पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने ईशनिंदा के आरोपों में मौत की सजा पाने वाली आसिया बीबी को बरी कर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान ऐसे फैसलों के लिए तैयार है?
विज्ञापन
अदालत का फैसला आते ही एक तरफ दुनिया भर में इसे 'इंसाफ की मिसाल' करार दिया गया तो वहीं पाकिस्तान के बड़े शहरों में हंगामा शुरू हो गया. कट्टरपंथियों को यह बात हजम नहीं हो रही है कि ईशनिंदा के इल्जाम में मौत की सजा पाने वाली एक ईसाई महिला को कैसे बरी किया जा सकता है. वह भी तब, जब 2010 से चल रहे इस मामले में लाहौर हाई कोर्ट तक मौत की सजा पर मुहर लगा चुका था.
लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत ने मामले को पलट दिया और इस बारे में पेश सबूतों को नाकाफी बता कर मामला खारिज कर दिया.
इस फैसले पर मानवाधिकार कार्यकर्ता और सिविल सोसाइटी के लोग खुशी मना रहे हैं. लेकिन दूसरी तरफ कट्टरपंथी इसके विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं और मरने और मारने की बात कर रहे हैं. लाहौर से लेकर कराची तक कई बड़े शहर कट्टरपंथियों की गिरफ्त में हैं. बस ठप, रेल ठप, इंटरनेट ठप और पूरा आम जनजीवन ठप. कट्टरपंथी धमकी दे रहे हैं कि जब तक आसिया बीबी को फांसी पर नहीं चढ़ाया जाएगा, वे सड़कों से नहीं हटेंगे.
आसिया बीबी: एक गिलास पानी के लिए मौत की सजा
पाकिस्तान में 2010 में आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी. पानी के गिलास से शुरू हुआ झगड़ा उनके ईशनिंदा का जानलेवा अपराध बन गया था. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Governor House Handout
खेत से कोर्ट तक
2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले में रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी. इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की. मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती. इस बात पर तकरार शुरू हुई. बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
भीड़ का हमला
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खेत में हुई तकरार के बाद भीड़ ने आसिया बीबी के घर पर हमला कर दिया. आसिया बीबी और उनके परिवारजनों को पीटा गया. पुलिस ने आसिया बीबी को बचाया और मामले की जांच करते हुए हिरासत में ले लिया. बाद में उन पर ईशनिंदा की धारा लगाई गई. 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा बेहद संवेदनशील मामला है.
तस्वीर: Arif Ali/AFP/Getty Images
ईशनिंदा का विवादित कानून
1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून लागू किया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईशनिंदा की आड़ में ईसाइयों, हिन्दुओं और अहमदी मुसलमानों को अकसर फंसाया जाता है. छोटे मोटे विवादों या आपसी मनमुटाव के मामले में भी इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है.
तस्वीर: Noman Michael
पाकिस्तान राज्य बनाम बीबी
2010 में निचली अदालत ने आसिया बीबी को ईशनिंदा का दोषी ठहराया. आसिया बीबी के वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला आपसी मतभेदों का है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. आसिया बीबी को मौत की सजा सुनाई. तब से आसिया बीवी के पति आशिक मसीह (तस्वीर में दाएं) लगातार अपनी पत्नी और पांच बच्चों की मां को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
तस्वीर: picture alliance/dpa
मददगारों की हत्या
2010 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने आसिया बीबी की मदद करने की कोशिश की. तासीर ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग कर रहे थे. कट्टरपंथी तासीर से नाराज हो गए. जनवरी 2011 में अंगरक्षक मुमताज कादरी ने तासीर की हत्या कर दी. मार्च 2011 में ईशनिंदा के एक और आलोचक और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की भी इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई.
तस्वीर: AP
हत्याओं का जश्न
तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों ने हीरो जैसा बना दिया. जेल जाते वक्त कादरी पर फूल बरसाए गए. 2016 में कादरी को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद कादरी के नाम पर एक मजार भी बनाई गई.
