क्या जिहादियों के आगे घुटने टेक चुका है पाकिस्तान?
शामिल शम्स
९ नवम्बर २०१८
आसिया बीबी या तो पाकिस्तान छोड़ दे या उसे दुनिया छोड़ने पर ही मजबूर कर दिया जाएगा. कट्टरपंथी जिस तरह से बीबी की जान के पीछे पड़े हैं, उससे पता चलता है कि पाकिस्तान की हुकूमत किसके हाथ में है.
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पाकिस्तान ने आसिया बीबी की जिंदगी से दस साल छीन लिए. 1971 में पैदा हुई बीबी ने अपने जीवन के सबसे अहम साल जेल में बिताए हैं. पांच बच्चों की मां आसिया बीबी. 2009 में उस पर ईशनिंदा का आरोप लगा और 2010 में उसे फांसी की सजा सुनाई गई.
पाकिस्तान में किसी को जेल भिजवाने के लिए ईशनिंदा का आरोप लगा देना काफी है. आसिया बीबी के मामले में लगभग एक दशक बाद 31 अक्टूबर 2018 को देश के सुप्रीम कोर्ट ने उसके हक में फैसला सुनाया. दुनिया भर में उदारवादियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को सराहा.
अदालत के फैसले का तार्किक नतीजा तो यही होना चाहिए था कि बीबी की फौरन रिहाई हो जाती. लेकिन अधिकारियों को मजबूरन हफ्ता भर बीबी को जेल में ही रखना पड़ा. इस्लामी कट्टरपंथी उसकी फांसी की मांग करते रहे और अदालत के खिलाफ सड़कों पर उतर आए.
कई शहरों में उन्होंने दुकानों और गाड़ियों को आग लगा दी. वे चिल्लाते रहे कि ईशनिंदा करने वाले को जीने का कोई हक नहीं है. तहरीक ए लब्बैक नाम के संगठन ने तो यहां तक ऐलान कर दिया कि बीबी की रिहाई का फैसला लेने वाले जजों की जान ले लेनी चाहिए. वे तो फौजियों से भी अपील करने लगे कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के खिलाफ विद्रोह कर दें.
इन संजीदा धमकियों के बावजूद पाकिस्तान सरकार कट्टरपंथियों को कड़ा जवाब नहीं दे सकी. प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने डर के मारे आसिया बीबी के देश से बाहर जाने पर रोक लगाने की बात भी मान ली.
सरकार ने तहरीक ए लब्बैक के साथ अपने समझौते को यह कहते हुए सुरक्षित रखा कि वह सड़कों पर और हिंसा नहीं चाहती. ऐसा भी मुमकिन है कि सरकार सिर्फ स्थिति से निपटने के लिए थोड़ा और वक्त हासिल कर रही थी. बुधवार को खबर आई कि आसिया बीबी को जेल से रिहा कर दिया गया है और शायद उसे जल्द ही देश से बाहर भी भेज दिया जाए ताकि उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके.
बीबी का यह मामला दिखाता है कि ईशनिंदा आज भी पाकिस्तान में एक संवेदनशील मुद्दा है. और भी अहम यह है कि 1980 के दशक में बने ईशनिंदा कानून को बदला ही नहीं जा सकता. इसका विरोध करना या फिर इसमें बदलाव की मांग करने को भी ईशनिंदा ही माना जाता है. 2011 में दो नेताओं की इसी कारण जान भी गई. दोनों बीबी का समर्थन कर रहे थे और कानून बदलने की पैरवी भी कर रहे थे.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीबी की रिहाई का फैसला सकारात्मक जरूर है लेकिन जिस कानूनी बुनियाद पर जजों ने फैसला सुनाया है, वह समस्याओं से भरी है. जजों ने कहा कि बीबी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले. इस तरह का फैसला कोई मिसाल कायम नहीं करता. सब जानते हैं कि पाकिस्तान में झूठे सबूत खड़े करना कितना आसान है.
इस वक्त जरूरत यह है कि पाकिस्तान के नेता साथ बैठ कर देश की विवादित इस्लामी कानून व्यवस्था को बदलने पर चर्चा करें. मुझे उम्मीद तो नहीं है कि वो सरकार, जिसका सबसे अहम अंग उसकी सेना है, वो कट्टरपंथी इस्लाम पर अपना रुख बदल सकेगी. क्योंकि देश चलाने वालों के पास भारत के खिलाफ नफरत फैलाने का और सेना के लिए देश के बजट का बड़ा हिस्सा ऐंठने का यही एक तरीका है.
