पाकिस्तान में ईशनिंदा का आरोप झेल रही ईसाई महिला आसिया बीबी ने आखिरकार पाकिस्तान छोड़ दिया है. कुछ महीने पहले अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था, लेकिन कट्टरपंथी इसका विरोध कर रहे थे.
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डर, अनिश्चितता और सालों का इंतजार खत्म हुआ. कम से कम स्थानीय मीडिया यही कह रहा है. यदि यह खबर सही साबित होती है तो यह आसिया बीबी की कहानी का शायद आखिरी अध्याय होगा जिसके पन्ने हिंसक प्रदर्शनों, हाई प्रोफाइल हत्याओं और पाकिस्तानी समाज में बढ़ते धार्मिक कट्टरपंथ से भरे रहे हैं.
आसिया के पाकिस्तान छोड़ने का मामला बहुत संवेदनशील है और पिछले कई दावे गलत साबित हुए हैं. उनके वकील सैफ उल मुलूक का कहना है कि हालांकि उनकी आसिया बीबी से सीधे बात नहीं हुई है, लेकिन सूत्रों की जानकारी से लगता है कि वह कनाडा गई हैं जहां उनकी बेटियां भी हैं.
मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल के दक्षिण एशिया उपनिदेशक ओमर वाराइच ने इस बात पर राहत व्यक्त की है कि एक शर्मनाक अनुभव का अंत हुआ है और आसिया बीबी और उनका परिवार सुरक्षित है.
उन्होंने कहा, "उनकी गिरफ्तारी ही नहीं होनी चाहिए थी, लगातार जान का खतरा झेलने की बात ही छोड़िए." ओमर वाराइच के अनुसार ये मामला पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून के खतरों और उन्हें खत्म करने की फौरी जरूरत को दिखाता है.
पाकिस्तान में 2010 में आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी. पानी के गिलास से शुरू हुआ झगड़ा उनके ईशनिंदा का जानलेवा अपराध बन गया था. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी किया.
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खेत से कोर्ट तक
2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले में रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी. इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की. मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती. इस बात पर तकरार शुरू हुई. बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया.
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भीड़ का हमला
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खेत में हुई तकरार के बाद भीड़ ने आसिया बीबी के घर पर हमला कर दिया. आसिया बीबी और उनके परिवारजनों को पीटा गया. पुलिस ने आसिया बीबी को बचाया और मामले की जांच करते हुए हिरासत में ले लिया. बाद में उन पर ईशनिंदा की धारा लगाई गई. 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा बेहद संवेदनशील मामला है.
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ईशनिंदा का विवादित कानून
1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून लागू किया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईशनिंदा की आड़ में ईसाइयों, हिन्दुओं और अहमदी मुसलमानों को अकसर फंसाया जाता है. छोटे मोटे विवादों या आपसी मनमुटाव के मामले में भी इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है.
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पाकिस्तान राज्य बनाम बीबी
2010 में निचली अदालत ने आसिया बीबी को ईशनिंदा का दोषी ठहराया. आसिया बीबी के वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला आपसी मतभेदों का है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. आसिया बीबी को मौत की सजा सुनाई. तब से आसिया बीवी के पति आशिक मसीह (तस्वीर में दाएं) लगातार अपनी पत्नी और पांच बच्चों की मां को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
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मददगारों की हत्या
2010 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने आसिया बीबी की मदद करने की कोशिश की. तासीर ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग कर रहे थे. कट्टरपंथी तासीर से नाराज हो गए. जनवरी 2011 में अंगरक्षक मुमताज कादरी ने तासीर की हत्या कर दी. मार्च 2011 में ईशनिंदा के एक और आलोचक और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की भी इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई.
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हत्याओं का जश्न
तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों ने हीरो जैसा बना दिया. जेल जाते वक्त कादरी पर फूल बरसाए गए. 2016 में कादरी को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद कादरी के नाम पर एक मजार भी बनाई गई.
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न्यायपालिका में भी डर
ईशनिंदा कानून के आलोचकों की हत्या के बाद कई वकीलों ने आसिया बीबी का केस लड़ने से मना कर दिया. 2014 में लाहौर हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. इसके खिलाफ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत में इस केस पर सुनवाई 2016 में होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले एक जज ने निजी कारणों का हवाला देकर बेंच का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
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ईशनिंदा कानून के पीड़ित
अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी की सजा से जुड़ा फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले को लेकर पाकिस्तान पर काफी दबाव है. अमेरिकी सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक सिर्फ 2016 में ही पाकिस्तान में कम से 40 कम लोगों को ईशनिंदा कानून के तहत मौत या उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कई लोगों को भीड़ ने मार डाला.
