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इंटरनेट की सेंसरशिप को चुनौती देता वीपीएन

२६ मार्च २०२१

अभिव्यक्ति और निजता की आजादी के लिए इंटरनेट पर वीपीएन को लेकर काफी उत्साह और उत्सुकता है. इसके डाटा की आवाजाही निगरानी के रडार में नहीं आ पाती. टोर जैसे स्वतंत्र ब्राउजर भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.

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तस्वीर: Getty Images

अपनी ऑनलाइन आलोचना से परेशान हुकूमतें जब वेबसाइटों को ब्लॉक कर देती हैं तो वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क एक आपात समाधान की तरह सामने आता है. वीपीएन की बदौलत आप एक आभासी सुरंग के जरिए मुफ्त इंटरनेट तक पहुंच सकते हैं. लेकिन क्या उस इंटरनेट सेवा प्रदाता पर भरोसा किया जा सकता है? बहुत से देश अपने नेटवर्कों पर कथित रूप से अवांछित वेबसाइटों को ब्लॉक कर रहे हैं या आलोचनात्मक और विपक्षी आवाजों की शिनाख्त के लिए इंटरनेट ट्रैफिक को खंगाल रहे हैं.

इंटरनेट जब राज्य नियंत्रित इंट्रानेट में तब्दील हो जाए, तो उसका इस्तेमाल करने वालों को समस्याएं आने लगती हैं. वे डॉयचे वेले की वेबसाइट या दूसरे फ्री मीडिया की वेबसाइट को एक्सेस नहीं कर सकते हैं. विपक्षी एक्टिविस्ट जिन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर विरोध जताने के लिए जमा होते भी हैं, तो पता चलता है कि वे भी अचानक ऑफलाइन हो जाते हैं. अपनी सुविधा के लिए सत्ताएं जब भी इंटरनेट को सेंसर करती हैं, कई यूजर अपनी असहायता में सरलतम समाधानों की शरण लेते हैं. अक्सर ये समाधान वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क के रूप में होता है.

विभिन्न ठिकानों में मौजूद कंपनियों के अपने अंदरूनी नेटवर्कों (इंट्रानेट) को इंटरनेट के माध्यम से इन्क्रिप्टेड चैनलों में जोड़ने के लिए ही वीपीएन निर्मित किए गए थे. ठीक इसी सिद्धांत का इस्तेमाल करते हुए वीपीएन, नियंत्रित नेटवर्कों की दुनिया में एक निजी कंप्यूटर को मुक्त इंटरनेट के सर्वर से जोड़ने में भी काम आता है.

इंटरनेट सेवा प्रदाताओं के बड़े वादे

वीपीएन अब सर्वसुलभ हैं - हर किसी के लिए सहज उपलब्ध. उसके अनुरूप प्रोग्राम मुफ्त उपलब्ध हैं. कुछ चार्टों में तो वीपीएम ऐप टॉप पर हैं. लेकिन यूजर आमतौर पर इस स्थिति में जोखिमों के बारे में नहीं सोचते हैं. वीपीएन ऐप बहुतायत में हैं और प्रदाताओं के वादे भी बड़े हैं. उनका कहना है कि अगर अपने सेलफोन में आप उनके सॉफ्टवेयर डाउनलोड करें, तो आप सुरक्षित रूप से ऑनलाइन हो सकते हैं. और वे ये वादा भी करते हैं कि आपका निजी डाटा किसी भी सूरत में कोई संभावित बुरी शक्ति हासिल नहीं कर सकती है. एक बात साफ हैः अगर वीपीएन कारगर रहता है, तो आप दूसरे देशों की स्ट्रीमिंग सेवाओं का इस्तेमाल कर सकते हैं, सरकारी सेंसरशिप को बाइपास कर सकते हैं और ब्लॉक की गई वेबसाइटों को एक्सेस कर सकते हैं.

वीपीएन कैसे काम करता है?

वीपीएन आपके स्मार्टफोन या कंप्यूटर से दूर स्थित वीपीएन सर्वर के बीच एक इन्क्रिप्टेड यानी अभेद्य टनल बना देता है. इस छोर से आप पब्लिक इंटरनेट में दाखिल होते हैं. जब आप वेब सर्फिंग कर रहे होते हैं, तो ये आपकी विजिट की हुई वेबसाइट ऑपरेटरों को ऐसे देखता है, जैसे आपका कंप्यूटर ही वीपीएन सर्वर हो.

