इंडोनेशिया पर सबसे सक्रिया माउंट मेरापी ज्वालामुखी मंगवार को फट गया और वह बड़े पैमाने पर राख उगल रहा है. राख का मलवा 6000 मीटर तक की ऊंचाई तक पहुंच रहा है.
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इंडोनेशिया में कई ज्वालामुखी हैं लेकिन माउंट मेरापी ज्वालामुखी सबसे सक्रिय है. वह मंगलवार को फट पड़ा और फिलहाल राख के गुबार 6000 मीटर तक की ऊंचाई तक जा रहे हैं. उन्होंने आसपास के गांवों को सलेटी धूल से भर दिया है और लोगों को आतंकित कर दिया है. पास के हवाई अड्डे को बंद कर दिया गया है. इंडोनेशिया की सांस्कृतिक राजधानी योगियाकर्ता के निकट स्थित ज्वालामुखी से निकली रेत से मिली राख 10 किलोमीटर दूर तक आसमान से बरसती रही.
बोयोलाली रिजेंसी के एक निवासी जरमाजी ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया, "कम से कम पांच मिनट तक कड़ाके का शोर होता रहा और मेरे घर से गुबार दिखाई देता रहा." अधिकारियों ने ज्वालामुखी पर चेतावनी के स्तर में कोई बदलाव नहीं किया है, लेकिन उन्होंने कुछ समय के लिए सोलो शहर के एयरपोर्ट को बंद कर दिया. यह एयरपोर्ट ज्वालामुखी के केंद्र से करीब 40 किलोमीटर दूर है.
इंडोनेशिया की वोल्कैनो एजेंसी ने लोगों से माउंट मेरापी के तीन किलोमीटर के दायरे से बाहर रहने को कहा है. इस इलाके को नोगो जोन घोषित कर दिया गया है और लोगों को ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा और पायरोक्लैस्टिक तत्वों के खिलाफ चेतावनी दी है. पायरोक्लैस्टिक फ्लो तेजी से बहती गर्म गैसों और ज्वालामुखी से निकलने वाले टुकड़ों का मिश्रण है.
माउंट मेरापी ज्वालामुखी पिछली बार 2010 में फटा था और उसकी वजह से 300 लोग मारे गए थे. उस समय 28,000 लोगों को इलाके से हटाना पड़ा था. ये 1930 के बाद इस ज्वालामुखी का सबसे तगड़ा धमाका था. 1994 में भी माउंट मेरापी पर धमाका हुआ था जिसमें 60 लोगों की जान गई थी. इंडोनेशिया 17,000 द्वीपों का देश है और वहां करीब 130 सक्रिय ज्वालामुखी हैं. यह प्रशांत में रिंग ऑफ फायर पर स्थित है जो भौगोलिक अस्थिरता वाला बड़ा इलाका है. यहां टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से नियमित भूकंप होते रहते हैं और ज्वालामुखी सक्रिय रहता है.
समय समय पर फट पड़ने वाले ज्वालामुखी असल में कैसे बनते हैं और वे फटते क्यों हैं? यहां देखिए ज्वालामुखी के बारे में कई दिलचस्प बातें.
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ज्वालामुखी एक पहाड़ होता है जिसके भीतर पिघला लावा भरा होता है. पृथ्वी के नीचे दबी उच्च ऊर्जा यानि जियोथर्मल एनर्जी से पत्थर पिघलते हैं. जब जमीन के नीचे से ऊपर की ओर दबाव बढ़ता है तो पहाड़ ऊपर से फट पड़ता है.
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ज्वालामुखी के नीचे पिघले हुए पत्थरों और गैसों के मिश्रण को मैग्मा कहते हैं. ज्वालामुखी के फटने पर जब यह मैग्मा बाहर निकलता है तो वह लावा कहलाता है.
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ज्वालामुखी फटने पर मैग्मा तो बहता ही है, साथ ही गर्म राख भी हवा के साथ बहने लगती है. जमीन के नीचे हलचल मचने से भूस्खलन होता है और बाढ़ भी आती है.
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ज्वालामुखी से निकलने वाली राख में पत्थर के छोटे छोटे कण होते हैं जिनसे चोट पहुंच सकती है. इसके अलावा बच्चों और बुजुर्गों के फेंफड़ों को इनसे खासा नुकसान पहुंच सकता है.
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ज्वालामुखियों के फटने का नतीजा देखिए कि आज पृथ्वी की सतह का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा करोड़ों सालों पहले निकले लावा के जमने से ही बना है. समुद्र तल और कई पहाड़ भी ज्वालामुखी के लावा की ही देन हैं. इससे निकली गैसों से वायुमंडल बना.
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दुनिया भर में 500 से ज्यादा सक्रिय ज्वालामुखी हैं. इनमें से आधे से ज्यादा 'रिंग ऑफ फायर' का हिस्सा हैं. यह प्रशांत महासागर के चारों ओर ज्वालामुखियों के हार जैसा है, इसलिए इसे रिंग ऑफ फायर कहते हैं.
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कई देशों में ज्वालामुखियों की पूजा होती है. जैसे अमेरिकी प्रांत हवाई में ज्वालामुखियों की देवी पेले की मान्यता है. हवाई में ही दुनिया के सबसे सक्रिय ज्वालामुखी हैं, जिनमें सबसे खतरनाक हैं मौना किया और मौना लोआ.
1982 में ज्वालामुखी की तीव्रता मापने के लिए शून्य से आठ के स्केल वाला वॉल्कैनिक एक्सप्लोसिविटी इंडेक्स बनाया गया. इंडेक्स पर शून्य से दो के स्कोर वाले ज्वालामुखी लघभग रोजाना फटते हैं. तीन के स्कोर वाले ज्वालामुखी का फटना घातक होता है और यह लगभग हर साल होता है.
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चार और पांच स्कोर वाले ज्वालामुखी कई दशकों या सदियों में फटते हैं. छह और सात स्कोर वाले ज्वालामुखियों से सुनामी आते हैं या भूकंप होता है. स्कोर आठ के कम ही ज्वालामुखी हैं. इस तीव्रता वाला पिछला विस्फोट ईसा से 24,000 वर्ष पहले हुआ था.
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ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं. पहला- खोखली पहाड़ी जैसा, जिससे लावा निकलता है. दूसरा- ऊंचे पर्वत जैसा, जिसकी कई सुरंगों से लावा बहता है. तीसरी किस्म समतल पहाड़ियों जैसी होती है.