इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव पर जोर क्यों दे रहा है भारत?
राहुल मिश्र
८ जनवरी २०२१
2014 में जब ऐक्ट ईस्ट नीति की घोषणा हुई थी, तब इसका फोकस दक्षिणपूर्व और पूर्वी एशिया के देश थे. पिछले छह सालों में इस नीति में कई छोटे बड़े परिवर्तन आए हैं.
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1 जून 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने शांगरी ला भाषण में भारत की इंडो-पैसिफिक नीति की औपचारिक रूप से घोषणा की. उन्होंने यह भी कहा कि भारत एक स्वतंत्र, मुक्त, और समावेशी इंडो-पैसिफिक व्यवस्था का हिमायती है और इसके लिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है.
इंडो-पैसिफिक नीति को ऐक्ट ईस्ट और आसियान देशों को केंद्र में रखने की बात कहकर उन्होंने दक्षिण पूर्वी देशों के संशयों को भी खतम करने की कोशिश की. साथ ही क्वाड के जरिए अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया के साथ चतुष्कोणीय सम्बंध मजबूत करने की तरफ भी बड़े कदम उठाए गए. यहां यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि भारत क्वाड को इंडो-पैसिफिक से सीधे जोड़ने से बचता रहा है.
इसकी प्रमुख वजह यह है कि भारत और जापान दोनों ही मानते हैं कि चीन को अनायास भड़काना बेमतलब की कवायद है. दूसरी ओर, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया इसे इंडो-पैसिफिक और चीन दोनों से जोड़ कर देखते हैं. पिछले दो से ज्यादा वर्षों में इन चारों देशों के क्वाड को लेकर दिए गए वक्तव्यों से यह बात साफ है.
बहरहाल, भारतीय नीति निर्धारकों को जल्द ही यह अहसास हुआ कि अगर इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय व्यवस्था को मूर्त रूप देना है तो इस तरफ तेजी से और बड़े कदम उठाने होंगे. इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव इसी सोच का नतीजा है.
आज से लगभग एक साल पहले चौदहवीं ईस्ट एशिया शिखर वार्ता के दौरान बैंकॉक में नवंबर 2019 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव की घोषणा की. कुछ ही दिनों बाद जब भारत और जापान के बीच 2+2 विदेश और रक्षामंत्री-स्तरीय बैठक में भी भारत ने औपचारिक तौर पर इसकी बात की. तब से लेकर आज तक भारत की ऐक्ट ईस्ट, इंडो-पैसिफिक और नेबरहुड नीतियों में इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव एक अहम स्थान रखता है.
चलिए भारत के स्मार्ट गांव में
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इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव के सात स्तम्भ
हाल ही में इसकी झलक एक बार फिर तब देखने को मिली जब अपनी 5 से 7 जनवरी 2021 की श्रीलंका यात्रा के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत और श्रीलंका के बीच इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव के तहत सहयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया. कोलम्बो पोर्ट में भारतीय निवेश को भी इसी का हिस्सा मान कर देखा जाता है.
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भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव के सात स्तंभ हैं:
समुद्री सुरक्षा
समुद्री पारिस्थिकी
समुद्री संसाधन
विज्ञान, तकनीक, और शैक्षिक सहयोग
आपदा जोखिम को कम करना और आपदा प्रबंधन
क्षमता निर्माण और संसाधनों को साझा करना और
ट्रेड कनेक्टिविटी और समुद्री यातायात
भारतीय विदेश नीति के नजरिए से देखें तो यह एक बड़ी पहल थी क्योंकि इससे पहले इंडो-पैसिफिक क्षेत्रीय व्यवस्था को मूर्त रूप देने के लिए भारत ने कोई बड़ी पहल नहीं की थी. श्रीलंका, बांग्लादेश और दशिण एशिया के देश, मॉरिशस, मालदीव और हिंद महासागर के तमाम देश, म्यांमार, सिंगापुर, मलेशिया, वियतनाम, थाईलैंड और दक्षिणपूर्व एशिया के तमाम देश, और यही नहीं जापान और कोरिया समेत पूर्वी एशिया के देशों के साथ ही ऑस्ट्रेलिया और ओशियानिया के देश भी इस पहल का बड़ा हिस्सा बन रहे हैं.
समुद्री व्यापार और यातायात, समुद्री इंफ्रास्ट्रक्चर पर फुर्ती से साथ साथ काम करने की कवायद के पीछे कहीं न कहीं चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना का साया तो है ही लेकिन साथ ही इस बात का अहसास भी है कि सहयोग की बुनियादी जरूरतों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर, यातायात सुरक्षा की गारंटी और संसाधनों के जिम्मेदाराना ढंग से उपयोग को मिलकर और नियम-बद्ध तरीके से अमल में नहीं लाया गया तो आगे आने वाला समय मुशकिल होगा. साफ है इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव का मूल उद्देश्य है सुरक्षित, सुदृढ़ और मजबूत नियम-बद्ध और शांतिपरक क्षेत्रीय व्यवस्था को मजबूत करना.