मिसाल के लिए अगर आप जर्मनी में स्मार्टफोन या कंप्यूटर इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन आपका वीपीएन सर्वर जापान में स्थित है, तब जिन वेबसाइटों का दौरा आप करते हैं, उनके ऑपरेटर यही समझेंगे कि आप जापान में हैं. छुपन-छिपाई का यह खेल इस तथ्य पर आधारित है कि आप अपने खुद के आईपी एड्रेस के साथ प्रकट नहीं होते हैं, बल्कि वीपीएन सर्वर के जरिए मौजूद होते हैं.

वीपीएन में क्या आप पहचाने जा सकते हैं?

बुनियादी रूप से देखें तो इंटरनेट ट्रैफिक पर नियंत्रण करने वाली हुकूमतें किसी को वीपीएन इस्तेमाल करते हुए पहचान सकती हैं. लेकिन वे ये नहीं जान सकती कि कोई वहां क्या कर रहा है. यानी वीपीएन टनल में डाटा की आवाजाही नहीं देखी जा सकती है. इस वजह से कई तानाशाहों ने वीपीएन को प्रतिबंधित किया है. ये सत्ताएं विदेशों में स्थित वीपीएन सर्वरों के एक्सेस को ब्लॉक कर देती हैं या कुछ दुर्लभ मामलों में यूजर्स को व्यक्तिगत रूप से प्रताड़ित भी करती हैं.

लेकिन सरकारें हर एक वीपीएन के खिलाफ व्यापक कार्रवाई नहीं कर सकती हैं क्योंकि कई विदेशी कंपनियां भी अपने अंदरूनी संचार के लिए वीपीएन पर निर्भर रहती हैं. लिहाजा जब तक सरकारें विदेशी वीपीएन सर्वरों के आईपी पतों को अपने फायरवॉल्स में डालकर उन्हें ब्लॉक नहीं कर देती हैं, तब तक सेंसरशिप को नाकाम करने के लिए वीपीएन का इस्तेमाल संभव है.

वीपीएन में मेरा डाटा कितना सुरक्षित है?

यहां एक दूसरा कमजोर बिंदु सामने नजर आता हैः वीपीएन के जरिए आपका सारा डाटा भी चक्कर लगाता है. लेकिन क्या आप उस इंटरनेट कंपनी के बारे में कि वह कौन है और क्या करती है - इस बारे में वाकई जानते हैं? अनिवार्यतः डाटा की प्राइवेसी के लिए आपको अपने इंटरनेट सेवा प्रदाता पर भरोसा करना पड़ेगा.  क्योंकि यही प्रदाता टनल को भी ऑपरेट करता है. कंपनी यह भी देख सकती है कि आपने कौनसी वेबसाइट खोली,  कब और कितनी बार. यह इंटरनेटट सर्विस प्रदाता कंपनी आपके संचार का गैर इन्क्रिप्टेड कंटेंट भी देख सकती है, जैसे सामान्य ईमेल.

यह डाटा स्टोर किया जा सकता है और खासतौर पर सर्फिंग व्यवहार का डाटा मार्केटिंग उद्देश्यों के लिए बेचा भी जा सकता है. वीपीएन प्रदाताओं के लिए यह एक कामयाब बिजनेस मॉडल की तरह है. वह सब्सक्रिप्शन मॉडल के रूप में वीपीएन इस्तेमाल करने के लिए ग्राहकों से पैसा ले सकते हैं. और यह करते हुए वे विज्ञापन उद्योग को वेबसाइट विजिट का डाटा भी बेच सकते हैं.

बहुत बुरी स्थिति हुई तो वे सरकारी अधिकारियों को भी यही डाटा बेच सकते हैं या उन्हें सप्लाई कर सकते हैं. डाटा न बेचने के इंटरनेट प्रोवाइडर के वादे के बावजूद डाटा का स्टोर होना ही अपने आप में जोखिम भरा है. कोई दिन नहीं जाता जब नए डाटा लीक की खबर नहीं आती, सुरक्षा में सेंध से या आपराधिक हैकरों के हमलों से.

अव्वल तो अच्छा यही है कि डाटा इकट्ठा ही न किया जाए. अगर वीपीएन प्रोवाइडर वादा करता है कि वह ऐसा नहीं करेगा, तो आप को उस पर यकीन करना पड़ेगा. लेकिन पहली बार में ही अगर कोई सिस्टम डाटा नहीं कलेक्ट कर रहा होता है, तो वो ज्यादा सुरक्षित कहा जाएगा. टोर यही करता है. सीधे ब्राउजर के जरिए टोर एक तिहरी सुरंग बनाता है. टोर के जरिए आप वास्तव में सुरंगों के बारे में नहीं, बल्कि प्याज की परतों के बारे में जान रहे होते हैं. इसीलिए यह नाम भी पड़ा हैः टोर यानी द अनियन राउटिंग- एक परतदार राउटिंग.