लेकिन फिर भी हालिया घटनाएं पाकिस्तानी नेताओं, सेनाध्यक्षों और न्याय पालिका के लिए एक खतरे की घंटी जैसी हैं. उन्हें यह समझना होगा कि कानून व्यवस्था में बदलाव अब जरूरी हो गए हैं. अगर सरकार और अदालत ने ऐसा नहीं किया, तो आने वाले सालों में देश पर उनका कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा और पाकिस्तान को सड़कों पर बैठे धर्म के ठेकेदार चला रहे होंगे.
वैसे, लगता है कि पाकिस्तान पहले ही बेकाबू हो चुका है. देश की सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद भी आसिया बीबी इसलिए जेल से नहीं निकल पाई कि कट्टरपंथी उसे मार डालेंगे. इससे पता चलता है कि पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र बनने के रास्ते पर निकल चुका है.
फिलहाल अटकलें लग रही हैं कि बीबी को जल्द ही देश से बाहर ले जाया जाएगा या फिर शायद वह बाहर जा चुकी है. लेकिन सवाल यह उठता है कि अदालत के फैसले के बाद बीबी अपने देश में ही एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में क्यों नहीं जी सकती. ऐसा क्यों जरूरी है कि जान बचाने के लिए उसे किसी पश्चिमी देश में शरण लेनी पड़े? क्या पाकिस्तान एक सामान्य देश की तरह काम नहीं कर सकता?
अब वक्त आ गया है कि पाकिस्तान 1980 के दशक में अपनाए गए खतरनाक रास्ते को छोड़ दे. अपने दुश्मन भारत से लड़ने की सनक ने पाकिस्तान को अफगानिस्तान में रणनीतियां बनाने पर मजबूर कर दिया है और इससे वह इतना कमजोर हो गया है कि देश की शक्तिशाली सेना को भी जिहादियों के आगे घुटने टेकने पड़ रहे हैं.
आसिया बीबी: एक गिलास पानी के लिए मौत की सजा
पाकिस्तान में 2010 में आसिया बीबी नाम की एक ईसाई महिला को मौत की सजा सुनाई गई थी. पानी के गिलास से शुरू हुआ झगड़ा उनके ईशनिंदा का जानलेवा अपराध बन गया था. लेकिन सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी किया.
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खेत से कोर्ट तक
2009 में पंजाब के शेखपुरा जिले में रहने वाली आसिया बीबी मुस्लिम महिलाओं के साथ खेत में काम कर रही थी. इस दौरान उसने पानी पीने की कोशिश की. मुस्लिम महिलाएं इस पर नाराज हुईं, उन्होंने कहा कि आसिया बीबी मुसलमान नहीं हैं, लिहाजा वह पानी का गिलास नहीं छू सकती. इस बात पर तकरार शुरू हुई. बाद में मुस्लिम महिलाओं ने स्थानीय उलेमा से शिकायत करते हुए कहा कि आसिया बीबी ने पैंगबर मोहम्मद का अपमान किया.
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भीड़ का हमला
स्थानीय मीडिया के मुताबिक खेत में हुई तकरार के बाद भीड़ ने आसिया बीबी के घर पर हमला कर दिया. आसिया बीबी और उनके परिवारजनों को पीटा गया. पुलिस ने आसिया बीबी को बचाया और मामले की जांच करते हुए हिरासत में ले लिया. बाद में उन पर ईशनिंदा की धारा लगाई गई. 95 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले पाकिस्तान में ईशनिंदा बेहद संवेदनशील मामला है.
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ईशनिंदा का विवादित कानून
1980 के दशक में सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून लागू किया. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि ईशनिंदा की आड़ में ईसाइयों, हिन्दुओं और अहमदी मुसलमानों को अकसर फंसाया जाता है. छोटे मोटे विवादों या आपसी मनमुटाव के मामले में भी इस कानून का दुरुपयोग किया जाता है.