नरेंद्र मोदी ने दिए इतने सारे नारे
कोरोना महामारी के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "आत्मनिर्भर भारत" का नारा दिया है. इससे पहले भी वे ऐसे कई नारे दे चुके हैं जो लोगों की जुबान पर चढ़ गए.
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दवाई भी कड़ाई भी
राजकोट में एम्स की आधारशिला रखने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2021 के लिए नया नारा दिया है. नया नारा कोरोना महामारी के संदर्भ में हैं और प्रधानमंत्री मानते हैं कि भारत इस महामारी से लड़ने में कामयाब हुआ है.
तस्वीर: IANS
आत्मनिर्भर भारत
कोरोना महामारी के मुश्किल दौर में नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का नारा दे कर देशवासियों को इस दिशा में सोचने को कहा कि जिन चीजों को भारत आयात करता है, उन्हें घरेलू बाजार में ही कैसे बनाया जाए.
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अच्छे दिन आएंगे
2014 के आम चुनावों से पहले मोदी ने नारा दिया "अच्छे दिन आने वाले हैं" और लोगों से अपील की कि अगर वे अच्छे दिन चाहते हैं तो उन्हें वोट दें और बड़ी संख्या में लोगों ने उनकी यह बात मानी भी.
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अब की बार, मोदी सरकार
इन्हीं चुनावों में "अबकी बार मोदी सरकार" का नारा भी खूब चला. सिर्फ भारत में नहीं, अमेरिका में भी इसी तर्ज पर "अब की बार, ट्रंप सरकार" सुनाई दिया.
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विकास का नारा
2014 का चुनाव विकास के मुद्दे पर लड़ा गया. हर रैली में मोदी ने चुनाव जीतने के बाद देश में विकास और काला धन वापस लाने की बात कही.
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मेक इन इंडिया
सत्ता में आने के बाद सितंबर 2014 में मोदी ने "मेक इन इंडिया" अभियान की शुरुआत की. आत्मनिर्भर भारत की तरह यहां भी नारे के केंद्र में उत्पादन भारत में कराना ही था.
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स्वच्छ भारत
इसी दौरान "स्वच्छ भारत अभियान" की भी शुरुआत हुई. इंटरनेट में चलने वाले तरह तरह के चैलेंज की तरह इस अभियान के तहत कई सिलेब्रिटी हाथ में झाड़ू लिए नजर आए.
तस्वीर: UNI
जहां सोच, वहां शौचालय
स्वच्छता की बात करते हुए मोदी टॉयलेट के मुद्दे पर भी आए और शौचालय का यह नारा दिया. वैसे चुनावों से पहले भी वे टॉयलेट के मुद्दे को छेड़ चुके थे. तब उन्होंने कहा था, "पहले शौचालय, फिर देवालय."
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बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ
इसके बाद जनवरी 2015 में उन्होंने "बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ" का नारा दिया जिसका मकसद देशवासियों को जागरूक करना और महिलाओं और लड़कियों की स्थिति सुधारना था.
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डिजिटल इंडिया
इसी साल जुलाई में "डिजिटल इंडिया" अभियान की शुरुआत हुई. लक्ष्य सरकारी स्कीमों को इंटरनेट के माध्यम से नागरिकों तक पहुंचाने का था.
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कैशलेस इकोनॉमी
2016 में नोटबंदी का ऐलान करते हुए मोदी ने "कैशलेस इकॉनॉमी" का नारा दिया. हर नागरिक के पास बैंक अकाउंट होने की बात कही गई.
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फिर एक बार
2019 के आम चुनाव में नारा आया, "फिर एक बार मोदी सरकार". नारा सच भी हुआ. देश में एक बार फिर मोदी की ही सरकार आई.
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हर हर मोदी, घर घर मोदी
इन चुनावों में यह फर्क था कि ना अच्छे दिनों की बात हो रही थी और ना ही विकास की. अखबार "हर हर मोदी, घर घर मोदी" वाले नए नारे से भरे रहे.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
मैं भी चौकीदार
मोदी ने "चौकीदार" का नारा दिया तो विपक्ष ने "चौकीदार चोर है" का. मोदी समर्थक "मैं भी चौकीदार" के नारे के साथ सोशल मीडिया पर उतर आए. लोग अपने नाम के आगे चौकीदार लगाने लगे.
2014 में दिए गए इस नारे का अपनी दूसरी पारी में मोदी ने थोड़ा विस्तार कर दिया और इसे.. "सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास" बना दिया.
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अंग्रेजी में भी
सिर्फ हिंदी में ही नहीं, नरेंद्र मोदी ने अंग्रेजी में भी कई नारे दिए हैं जैसे स्टार्ट अप इंडिया स्टैंड अप इंडिया, मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस, जीरो डिफेक्ट जीरो इफेक्ट.
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नियम-बद्ध क्षेत्रीय व्यवस्था है क्या?
