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आसियान के आगाज से पहले दुनिया में हलचल

१७ नवम्बर २०११

कहने को तो यह एक क्षेत्रीय संगठन का सम्मेलन है लेकिन जहां अमेरिका, रूस, चीन और भारत मौजूद हों वह केवल क्षेत्रीय सम्मेलन कैसे हो सकता है. आसियान की बैठक शुरू होने से पहले ही तेज हुई दुनिया भर में हलचल.

मनमोहन सिंह और वे जियाबाओतस्वीर: picture alliance/Photoshot

बैठक का आगाज होने से पहले ही भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बयानों ने बैठक के एजेंडे की दुनिया के लिए कितनी अहमियत है, इसका अहसास करा दिया. अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने गुरुवार को कहा कि उनके देश की सेना एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी भूमिका का विस्तार करेगी और बजट में कटौती का इस पर कोई असर नहीं होगा. ओबामा ने कहा कि इस इलाके के भविष्य का निर्माण करने के लिए अमेरिका यहां अपनी मौजूदगी बनाए रखेगा.

चीन की उलझन

चीन ने ओबामा के एलान पर अपनी आशंका जताई है कि वास्तव में ऑस्ट्रेलियाई जमीन पर एक स्थायी अमेरिकी सैनिक अड्डा कायम करने की तैयारी है. चीन को डर है कि उसकी बढ़ती ताकत अमेरिकी दखलंदाजी से लड़खड़ा सकती है. ओबामा को भी चीन की असहज स्थिति का अहसास है. उन्हें मालूम है कि एशिया में अमेरिकी मौजूदगी को चीन खुद को घेरने की कार्रवाई मानता है पर ओबामा ने कहा कि उनका देश चीन के साथ सहयोग की राह पर बढ़ना चाहता है.

बराक ओबामातस्वीर: dapd

अमेरिकी सेना का पूरा ध्यान अब तक इराक और अफगानिस्तान पर रहा है पर अब वह पूरे एशिया में इसको फैला देना चाहती है. खास तौर से पूर्व दक्षिण एशिया में. ऑस्ट्रेलियाई संसद में आसियान के बारे में अमेरिकी नजरिये के बारे में बात करते हुए राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, "अब जब आज की लड़ाई खत्म हो गई है तो मैंने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा टीम को कहा है कि वह एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी मौजूदगी और मिशन को सबसे ज्यादा प्रमुखता दें." इसके साथ ही उन्होंने कहा, "नतीजा यह होगा कि अमेरिकी रक्षा बजट में कटौती के बावजूद इसका कोई असर, मैं दोहरा के कहता हूं इसका कोई असर एशिया प्रशांत पर नहीं होगा."

दक्षिण पूर्व एशिया में अमेरिकी फौज की मौजूदगी बढ़ाने की दिशा में पहला कदम यह होगा कि अमेरिकी मरीन, नौसेना के जहाज और विमानों की उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में 2012 से तैनाती हो जाएगी. ऑस्ट्रेलिया में अमेरिकी फौजों की तैनाती का मकसद दक्षिण पूर्व एशिया के करीब अमेरिकी फौजों के लिए ठिकाना बनाना है.

आसियान में भारत

आसियान भारत के लिए पूरब की ओर देखो की नीति का एक अहम हिस्सा है. बाली में आसियान बैठक के लिए दिल्ली से रवाना होते वक्त प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने यह बात दोहराई. प्रधानमंत्री ने कहा, "पूर्व एशिया सम्मेलन एशिया प्रशांत में क्षेत्रीय सहयोग का बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए एक खुला और विस्तृत मंच है." पूर्व एशिया सम्मेलन में 10 आसियान देशों के साथ ही अमेरिका, रूस और भारत समेत आठ दूसरे देश शामिल होते हैं.

मनमहोन सिंह ने कहा कि पूर्व एशिया सम्मेलन के एजेंडे में राजनीतिक और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों की प्रमुखता तेजी से बढ़ रही है. आपदा प्रबंधन, समुद्री इलाकों की सुरक्षा, आतंकवाद और सुरक्षा को गैर पारंपरिक खतरे इलाके के देशों की चिंता है. प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि बाली में सम्मेलन से अलग अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, चीन के प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ और दूसरे नेताओं से द्विपक्षीय बातचीत का भी मौका मिलेगा. मनमोहन सिंह ने यह जानकारी भी दी कि 2012 में भारत पहली बार आसियान सम्मेलन की मेजबानी करेगा. आसियान में ब्रुनई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. प्रधानमंत्री सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद दो दिन की यात्रा पर सिंगापुर जाएंगे.

दक्षिणी चीन सागर पर विवादतस्वीर: picture-alliance/dpa

आसियान के मुद्दे

आसियान की बैठक में इस बार दक्षिणी चीन सागर का विवाद, म्यांमार और आसियान समुदाय के मसले छाये रहेंगे, ऐसी उम्मीद की जा रही है. दक्षिणी चीन महासागर के व्यस्त समुद्री मार्ग पर नियंत्रण को लेकर विवाद है. इसके पानी में मछलियों की भरमार है तो पानी के नीचे तेल और गैस का भंडार. ऐसे में इससे लगते देशों के बीच इस पर वर्चस्व को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है. चीन पूरे सागर पर अपने अधिकार का दावा करता है लेकिन वियतनाम और फिलीपींस जैसे कई देश भी इसके कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताते हैं. इन देशों के बीच एक सहमति बनाने की कोशिश की जा रही है.

इसी तरह दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से उम्मीद की जा रही है कि वह 2014 में म्यांमार के आसियान की अध्यक्षता संभालने का एलान कर देंगे. हालांकि अमेरिका और दूसरे कई देशों का मानना है कि अभी सुधारों के रास्ते पर चलना शुरू करने वाली नई सरकार को इतनी बड़ी जिम्मेदारी देना जल्दबाजी होगी. कुछ देश यह भी कह रहे हैं कि म्यांमार को पहले कुछ और सुधारों को लागू करना चाहिए.

दक्षिण पूर्वी एशियाई देश अपने संगठन को मजबूत करने की दिशा में आने वाली बाधाओं से भी पार पाना चाहते हैं. इन देशों की योजना 2015 से यूरोपीय संघ की तरह से एक समुदाय के रूप में काम करने की है. सभी देश एक मजबूत समुदाय के रूप में जुड़ना चाहते हैं लेकिन उनके बीच विवाद इस जुड़ाव की गति को लेकर है. असली चुनौती एक ऐसे बाजार के निर्माण को लेकर है जो सभी 10 देशों को समान रूप से कारोबार और विकास का मौका दे. साझा मुद्रा की बात तो फिलहाल यूरो की मुश्किलें देख कर ठंडे बस्ते में डाल दी गई है.

आसियान चीन और अमेरिका के लिए वर्चस्व के साथ ही व्यापारिक हितों के भी टकराव की जमीन है. 2010 में चीन आसियान का सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार रहा है जबकि चीन के लिए आसियान उसका चौथा सबसे बड़ा कारोबारी साझीदार है. उधर अमेरिका और आसियान दोनों एक दूसरे के चौथे सबसे बड़े कारोबारी साझीदार हैं. आसियान में सीधा अमेरिकी निवेश 2010 के लिए करीब 7.5 अरब अमेरिकी डॉलर रहा जबकि चीन का निवेश 2.7 अरब डॉलर था.

रिपोर्टः डीपीए/रॉयटर्स/एएफपी/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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