तस्वीर: AP
न्यायपालिका में भी डर
ईशनिंदा कानून के आलोचकों की हत्या के बाद कई वकीलों ने आसिया बीबी का केस लड़ने से मना कर दिया. 2014 में लाहौर हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. इसके खिलाफ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत में इस केस पर सुनवाई 2016 में होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले एक जज ने निजी कारणों का हवाला देकर बेंच का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
तस्वीर: Reuters/F. Mahmood
ईशनिंदा कानून के पीड़ित
अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी की सजा से जुड़ा फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले को लेकर पाकिस्तान पर काफी दबाव है. अमेरिकी सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक सिर्फ 2016 में ही पाकिस्तान में कम से 40 कम लोगों को ईशनिंदा कानून के तहत मौत या उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कई लोगों को भीड़ ने मार डाला.
तस्वीर: APMA
अल्पसंख्यकों पर निशाना
ईसाई, हिन्दू, सिख और अहमदी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं. इस समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान में उनके साथ न्यायिक और सामाजिक भेदभाव होता रहता है. बीते बरसों में सिर्फ ईशनिंदा के आरोपों के चलते कई ईसाइयों और हिन्दुओं की हत्याएं हुईं.
तस्वीर: RIZWAN TABASSUM/AFP/Getty Images
कट्टरपंथियों की धमकी
पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों ने धमकी दी थी कि आसिया बीबी पर किसी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जाए. तहरीक ए लबैक का रुख तो खासा धमकी भरा था. ईसाई समुदाय को लगता था कि अगर आसिया बीबी की सजा में बदलाव किया गया तो कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आएंगे. और ऐसा हुआ भी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. K. Bangash
बीबी को अंतरराष्ट्रीय मदद
मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देशों की सरकारों ने आसिया बीबी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की मांग की थी. 2015 में बीबी की बेटी पोप फ्रांसिस से भी मिलीं. अमेरिकन सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस ने बीबी की सजा की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद से अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने की अपील की थी.
बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्होंने इस मामले से बरी कर दिया. आसिया को बरी किए जाने के खिलाफ आई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों ने विरोध किया. लेकिन आसिया सुरक्षित रहीं. अब आसिया बीबी ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. बताया जाता है वो कनाडा में रहने लगी हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Karim
12 तस्वीरें1 | 12
हिमाकत देखिए कि देश के चीफ जस्टिस समेत जिन तीन जजों की बेंच ने यह फैसला दिया, कट्टरपंथी उनकी हत्या के लिए लोगों को उकसा रहे हैं. तहरीक ए लब्बैक नाम की एक धार्मिक पार्टी कह रही है कि जिस किसी ने भी आसिया बीबी के मामले में दखल दिया है, वह मौत का हकदार है. कट्टरपंथी तो प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को बर्खास्त करने की भी मांग रहे हैं.
हालात की नजाकत को देखते हुए सरकार ने शहरों में सुरक्षा बढ़ा दी है. लेकिन यह मामला सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था का नहीं है. मामला पाकिस्तानी समाज में गहराई तक जड़ें जमा चुके कट्टरपंथ का है, जो ततैया का वह छत्ता बन गया है जिसमें कोई भी हाथ डालने से घबराता है. जिसने भी इसे छेड़ने की कोशिश की, उसे भारी कीमत चुकानी पड़ी है. 2011 में पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर और केंद्र सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी इसकी बलि चढ़ चुके हैं. उनका कसूर बस इतना था कि वे ईशनिंदा कानून में बदलाव के समर्थक थे.
यह बात सही है कि इस्लाम को पाकिस्तान के अस्तित्व से अलग करके नहीं देखा जा सकता. धर्म को ही तो भारत के बंटवारे का आधार बनाया गया था. लेकिन क्या एक आधुनिक समाज में ईशनिंदा जैसे कानूनों की जगह हो सकती है, जिनमें अफवाहों और कही सुनी बातों के आधार पर किसी निर्दोष को फांसी के तख्ते पर चढ़ाने का फैसला हो जाता है. आसिया बीबी के मामले को ही लीजिए. उसके ऊपर ईशनिंदा के आरोप उसके पड़ोसियों की शिकायत पर दर्ज किए गए. ये पड़ोसी खासकर इस बात से खफा थे कि उसने गैर मुसलमान होते हुए उनके गिलास से पानी क्यों पिया.