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अल्पसंख्यकों पर निशाना
ईसाई, हिन्दू, सिख और अहमदी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं. इस समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान में उनके साथ न्यायिक और सामाजिक भेदभाव होता रहता है. बीते बरसों में सिर्फ ईशनिंदा के आरोपों के चलते कई ईसाइयों और हिन्दुओं की हत्याएं हुईं.
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कट्टरपंथियों की धमकी
पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों ने धमकी दी थी कि आसिया बीबी पर किसी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जाए. तहरीक ए लबैक का रुख तो खासा धमकी भरा था. ईसाई समुदाय को लगता था कि अगर आसिया बीबी की सजा में बदलाव किया गया तो कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आएंगे. और ऐसा हुआ भी.
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बीबी को अंतरराष्ट्रीय मदद
मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देशों की सरकारों ने आसिया बीबी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की मांग की थी. 2015 में बीबी की बेटी पोप फ्रांसिस से भी मिलीं. अमेरिकन सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस ने बीबी की सजा की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद से अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने की अपील की थी.
बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्होंने इस मामले से बरी कर दिया. आसिया को बरी किए जाने के खिलाफ आई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों ने विरोध किया. लेकिन आसिया सुरक्षित रहीं. अब आसिया बीबी ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. बताया जाता है वो कनाडा में रहने लगी हैं.
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आसिया का मामला
आसिया बीबी पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की एक मजदूर हैं. उन्हें पहली बार 2010 में ईशनिंदा कानून के तहत सजा मिली. पिछले साल बरी किए जाने तक वह मौत की सजा के तामील होने का इंतजार कर रही थीं. उनका केस फौरन ही पूरे पाकिस्तान में प्रसिद्ध हो गया और उसने दुनिया भर के लोगों का ध्यान देश में बढ़ रहे कट्टरपंथ की ओर आकर्षित किया जहां ईशनिंदा का मामला उत्तेजक मामला है. इसके लिए पाकिस्तान के कानून में मौत की सजा का प्रावधान है, सिर्फ इस्लाम के अपमान के आरोप भर से देश में लिंचिंग के मामले सामने आए हैं.
जब से सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर में आसिया बीबी को बरी किए जाने के फैसले के खिलाफ की गई अपील ठुकराई है, वे देश छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन समझा जाता है कि जब तक कोई देश उन्हें शरण नहीं दे देता, अधिकारियों ने उन्हें सुरक्षा हिरासत में ले रखा है. आम तौर पर पाकिस्तान में ईशनिंदा के बहुत से मामलों में मुसलमान ही मुसलमानों पर ही आरोप लगाते हैं, लेकिन अधिकार समूहों का कहना है धार्मिक अल्पसंख्यक, खासकर ईसाई अक्सर ऐसे विवादों में फंस जाते हैं. आरोपों का इस्तेमाल व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए भी किया जाता है.
आसिया बीबी का ममाला इस मायने में खास है कि इसकी वजह से दो दो प्रमुख राजनीतिज्ञों की हत्या की जा चुकी है और आसिया बीबी को साथी कैदियों के हमले के डर से जेल में ज्यातातर समय सेल में बिताना पड़ा है.
इस्लामी कट्टरपंथी गुट नियमित रूप से आसिया बीबी को मौत की सजा देने की मांग करते रहे हैं जबकि नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि वे पाकिस्तान में रहती हैं तो उनकी जान को खतरा है. अक्टूबर में सर्वोच्च अदालत द्वारा उन्हें रिहा किए जाने के बाद देश कई दिनों तक तहरीक ए लब्बैक पाकिस्तान गुट के हिंसक प्रदर्शनों की चपेट में रहा. इस गुट ने सेना में विद्रोह और आसिय़ा बीबी को रिहा करने वाले जजों की हत्या का आह्वान किया था.
पाकिस्तान में ईसाईयों की आबादी सिर्फ दो प्रतिशत है. वे पाकिस्तानी समाज के सबसे निचले तबके में आते हैं और आम तौर पर झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं. पाकिस्तान में इस धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोग स्वीपर, क्लीनर और रसोइयों का काम करते हैं.