप्ति पर हुआ. आसियान के लिए यह नई भूमिका क्रांतिकारी बदलाव हो सकती है क्योंकि 10 देशों का यह संगठन हमेशा हस्तक्षेप न करने की नीति के लिए जाना जाता है.

क्या करेगा आसियान

इंडोनेशिया फिलहाल आसियान का अध्यक्ष है. वह जल्दी ही पर्यवेक्षकों का एक दल थाईलैंड और कंबोडिया भेजेगा जो विवादित सीमा की निगेहबानी करेगा. इस दल में सेना के अधिकारी और नागरिक दोनों होंगे लेकिन वे बिना हथियारों के जाएंगे. यह दल आसियान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को अपनी रिपोर्ट सौंपेगा.

इंडोनेशिया की भूमिका इस विवाद से आगे भी जारी रहेगी. कंबोडिया और थाईलैंड भविष्य में होने वाली द्विपक्षीय वार्ता में भी इंडोनेशिया को शामिल करेंगे. हालांकि पहले थाईलैंड किसी तीसरे पक्ष के दखल का विरोध करता रहा है.

खुश है संगठन

आसियान के महानिदेशक दजौहरी ओराटमांगुन इस पूरी प्रक्रिया से काफी खुश हैं. वह कहते हैं, "हम इसे एक ऐतिहासिक कदम कह सकते हैं. आसियान में अब से पहले ऐसा कुछ हमने कभी अनुभव नहीं किया. लेकिन हर कोई इस बात पर सहमत है कि अगर संगठन को 2015 तक आसियान समुदाय बनाने का लक्ष्य हासिल करना है तो उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के सामने साबित करना होगा कि उसके दो सदस्य देशों में विवाद हुआ है तो संगठन उसे सुलझा सकता है. यह अद्भुत है."

कंबोडिया ने मंदिर विवाद का मुद्दा सुरक्षा परिषद में उठा दिया था. परिषद ने विवाद के हल के लिए आसियान को दखल देने के लिए कहा. अब तक इस संगठन पर क्षेत्रीय विवादों में कुछ न कर पाने के आरोप लगते रहे हैं. सदस्य देश अपने झगड़े द्विपीक्षीय बातचीत से सुलझाते रहे हैं या फिर द हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की मदद लेते रहे हैं.

जर्मनी में विदेश नीति पर काम करने वाले थिंक टैंक हावर्ड लोएवेन आसियान में आए इस बदलाव का स्वागत करते हैं. उनके मुताबिक यह एक संकेत है कि आसियान के लोग 2015 तक एक समुदाय बनाने के लिए तैयार हैं. वह कहते हैं, "अब देश आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा मामलों पर ज्यादा करीब होकर काम कर रहे हैं इसलिए विवादों से बचा जा रहा है. और अगर कंबोडिया थाईलैंड जैसा कोई विवाद पैदा हो जाता है तो यह बहुत जरूरी है कि उनके पास उसे सुलझाने के तरीके भी हों."

यूरोपीय संघ जैसा समुदाय

आसियान के सदस्य देश उम्मीद कर रहे हैं कि वे 2015 तक यूरोपीय संघ जैसा एक संयुक्त समुदाय बनाने में कामयाब हो जाएंगे. 2008 में इस संगठन के चार्टर पर दस्तखत हुए जिसमें सदस्य देशों से अपने विवाद बिना हिंसा के सुलझाने की अपील की गई. साथ ही विदेश मंत्रियों की ज्यादा बड़ी भूमिका पर जोर दिया गया. इंडोनेशिया विश्वविद्यालय के राजनीतिक वैज्ञानिक बंदार्तो बंदोरो मानते हैं कि यह सब इतना आसान नहीं होगा. उनके मुताबिक लगभग 40 साल पुराने इस संगठन के सामने काफी चुनौतियां हैं. वह कहते हैं, "आसियान के लिए एकजुटता बनाए रखना बहुत जरूरी है. जब कभी आसियान के दखल की जरूरत पड़ती है तो देशों को अपनी संप्रभुता की आड़ नहीं लेनी चाहिए. मुझे खतरा इस बात का लग रहा है कि जब ऐसा कोई विवाद होगा जिसे आसियान नहीं सुलझा पाया तो संगठन की एकता टूट जाएगी. ऐसे वक्त में एकता बनाए रखने के तरीके हमें खोजने होंगे."

इस लिहाज से थाईलैंड और कंबोडिया के विवाद को बंदोरो आसियान समुदाय के लिए एक परीक्षा की तरह देखते हैं.

रिपोर्टः अंगातिरा गोलमर

संपादनः वी कुमार

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