ईशनिंदा में वीना मलिक को सजा
चर्चित पाकिस्तानी अभिनेत्री वीना मलिक को पाकिस्तान की एक अदालत ने ईशनिंदा के आरोप में 26 साल की सजा सुनाई है. वीना के साथ उनके पति और पाकिस्तान के मीडिया समूह जियो टीवी के मालिक को भी सजा हुई है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
क्या है मामला
जियो टीवी और जंग समूह के मालिक मीर शकील उर रहमान को मई में जियो टीवी पर ईशनिंदा करने वाले कार्यक्रम के प्रसारण की अनुमति देने का आरोपी पाया हैं. इस कार्यक्रम में अभिनेत्री वीना मलिक और उनके पति बशीर के नकली निकाह में धार्मिक गीत बजाया गया था. आरोप है कि इस गीत पर वीना और उनके पति ने डांस भी किया था.
तस्वीर: Media Connect
कितनी सजा
वीना मलिक, उनके पति असद बशीर खान और जियो टीवी समूह के मालिक मीर शकील रहमान को 26 साल की सजा सुनाई गई है. इसके साथ ही अदालत ने 13 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है. टीवी शो की होस्ट शाइस्ता वाहिदी को भी 26 साल की सजा सुनाई गई है.
तस्वीर: dapd
अदालत सख्त
अदालत ने अपने आदेश में कहा, "घोषित अपराधियों के दुर्भावनापूर्ण कृत्य के कारण देश के सभी मुसलमानों की भावनाओं भड़की है और उनकी भावनाएं आहत हुई हैं. ऐसी हरकतों को गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है. उन्हें रोकने के लिए कड़ी सजा देनी जरूरी है."
तस्वीर: Strdel/AFP/Getty Images
आगे क्या होगा
अदालत ने अपने 40 पन्नों के फैसले में पुलिस से दोषियों को गिरफ्तार करने को कहा है. दोषी गिल्गित-बाल्टिस्तान के क्षेत्रीय उच्च न्यायालय में अपील कर सकते हैं.
तस्वीर: AP
मिल सकती है राहत
ईशनिंदा के इस मामले में खास बात यह है कि अदालत के इस आदेश को लागू नहीं किया जा सकेगा क्योंकि गिलगित बाल्टिस्तान को पाकिस्तान में पूर्ण प्रांत का दर्जा प्राप्त नहीं है. यानि यहां के कोर्ट के आदेश पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में लागू नहीं होते हैं.
तस्वीर: AP
विवादित वीना
वीना मलिक अक्सर गलत वजहों से सुर्खियों में बनी रहती हैं. वीना बिग बॉस सीजन 4 में भाग ले चुकी हैं और इस शो में वीना की अश्मित पटेल के साथ अन्तरंग तस्वीरें भी सामने आईं थी जिसके बाद काफी बवाल मचा था. 2011 में एफएचएम के दिसंबर अंक के कवर पर वीना मलिक की न्यूड तस्वीर छपी थी. उन्होंने अपनी बांह पर आईएसआई का निशान भी बनवाया था.
तस्वीर: AP
ईशनिंदा का आरोप
पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून काफी समय से विवादों में है. मूल रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान बने इस कानून को 1980 के दशक में जनरल जिया उल हक के शासन के दौरान और कड़ा बना दिया गया. मानवाधिकार विशेषज्ञों का मानना है कि ज्यादातर मामले प्रतिशोध, नफरत या किसी की संपत्ति हड़पने की इच्छा पर आधारित होते हैं.
तस्वीर: Asif Hassan/AFP/Getty Images
कहां हैं आरोपी
बताया जा रहा है कि जियो और जंग समूह के मालिक मीर शकील उर रहमान संयुक्त अरब अमीरात में रहते हैं और बाकी तीन भी चरमपंथी संगठनों से धमकियां मिलने के बाद देश से बाहर चले गए हैं.
