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इंटरनेट के दुश्मनों की सूची जारी

Priya Esselborn१२ मार्च २०१२

अंतरराष्ट्रीय संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स ने साईबर सैंसरशिप के विश्व दिवस के मौके पर "इंटरनेट के दुश्मन" नाम की अपनी सूची प्रकाशित की है. 12 देशों की सूची में पहली बार बहरीन और बेलारूस को भी शामिल किया गया है.

तस्वीर: march12.rsf.org

दुनिया भर में प्रेस की स्वतंत्रता पर नजर रखने वाले संगठन रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स के मुताबिक इस सूची में शामिल किए गए देश इंटरनेट पर सबसे ज्यादा पाबंदी लगाते हैं और सूचनाओं को दबाने की कोशिश करते हैं. "एनेमीज ऑफ इंटरनेट" यानी इंटरनेट के दुश्मन नाम की सूची में बहरीन, बेलारूस, म्यांमार, चीन, क्यूबा, ईरान, उत्तर कोरिया, सउदी अरब, सीरिया, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान और वियतनाम के नाम हैं. संगठन ने यह भी कहा है कि 2011 में मेक्सिको और भारत जैसे देशों में भी पत्रकारों की हत्या और इंटरनेट को सेंसर करने के कई चिंताजनक मामले सामने आए हैं.

चीन सबसे आगे

रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स की जर्मन शाखा के माथियास स्पीलकाम्प के मुताबिक "चीन वेबसाइटों को ब्लॉक करने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च करता है और बड़ी तादाद में विशेषज्ञों को इस काम के लिए रखता है". स्पीलकाम्प बताते हैं कि "चीन लोगों को विशेष तरह की वेबसाइटों तक पहुंचने से और गूगल जैसे सर्च इंजन को सर्च के सही नतीजे दिखाने से भी रोक सकता है. वे इंटरनेट की रफ्तार को किसी भी जगह कम कर सकते हैं. यहां तक कि वे किसी भी इलाके में इंरनेट को बंद करवा सकते हैं." सेंसरशिप से अकसर डॉयचे वेले जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन की वेबसाइट भी प्रभावित होती है.

तस्वीर: AP

स्पीलकाम्प के मुताबिक चीन ने इंटरनेट सेंसरशिप के मामले में बहुत प्रगति कर ली है. कुछ साल पहले तक वह जरूरत पड़ने पर इंटरनेट को पूरी तरह ही बंद कर देता था. ऐसा मिस्र में भी देखने को मिला जब 2011 में हुई क्रांति के वक्त अधिकारी ऐसा करते थे. लेकिन अब चीन में उदाहरण के लिए जब प्रदर्शन या दंगे होते हैं तब इंटरनेट आजकल "अचानक बहुत ही धीमा हो जाता है और वीडियो या फोटो दूसरे यूजरों को भेजना असंभव हो जाता है." श्पीलकाम्प के मुताबिक इससे यह साबित होता है कि चीन के लिए अब साइटों को मोनिटर करना और साथ ही इंटरनेट और उसे इस्तेमाल करने वालों पर निगरानी रखना कोई समस्या नहीं है. यानी इस क्षेत्र में वह दुनियाभर में सभी देशों से बहुत ही आगे है.

कई देश और

दुनिया में रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स के मुताबिक कई ऐसे देश भी हैं जो इंटरनेट को सेंसर करना चाहते हैं लेकिन जिनके पास चीन की तरह तकनीक और ऐसा करने के लिए विशेषज्ञ नहीं हैं. खासकर अफ्रीका में जिंबाब्वे जैसे कई ऐसे देश हैं जिन्होंने वेबसाइटों को ब्लॉक करने की कोशिश की, लेकिन ऐसा करने में बहुत सफल नहीं रहे. इसका एक कारण यह भी है कि अफ्रीकी देशों में इंटरनेट के विपरीत एसएमएस यानी टैक्स्ट मैसेजिंग ज्यादा लोकप्रिय है.