हरियाली फैला रहा है ये इंटरनेट सर्च इंजन

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टोर का फलसफाः प्राइवेसी बाय डिजाइन

अच्छी बात यह है कि इनमें से कोई भी परत आपको नहीं जानती है और आपकी पहचान और ठिकाने के बारे में एक साथ तो कुछ भी नहीं जान सकती हैं. कौनसे वेबपेज आपने खोले, देखे, कब और कितनी बार, यह सारा डाटा कहीं भी स्टोर नहीं किया जा सकता हैं क्योंकि वह सूचना उपलब्ध ही नहीं रहती है. इसीलिए इस समूची चीज को कहा जाता है "एक सुनियोजित निजता" यानी प्राइवेसी बाय डिजाइन. कई वॉलन्टियरों की मदद से संचालित टोर एक गैर लाभकारी प्रोजेक्ट है. यूजरों के लिए मुफ्त. लेकिन एक छोटी सी कमी हैः इंटरनेट कनेक्शन कभीकभार झटका दे सकता है. दुर्भाग्यवश, इतनी निजता रफ्तार और सहूलियत की कीमत पर ही हासिल हो पाती है.

विदेशी आईपी एड्रेस वाले अपने ब्राउजर की मदद से अगर आप तेजी से इंटरनेट सर्फ करना चाहते हैं और अगर निजता की आला दर्जे की सुरक्षा नहीं चाहते हैं, तो आपको एक वीपीएन प्रोवाइडर सर्विस का इस्तेमाल करना चाहिए जिस पर आप यथासंभव भरोसा कर सकें. इसीलिए यह जरूरी है कि वीपीएन से समझौता करने वाले पोर्टलों पर भरोसा न किया जाए. वे स्वतंत्र नहीं हैं और इनमें वीपीएन प्रदाताओं के प्रायोजित लिंक रहते हैं. बेहतर यही है कि आप किसी भरोसेमंद डिजिटल सुरक्षा विशेषज्ञ से जानकारी हासिल करें या संबद्ध विश्वसनीय जर्नलों में आई ताजा वीपीएन समीक्षाओं को पढ़ लें.

निशान जो हम नेट पर छोड़ जाते हैं

जब इंटरनेट पर कंप्यूटर परस्पर संचार करते हैं, आईपी पतों की अदलाबदली भी होती है. कोई आईपी एड्रेस नहीं, तो कोई वर्ल्ड वाइड वेब भी नहीं. हालांकि आईपी पतों के आधार पर व्यक्तियों की शिनाख्त की संभावनाओं को अक्सर बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जाता है क्योंकि आईपी पते व्यक्तियों से बामुश्किल ही मजबूती से जुड़े होते हैं. 

यही स्थिति कुकीज के साथ भी है. यूजर उन्हें बंद कर सकता है और कुकीज वैसे भी फेसबुक और गूगल जैसी विशालकाय इंटरनेट कंपनियों के लिए बहुत अधिक अहमियत रखते भी नहीं हैं. गूगल की हालिया घोषणा में भी इसकी झलक दिखती है, जिसमें कहा गया था कि गूगल अपने क्रोम ब्राउजर में थर्ड पार्टी कुकीज को इकट्ठा नहीं करना चाहता है.

वैसे भी, इंटरनेट यूजर की शिनाख्त फिंगरप्रिंटिग प्रक्रियाओं के जरिये ज्यादा सटीक तौर पर हो सकती है. इसका मतलब ये है कि टाइम जोन, कीबोर्ड लेआउट, इन्स्टॉल्ड प्लग-इन और ग्राफिक सामग्री के निर्माण से जुड़ी विशेषताओं जैसी प्रासंगिक सूचनाओं को ब्राउजर जमा करता है.

इन फिंगरप्रिंट्स के जरिये 99 प्रतिशत से अधिक एक्युरेसी के साथ यूजर्स की आमतौर पर पहचान की जा सकती है. बड़ी इंटरनेट कंपनियों में यह तरीका बहुत लोकप्रिय है. उदाहरण के लिए एमेजॉन या गूगल में लॉगइन से जुड़ते ही फिंगरप्रिंट एक सही पहचान से भी सीधे तौर पर जुड़ जाता है. संयोगवश ये फिंगरप्रिंट्स इन विशाल कंपनियों की साइटों पर न सिर्फ प्रत्यक्ष रूप से जमा कर लिए जाते हैं, बल्कि थर्ड पार्टी वेबसाइटों पर भी जमा हो जाते हैं.

रिपोर्ट: ऑलिवर लीनो/एसजे 

रोशनी के जरिए डाटा ट्रांसफर

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