तस्वीर: Media Connect
8 तस्वीरें1 | 8
पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि कई बार रंजिश निकालने के लिए लोग किसी को भी ईशनिंदा के मामले में फंसा देते हैं. एक बार आप फंसे तो निकलने की राह बहुत मुश्किल है. आपके इर्द गिर्द सियासत और धर्म का घेरा कसने लगता है. कई मामलों में तो बात अदालत तक भी नहीं पहुंचती. गुस्साई भीड़ आरोपी को मौके पर ही पीट पीट कर मार डालती है.
ऐसे में रिहाई के बाद भी आसिया बीबी के लिए पाकिस्तान में रहना आसान नहीं होगा. बहुत संभव है कि उसे देश छोड़ना पड़े. इससे पहले 2013 में ईशनिंदा के आरोपों का सामना करने वाली ईसाई लड़की रिम्शा मसीह को भी पाकिस्तान छोड़कर कनाडा में बसना पड़ा. सवाल यह है कि क्या एक देश को अपनी धार्मिक पहचान बनाए रखने के लिए ईशनिंदा जैसे कानूनों के सहारे की जरूरत है?
विरोध प्रदर्शन करने वालों में जिस तहरीक ए लब्बैक पार्टी का नाम सबसे आगे चल रहा है, उसे पाकिस्तान के हालिया आम चुनावों में एक भी सीट नसीब नहीं हुई. लेकिन उसके इतने समर्थक जरूर हैं कि सड़क पर उतर कर तोड़फोड़ कर सकें. अपने फायदे के लिए धर्म का इस्तेमाल करना ऐसी पार्टियां खूब जानती हैं. पाकिस्तान जैसे समाज में तो यह और भी आसान है.
"पाकिस्तान में कट्टरपंथी नहीं, सरकारी संस्थाएं खतरा"
01:52
शायद आपको याद हो कि सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को जब 2011 में अदालत में पेश किया गया था तो कैसे उस पर गुलाबों की पंखुड़ियां बरसाई गई थीं. यह काम किसी कट्टरपंथी गुट के उत्साही कार्यकर्ताओं ने नहीं, बल्कि अदालत में मौजूद वकीलों ने किया था. इससे पता चलता है कि जब आपकी आंखों पर धर्म का पर्दा पड़ा होता है तो आपके लिए 'सही और गलत' अपने मायने खो देते हैं.
आर्थिक संकट के मोर्चे पर जूझ रहे प्रधानमंत्री इमरान खान के लिए आसिया बीबी की रिहाई एक और बड़ी चुनौती है. एक तरफ उन्हें ईसाइयों और दूसरे अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, तो दूसरी तरफ कट्टरपंथियों के हमले भी झेलने होंगे. इमरान खान के लिए चुनौती इसलिए भी बड़ी है कि क्योंकि उनके ऊपर कट्टरपंथियों के प्रति नरम रवैया रखने के इल्जाम लगते हैं. तब्दील का नारा देकर सत्ता में आए इमरान खान को शायद समझ आ रहा है कि बदलाव इतना आसान नहीं है. खासकर पाकिस्तान का समाज जिस तरह कट्टरपंथी रंग में रंगा है, उसे देखते हुए तो बदलाव की राह और मुश्किल लगती है.
आसिया बीबी के मामले में फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस साकिब निसार ने भी कुरान का हवाला दिया और कहा कि सहिष्णुता इस्लाम का बुनियादी सिद्धांत हैं. लेकिन कट्टरपंथियों के लिए धर्म की अपनी व्याख्या है. यही वजह है कि आसिया बीबी को बरी किए जाने के फैसले को वे अपने अस्तित्व के लिए खतरा समझ रहे हैं जबकि दुनिया के लिए यह 'इंसाफ की नजीर' है.
धर्म त्यागने की सजा मौत
धर्मों के नाम पर दुनिया ने कई युद्ध झेले हैं. कई समुदाय अब इसे बेहद निजी विषय मानते हैं. लेकिन अब भी कुछ देश ऐसे हैं जहां धर्म छोड़ने का मतलब है, मौत की सजा.