बांग्लाब्रेल से शानदार मदद
७ जुलाई २०१४![बांग्लादेश में नेत्रहीन बच्चे](https://static.dw.com/image/17725026_800.webp)
बांग्लादेश में ब्रेल लिपि में किताबों की कमी है. ब्रेल लिपि लिखने का एक ऐसा तरीका है जिसमें कागज में छेद करके अक्षर लिखे जाते हैं. इससे नेत्रहीन व्यक्ति अक्षरों को छूकर पहचान सकते हैं. बांग्लादेश में केवल एक ही प्रेस है जो ब्रेल लीपि में किताबें छापती है लेकिन यह पूरे देश के लिए काफी नहीं. ऊपर से ब्रेल किताबें बहुत महंगी हैं और एक साल के लिए कोर्स की पुस्तकें करीब 250 डॉलर की मिलती हैं.
कैसे पढ़ाएं
2013 जून में रगीब हसन ने अपने देश में आंखों से लाचार बच्चों के बारे में पढ़ा. हसन अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ाते हैं और उस वक्त वह वहीं रह रहे थे. हसन ने कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई की है और वह इससे बांग्लादेशी बच्चों की मदद करना चाहते थे. उन्हें पता चला कि सबसे पहले किताबों को इंटरनेट में लाना जरूरी है. इसके लिए हर किताब को शुरू से लेकर अंत तक कंप्यूटर पर टाइप किया गया.
पहली कक्षा से लेकर 10वीं कक्षा तक करीब 100 किताबें हैं. इन्हें कंप्यूटर पर लिखने के लिए रगीब ने फेसबुक पर एक संदेश पोस्ट किया और लोगों से मदद मांगी. कुछ ही घंटों में लगभग एक हजार लोग इस काम के लिए तैयार हो गए. फेसबुक में अब बांग्ला ब्रेल पेज के 3,000 से ज्यादा सदस्य हैं. रगीब हसन ग्रुप के कामों पर नजर रखते हैं.
अलग अलग फॉर्मैट
बांग्ला ब्रेल के दो अंग हैं- एक है किताबों का डिजिटल संस्करण बनाना और दूसरा है ऑडियो किताबें बनाना. डिजिटल संस्करण की मदद से बांग्ला ब्रेल के स्वयंसेवी यूनिकोड में किताबें लिखते हैं और इनका इस्तेमाल हर ब्रेल प्रिंटर में किया जा सकता है.
जिन नेत्रहीन व्यक्तियों को ब्रेल पढ़ने में दिक्कत होती है वह ऑडियो बुक्स सुन सकते हैं. हसन के मुताबिक 2013 के अंत तक उनके संगठन ने 25 प्रतिशत किताबों के ऑडियो संस्करण बना लिए. इनके लिए बांग्ला ब्रेल के स्वयंसेवी किताब को अपने फोन या कंप्यूटर पर रिकॉर्ड करते हैं. इसके बाद इन्हें बांग्ला ब्रेल की वेबसाइट पर लोड किया जाता है.
यह प्रोजेक्ट केवल सोशल मीडिया से चलता है. हसन कहते हैं कि हर नई किताब के लिए फेसबुक पर नया पोस्ट जाता है. मदद करने वाले फिर तय करते हैं कि कौन कितने पन्नों की जिम्मेदारी लेगा. फिर इन्हें टाइप कर दिया जाता है.
बच्चों को मदद
बांग्लादेश में 10 लाख दृष्टिहीन लोग हैं जिनमें से 50,000 बच्चे हैं. कुछ सरकारी स्कूलों में इनके लिए जगह है और कई एनजीओ अपने स्कूल चलाते हैं. बांग्ला ब्रेल की मदद से किताबों को मुफ्त में इंटरनेट से लिया जा सकता है. एक नेत्रहीन बच्चे के पिता इससे बहुत खुश हैं, "मेरा बेटा 10वीं कक्षा में है और इस साल देखने की ताकत खो दी. उसे ब्रेल लिपि नहीं आती और नौवीं कक्षा में उसने ऑडियो की मदद से पढ़ा."
कुछ और मां बाप भी अपने बच्चों के लिए ऑनलाइन सामग्री ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं. वह बांग्ला ब्रेल से लगातार मदद मांगते हैं. 2014 में बांग्ला ब्रेल ने डॉयचे वेले बेस्ट ऑफ ब्लॉग्स में बेहतरीन इनोवेशन का पुरस्कार जीता. बॉब्स में जज रहे शाहिदुल आलम कहते हैं कि इससे लाखों लोगों की उम्मीद जगी है, "एक ऐसे देश में जहां देखने वालों के लिए भी शिक्षा पा सकना मुश्किल है, वहां नेत्रहीन लोगों के लिए मौके और भी कम हैं. अंधविश्ववास, पूर्वाग्रह और जिंदा रहने की लड़ाई, इन मुश्किलों को पार करना केवल इस प्रोजेक्ट से मुमकिन हुआ है."
डॉयचे वेले के पुरस्कार की मदद से हसन को उम्मीद है कि लोगों का ध्यान नेत्रहीनों की तरफ जाएगा. हसम कहते हैं कि सोशल मीडिया की मदद से लोग समाज सेवा में हाथ बंटा सकते हैं और बांग्ला ब्रेल में इनोवेशन यही है.
रिपोर्टः अराफतुल इस्लाम/एमजी
संपादनः आभा मोंढे