माथिआस स्पीलकाम्प का कहना है कि दुनिया में कई ऐसे देश भी हैं जिन्हें ताजा सूची में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन जिनपर रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स नजर रख रहा है. इस तरह के 14 देश हैं, जिनमें भारत भी शामिल हैं. दूसरे देश हैं ऑस्ट्रेलिया, मिस्र, एरिट्रेआ, फ्रांस, कजाखस्तान, मलेशिया, रूस, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, थाईलैंड, ट्यूनीशिया, तुर्की और संयुक्त अरब अमीरात. इसके अलावा मोरक्को, पाकिस्तान, अजरबाईजान और ताजिकिस्तान में भी चिंताजनक घटनाएं हुई हैं.

माथियास स्पीलकाम्पतस्वीर: Reporter ohne Grenzen

इस बार लीबिया और वेनेजुएला को सूची से हटा दिया गया है. दोनों देश पिछली बार सूची में थे. इसका कारण संगठन के मुताबिक यह है कि लीबिया में इस वक्त सरकार ही नहीं है जो इंटरनेट को सेंसर करने का आदेश दे सके. वेनेजुएला में भी पिछले साल विवादास्पद कानून को पारित करने के बाद प्रेस स्वतंत्रता बनी रही.

सेंसर करने के लिए बेहतर तकनीक

रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स के मुताबिक एक ट्रेंड यह देखा जा रहा है कि जो देश उच्च स्तर की तकनीक खरीद सकते हैं वहां प्रेस की स्वतंत्रता कम होती दिख रही है. उज्बेकिस्तान या बेलारूस 2010 की सूची में नहीं थे. माथियास स्पीलकाम्प बताते हैं कि अकसर चीन नई तकनीक बेच रहा है ताकि सरकारें अपने देश में इंटरनेट में वेबसाईट ब्लॉक कर पाएं. इसके अलावा फ्रांस, जर्मनी या अमेरिकी कंपनियां भी तकनीक बेचने में सहायता करती हैं.

स्पीलकाम्प का कहना है कि जर्मन कंपनी सीमेंस की काफी आलोचना हुई है क्योंकि उसने ईरान को एसएमएस को मोनिटर करने की तकनीक बेची. अमेरिका और यूरोप की कंपनियों को ईरान जैसे देशों को इस तरह की तकनीक बेचने से रोकने के लिए नए रास्ते तलाशे जा रहे हैं. स्फीलकाम्प को डर है कि भविष्य में वर्ल्ड वाईड वेब जैसी चीज नहीं रहेगी और इंटरनेट अलग अलग क्षेत्रीय इंटरनेट में बंट जाएगा. "मेरा मानना है कि धीरे धीरे इस तरह की स्थिति विकसित हो रही है कि लोगों को लगता है कि वह इंटरनेट देख रहे हैं. लेकिन हकीकत यह है कि वह अपनी सरकार की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा इंटरनेट देख रहे हैं जिन्हें उनके हिसाब से डिजाइन किया गया है, जिसपर सरकार निगरानी रखती है और जिसपर वह हस्तक्षेप कर रही होती है.

सेंसरशिप के मायने

वैसे सेंसरशिप की ही समस्या नहीं है. रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स सीरिया का उदाहरण देता है. वहां अधिकारी फेसबुक जैसे सोशल नेटवर्किंग साइटों पर घुसकर लोगों के पासवर्ड जानने की कोशिश कर रहे हैं. इसके पीछे मकसद यह है कि लोगों के बारे में जानकारी प्राप्त कर उनके दोस्तों का पता लगाया जा सके. सबसे खतरनाक यह होगा कि पहचान चुराकर उसे सरकार के हित में इस्तेमाल किया जा सकेगा, उदाहरण के लिए किसी के नाम से सरकार का प्रचार और उसकी प्रशंसा करने में. और वह भी सेंसरशिप के साथ साथ, उसके लिए जरूरी तकनीक और ज्ञान वर्चुअल दुनिया में नए शस्त्रीकरण का रूप ले सकती है.

रिपोर्ट: क्लाउस यानसेन/पीई
संपादन: महेश झा

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