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इंजीनियरिंग और टेक्नीकल एजुकेशन का मक्का

१८ जून २०११

आखन पश्चिमी जर्मनी का छोटा सा शहर है, लेकिन इंजीनयरिंग और टेक्नोलजी की पढ़ाई के मामले में इसका बड़ा नाम है. इसकी वजह है आरडब्लूटीएच आखन यूनिवर्सिटी जहां हजारों विदेशी छात्र अपना भाग्य बना रहे हैं.

The logo of RWTH Aachen University that is famous for technical and engineering education across the world. Copyright: DW/Ashok Kumar
तस्वीर: DW/Ashok Kumar

कोलकाता से आए सायम अनुरॉय चौधरी आरडब्ल्यूटीएच आखन यूनिवर्सिटी में लेजर इन डेंटेस्ट्री की पढा़ई कर रहे हैं. वह कहते हैं, "टेक्नोलजी के मामले में जर्मनी का काफी नाम है. आरडब्ल्यूटीएच यूनिवर्सिटी बेहतरीन यूनिवर्सिटी है. यहां भारत से काफी सारे इंजीनियर आते हैं. इसके अलावा दूसरे एशियाई और अफ्रीकी देशों से भी लोग आते हैं. इंजीनियरिंग के लिए तो सोचने की जरूरत ही नहीं है, आंख बंद करके आ सकते हैं." यही वजह है कि दुनिया भर के हजारों छात्र आखन की आरडब्ल्यूटीएच यूनिवर्सिटी की तरफ खिंचे चले आते हैं.

क्यों खास है आरडब्ल्यूटीएच

1870 में स्थापित यह यूनिवर्सिटी यूरोप की अग्रणी यूनिर्सिटियों में शामिल है. अब कोशिश इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की हो रही है. यह जिम्मेदारी संभाल रही टीम की सदस्य विक्टोरिया बुश कहती हैं, "हमारी खासियत इंजीनियरिंग, आईटी और नेचुरल साइंसेज हैं. आरडब्ल्यूटीएच आखन यूनिवर्सिटी में कुल छात्रों की संख्या लगभग 30 हजार है. हमारे यहां बैचलर, मास्टर्स और डॉक्टरेट कोर्सेज हैं. हमारे एकेडमिक स्टाफ में लगभग चार हजार सदस्य हैं जबकि प्रोफेसर्स की संख्या साढ़े चार सौ है. नौ अलग अलग फैकल्टीज हैं."

आरडब्लूटीएच यूरोप की अग्रणीय यूनिवर्सिटों में शुमार होती हैतस्वीर: DW/Ashok Kumar

आखन यूनिवर्सिटी के रिसर्च संस्थानों में जो काम होता है, वह सीधे तौर पर मौजूदा उद्योग, वाणिज्य और पेशेवर जरूरतों से जुड़ा होता है. इसीलिए तो नामी जर्मन कंपनियों के हर पांच बोर्ड मेंबर्स में से एक ने आरडब्ल्यूटीएच आखन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की होती है. इसके अलावा फिलिप्स, माइक्रोसॉफ्ट और फोर्ड जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों ने आखन में अपने रिसर्च संस्थान खोले हैं. तभी तो इस यूनिवर्सिटी में पढाई करने वाले छात्रों को बेहतर भविष्य का भरोसा होता है.

तुर्की से आए अब्दुल कहते हैं, "यहां पढ़ना आसान तो नहीं है. लेकिन जब आप अपनी पढ़ाई पूरी कर लेते हैं तो बाहर जाकर आप कह सकते हैं कि हां, मैंने आखन में पढ़ाई की है. आसान नहीं है, लेकिन इसका फायदा आपको ही तो मिलता है." श्रीलंकाई मूल के रंजन बालाचंद्रन की भी यही राय है. वह कहते हैं, "जिन लोगों ने आखन से पढ़ाई की है, उन्हें बहुत अच्छी नौकरियों मिलती हैं. यहां पढ़ाई करना आसान नहीं है. बहुत मुश्किल है. लेकिन अगर आपने यहां पढ़ाई की है तो नौकरी पक्का मिल जाएंगी. यह जर्मन एमआईटी की तरह है."

भारत और आरडब्ल्यूटीएच

जो रुतबा अमेरिका में एमआईटी यानी मैसाच्युसेट इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलजी का है, वहीं भारत में आईआईटी का है. इस बात को आरडब्ल्यूटीएच भी मानता है. दोनों संस्थानों के बीच स्टूडेंट्स एक्सचेंज प्रोग्राम भी है. भारतीय संस्थानों के साथ आरडब्ल्यूटीएच यूनिवर्सिटी का सहयोग बढ़ाने पर काम कर रहे डॉक्टर फोटिओस रिजवानिस बताते हैं, "सितंबर 2010 से हम छात्र एक्सचेंज प्रोग्राम चला रहे हैं. इसके तहत आरडब्ल्यूटीएच यूनिवर्सिटी से पांच छात्र आईआईटी में पढ़ाई करने जाते हैं. और वहां के पांच छात्र यहां आते हैं. अब अगस्त में आईआईटी मद्रास से पांच छात्र यहां आ रहे हैं और हमारे यहां से छात्र वहां जाएंगे."