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पाकिस्तान राज्य बनाम बीबी
2010 में निचली अदालत ने आसिया बीबी को ईशनिंदा का दोषी ठहराया. आसिया बीबी के वकील ने अदालत में दलील दी कि यह मामला आपसी मतभेदों का है, लेकिन कोर्ट ने यह दलील नहीं मानी. आसिया बीबी को मौत की सजा सुनाई. तब से आसिया बीवी के पति आशिक मसीह (तस्वीर में दाएं) लगातार अपनी पत्नी और पांच बच्चों की मां को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे.
तस्वीर: picture alliance/dpa
मददगारों की हत्या
2010 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर ने आसिया बीबी की मदद करने की कोशिश की. तासीर ईशनिंदा कानून में सुधार की मांग कर रहे थे. कट्टरपंथी तासीर से नाराज हो गए. जनवरी 2011 में अंगरक्षक मुमताज कादरी ने तासीर की हत्या कर दी. मार्च 2011 में ईशनिंदा के एक और आलोचक और तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की भी इस्लामाबाद में हत्या कर दी गई.
तस्वीर: AP
हत्याओं का जश्न
तासीर के हत्यारे मुमताज कादरी को पाकिस्तान की कट्टरपंथी ताकतों ने हीरो जैसा बना दिया. जेल जाते वक्त कादरी पर फूल बरसाए गए. 2016 में कादरी को फांसी पर चढ़ाए जाने के बाद कादरी के नाम पर एक मजार भी बनाई गई.
तस्वीर: AP
न्यायपालिका में भी डर
ईशनिंदा कानून के आलोचकों की हत्या के बाद कई वकीलों ने आसिया बीबी का केस लड़ने से मना कर दिया. 2014 में लाहौर हाई कोर्ट ने निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. इसके खिलाफ परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की. सर्वोच्च अदालत में इस केस पर सुनवाई 2016 में होनी थी, लेकिन सुनवाई से ठीक पहले एक जज ने निजी कारणों का हवाला देकर बेंच का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया.
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ईशनिंदा कानून के पीड़ित
अक्टूबर 2018 में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी की सजा से जुड़ा फैसला सुरक्षित रख लिया. इस मामले को लेकर पाकिस्तान पर काफी दबाव है. अमेरिकी सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस के मुताबिक सिर्फ 2016 में ही पाकिस्तान में कम से 40 कम लोगों को ईशनिंदा कानून के तहत मौत या उम्र कैद की सजा सुनाई गई. कई लोगों को भीड़ ने मार डाला.
तस्वीर: APMA
अल्पसंख्यकों पर निशाना
ईसाई, हिन्दू, सिख और अहमदी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय का हिस्सा हैं. इस समुदाय का आरोप है कि पाकिस्तान में उनके साथ न्यायिक और सामाजिक भेदभाव होता रहता है. बीते बरसों में सिर्फ ईशनिंदा के आरोपों के चलते कई ईसाइयों और हिन्दुओं की हत्याएं हुईं.
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कट्टरपंथियों की धमकी
पाकिस्तान की कट्टरपंथी इस्लामी ताकतों ने धमकी दी थी कि आसिया बीबी पर किसी किस्म की नरमी नहीं दिखाई जाए. तहरीक ए लबैक का रुख तो खासा धमकी भरा था. ईसाई समुदाय को लगता था कि अगर आसिया बीबी की सजा में बदलाव किया गया तो कट्टरपंथी हिंसा पर उतर आएंगे. और ऐसा हुआ भी.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. K. Bangash
बीबी को अंतरराष्ट्रीय मदद
मानवाधिकार संगठन और पश्चिमी देशों की सरकारों ने आसिया बीबी के मामले में निष्पक्ष सुनवाई की मांग की थी. 2015 में बीबी की बेटी पोप फ्रांसिस से भी मिलीं. अमेरिकन सेंटर फॉर लॉ एंड जस्टिस ने बीबी की सजा की आलोचना करते हुए इस्लामाबाद से अल्पसंख्यक समुदाय की रक्षा करने की अपील की थी.
बीबी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए उन्होंने इस मामले से बरी कर दिया. आसिया को बरी किए जाने के खिलाफ आई अपील को सुप्रीम कोर्ट ने सुनने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का लोगों ने विरोध किया. लेकिन आसिया सुरक्षित रहीं. अब आसिया बीबी ने पाकिस्तान छोड़ दिया है. बताया जाता है वो कनाडा में रहने लगी हैं.