विक्टोरिया बुश और फोटिओस रिजवानिसतस्वीर: DW/Ashok Kumar

हाल के सालों में इस यूनिवर्सिटी में विदेशी छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इनमें सैंकड़ों भारतीय भी शामिल हैं. वैसे आम तौर पर ज्यादातर भारतीय छात्रों की पसंद अमेरिका और ब्रिटेन जैसे ही देश होते हैं क्योंकि वहां अंग्रेजी बोली जाती है, जबकि जर्मनी जर्मन भाषी देश है. ऐसे में, जर्मन यूनिवर्सिटियों के लिए विदेशी छात्रों को आर्षकित करना थोड़ा सा मुश्किल काम होता है. ऐसी ही राय है रिजीवानिस की. वह कहते हैं, "भारतीय छात्रों के लिए सबसे बड़ी समस्या जर्मन भाषा है. हमारे मास्टर कोर्सेज अंग्रेजी में हैं लेकिन बैचलर कोर्स जर्मन में हैं. जर्मनी में पढ़ने के लिए जर्मन बहुत जरूरी है. इसीलिए बहुत से छात्र अमेरिका, ब्रिटेन या फिर ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में पढ़ाई करने जाते हैं. वहां अग्रेजी भाषा है जो उन्हें आसान पड़ती है. इसीलिए अपनी यूनिवर्सिटी का प्रचार करना हमारे लिए थोड़ा मुश्किल है."

एक मुश्किल या एक अवसर

वैसे हर चुनौती में एक अवसर छिपा होता है. यही बात जर्मन के बारे में भी कही जा सकती है. विक्टोरिया बुश कहती हैं, "यह आप पर निर्भर करता है कि आप इसे समस्या के तौर पर देखते हैं या फिर एक अवसर के तौर पर. भारतीय छात्र अंग्रेजी में ही पढ़ना चाहते हैं लेकिन मेरी निजी राय है कि कोई भी देश भाषा से जुड़ा होता है. इसीलिए जिस देश में आप पढ़ रहे हैं, वहां की भाषा सीखना भी आपके लिए फायदेमंद हो सकता है. आपके बहुत से दोस्त बनेंगे और आपका प्रोफेशनल नेटवर्क और दायरा बढ़ता है. इसके अलावा भारतीय छात्र यहां पढ़ाई के बाद इंजीनियर के तौर पर काम कर सकते हैं. भारतीय कंपनी भी शायद आपको प्राथमिकता दे क्योंकि आपको जर्मन संस्कृति और जर्मन लोगों के काम करने की सोच और तरीका पता है. यह आपको और सफल बना सकता है."

यूरोप ही नहीं, अब यह यूनिवर्सिटी दुनिया भर के छात्रों की मंजिल हैतस्वीर: DW/Ashok Kumar

मीडिया इंफोरमेटिक और सॉफ्टवेयर सिस्टम इंजीनियरिंग जैसे विषय भारतीय छात्रों को आरडब्ल्यूटीएच ला रहे हैं. इसके अलावा बायोमेडिकल इंजीनियरिंग, मेटोलॉजिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिक पावर इंजीनियरिंग और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में भी बहुत से छात्र पढ़ाई करना चाहते हैं. नेचुरल साइंसेज में भी उनकी खूब दिलचस्पी होती है.

मस्ती की पाठशाला

ह्यूमेटीज में पढ़ाई करने वाली सांद्रा बहुत खुश है कि वह आरडब्ल्यूटीएच में आई हैं. वह कहती हैं, "यह एक चुनिंदा यूनिवर्सिटी है. यहां बेहतरीन ही छात्र आते हैं. मुझे यह शहर और यहां के लोग पंसद हैं. आखन के बारे में यह ऐसा सोचती हूं. आखन छोटा और सुदंर सा शहर है. दिल्ली, मुंबई या फिर चेन्नई जैसे शहरों से बहुत छोटा. आबादी है लगभग ढाई लाख, जिनमें तीस से चालीस हजार यूनिवर्सिटी छात्र हैं. इसीलिए यह शहर साइंस, टेक्नोलजी, इंजीनियरिंग के मामले में बहुत आगे है.

वियतनाम के वा मिंग थिंग भी अच्छा इंजीनियर बनने के लिए आरडब्ल्यूटीएच पहुंचे हैं. वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि यहां बहुत से देशों के छात्र हैं. यहां से बेल्जियम और नीदरलैंड्स की सीमा भी नजदीक है. तो यह ग्लोबल सिटी कहा जा सकता है. मेरे अंकल तो बोले कि वहां तुम्हे असली जर्मन कम मिलेंगे."

इसीलिए आप आखन को विभिन्न संस्कृतियों का मिलन कह सकते हैं जहां दुनिया भर के युवा एक दूसरे को जान और समझ सकते हैं. सांद्रा बताती हैं, "यहां आपको बहुत से चीनी और भारतीय छात्र मिलते हैं. बहुत मजा आता है. आप पार्टी में जाइए तो बहुत से लोग मिलते हैं. आप उनसे अंग्रेजी में बात करते हैं. अंग्रेजी बोलने की प्रैक्टिस हो जाती है. मेरा अनुभव तो अच्छा ही रहा है."

पश्चिमी जर्मनी में बसा छोटा सा शहर आखन चहल पहल से भरपूर हैतस्वीर: DW/Ashok Kumar

भारतीयों को भी इसमें खूब मजा आता है. सायम अनुरॉय चौधरी से कहते हैं, "अगर आपको एंजॉय करना है तो थोड़ा बहुत जर्मन तरीके भी अपनाने होंगे. इनका कल्चर थोड़ा अलग है. ये लोग बहुत फुटबॉल क्रेजी हैं. आप इनके साथ फुटबॉल देखो, तो पता चलता है कि फुटबॉल का क्या मजा है. वैसे हम लोग यहां थोड़ा क्रिकेट भी खेलते हैं."

शुरुआती मुश्किलें

वैसे अलग संस्कृति और अलग परिवेश में आने पर शुरू में कुछ दिक्कतें हो सकतीं हैं. इनमें भाषा के अलावा और कौन कौन सी बातें आती हैं, इस बारे में विक्टोरिया बुश कहती हैं, "जब शुरू में आते हैं तो रहने की काफी समस्या होती है. लेकिन एक या दो महीने के भीतर यह सुलझ जाती है. इसके बाद समाज में घुलना मिलना होता है. यहां बहुत से भारतीय छात्र हैं, तो अगर भारत से कोई पहली बार यहां आता है तो वह अपने लोगों में रहना पसंद करता है. दूसरों से उसका संपर्क और परिचय कम रहता है. लेकिन यह हमारी समस्या है और हम इस पर काम कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि सब संस्कृतियां एक दूसरे से मिलें."

आखन के इलाके में बहुत सी नामी कंपनियों के रिसर्च संस्थान हैंतस्वीर: BilderBox

वैसे आपस में एक दूसरे को जानना, सिर्फ विदेशी छात्रों के लिए नहीं, बल्कि जर्मन छात्रों के लिए भी जरूरी है. यह पढ़ाई में तो मदद करता ही है, आपके व्यक्तित्व को भी निखारता है. और मिल जुल कर मस्ती का करने तो मजा ही कुछ और है. सांद्रा कहती हैं, "यहां पर कई तरह के प्रोग्राम होते हैं. मसलन कंट्री इवनिंग, जहां आपको दुनिया भर के लोग मिलते हैं. अगर आप किसी से भी बात करें तो हर कोई बहुत अच्छा है. हर कोई आपकी मदद करना चाहता है जो विदेशी छात्रों के लिए आखन में बहुत अच्छी बात है."

और कुछ टाइम मिले तो पार्ट जॉब भी कर सकते हैं. जैसे सायम अनुरॉय चौधरी करते हैं. वह कहते हैं, "खाली टाइम में मैं थोड़ा बहुत काम कर लेता हूं. बहुत सारी स्टूडेंट जॉब्स मिलती हैं. आप रिसर्च असिस्टेंट भी बन सकते हैं. आप कुछ पैसा कमाना चाहते हैं तो ज्यादा मुश्किल नहीं आती."

करियर की मंजिल आरडब्ल्यूटीएच

दुनिया के कोने से अच्छे करियर का सपना लिए छात्र इस यूनिवर्सिटी में आते हैं. अपने फील्ड के अलावा वे दूसरे क्षेत्रों में दिलचस्पी विकसित करते हैं. दरअसल यूनिवर्सिटी के विभिन्न संस्थान आपस में एक दूसरे से जुड़े हैं. मिसाल के तौर पर कंप्यूटर साइंस और जीव विज्ञान विभाग के साथ मिल कर सामाजिक विज्ञान विभाग स्कूल इंजीनियरिंग पर फोकस कर रहा है. ऐसे कार्यक्रम आरडब्लूटीएच की खास पहचान हैं.

आरडब्ल्यूटीएच आखन यूनिवर्सिटी का इंटरनेशनल ऑफिसतस्वीर: DW/Ashok Kumar

विक्टोरिया बुश बताती हैं, "हमारा एक बड़ा मकसद अपनी यूनिवर्सिटी को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाना है. भारत भी हमारा लक्ष्य है, क्योंकि भारत विकासशील देश है जो बड़ी तेजी के तरक्की कर रहा है. हम भारत के प्रतिभाशाली छात्रों को अपनी तरफ आर्कषित करना चाहते हैं. भारत बहुत बड़ा देश है और वहां शिक्षा भी काफी अच्छी है. हम चाहते हैं कि भारतीय छात्रों से जरिए जर्मनी की रिसर्च क्षमता को बढ़ाना चाहते हैं."

अगर आप हाई टेक्नीकल फील्ड या इंजीनियरिंग में करियर बनाना चाहते हैं तो आरडब्ल्यूटीएच यूनिवर्सिटी आपकी मंजिल हो सकती है.

रिपोर्टः अशोक कुमार, आखन

संपादनः एस गौड़

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