तो आखिर यह नियम-बद्ध क्षेत्रीय व्यवस्था है क्या और इस पर भारत इतना जोर क्यों दे रहा है? दरसल नियम-बद्ध क्षेत्रीय व्यवस्था, जिसे रणनीतिकार रूल्स-बेस्ड रीजनल ऑर्डर की संज्ञा भी देते हैं, वह व्यवस्था है जिसमें आधुनिक विश्व के तमाम सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किए जाने वाले नियमों को न सिर्फ मान्यता दी जाती है बल्कि यह माना जाता है कि सभ्य और आधुनिक राष्ट्रों के लिए यह नियम नैतिक तौर पर अनुल्लंघनीय हैं. इन नियमों में प्रमुख हैं – मानवाधिकारों का सम्मान, लोकतंत्र को बढ़ावा, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के पालन में ताकतवर और कमजोर देश के बीच फर्क ना करना, विवादों का शांतिपूर्वक निपटारा और जरूरत आन ही पड़े तो मामले को सुलझाने में अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों की सहायता लेना.
समुद्री जहाजों के नेविगेशन की स्वतंत्रत्रा इससे जुड़े सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद मुद्दों में आता है. महत्वपूर्ण इसलिए कि समुद्र और आकाश किसी एक देश की सम्पत्ति नहीं हैं, न हो सकते हैं. इन्हें "वैश्विक कॉमन्स” की संज्ञा दी जाती है. इस श्रेणी में साइबर जगत, वातावरण, आउटर स्पेस और अंटार्कटिका जैसे मामले आते हैं. ये वो मामले हैं जिन पर एक देश की कब्जे की अनाधिकार चेष्टा को रोकना नियम-बद्ध क्षेत्रीय और विश्व व्यवस्था का जिम्मा. संयुक्त राष्ट्र संघ और ऐसे ही तमाम अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों और कानूनों ने इस व्यवस्था को बचाए रखने की कोशिश की है. हालांकि इस मामले में सफलताओं का गिलास भी अकसर आधा भरा ही पाया जाता है.
बड़े देश छोटों को न परेशान करें और दुष्ट देशों की नियम्बद्ध शांतिपूर्वक मरम्मत हो जाए, यह तो शायद दूसरी दुनिया का चलन हो, धरती पर तो ऐसा होना दिनों दिन मुश्किल हो रहा है. बहरहाल, इस रास्ते पर बढ़ने में कोशिश करने से ही रास्ता निकलेगा और ऐसा भी नहीं है कि नियम-बद्ध क्षेत्रीय व्यवस्था की दिशा में हमें सफलताएं नहीं मिली हैं. हुआ बस यह कि दुनिया के तमाम देश अपनी अपनी छोटी सहूलियतों के लिए बड़े उद्देश्यों को भूल गए हैं.
इंडो-पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव और इस जैसे तमाम छोटे बड़े बहुपक्षीय सहयोग के रास्तों के जरिए ही इंडो-पैसिफिक व्यवस्था का जापान, भारत और ऐसे तमाम देशों का सपना साकार होगा और इसके लिए सभी सामान विचारधारा वाले देशों को पुरजोर कोशिश भी करनी होगी.
दुनिया में चीन के बाद भारत दूसरा सबसे ज्यादा बड़ी आबादी वाला देश है. भारत के कई शहर तो आबादी के मामले में कई देशों को भी पीछे छोड़ते हैं. डालते हैं एक नजर ऐसे ही शहरों और देशों पर.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Werby
दिल्ली
दुनिया भर के शहरों पर 2016 में आई संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में दिल्ली की अनुमानित आबादी 2.64 करोड़ बताई गई है. इस तरह भारत की राजधानी जनसंख्या में अफ्रीकी देश मैडागास्कर (2.62 करोड़) और उत्तर कोरिया (2.55 करोड़) से आगे है.
तस्वीर: Reuters/S. Khandelwal
मुंबई
सपनों का शहर कहे जाने वाले मुंबई की अनुमानित जनसंख्या 2.13 करोड़ है. जिन देशों की जनसंख्या इसके आसपास है उनमें श्रीलंका (2.12 करोड़) और नाइजर (2.24 करोड़) शामिल हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/I. Mukherjee
कोलकाता
कोलकाता पूर्वी भारत का सबसे बड़ा शहर है जिसकी अनुमानित आबादी 1.49 करोड़ है. इस तरह आबादी के लिहाज से कोलकाता अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे को पीछे छोड़ता है जिसकी आबादी 1.44 करोड़ के आसपास है.
तस्वीर: Sirsho Bandopadhyay/DW
बेंगलुरु
भारत में आईटी इंडस्ट्री का हब कहे जाने वाले बेंगलुरु में लगभग 1.04 करोड़ लोग रहते हैं. दुनिया में जिन देशों की आबादी इसके आसपास है उनमें ग्रीस (1.05 करोड़) और पुर्तगाल (1.02 करोड़) शामिल हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Sarkar
चेन्नई
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई की आबादी 1.01 करोड़ बताई गई है. इस तरह आबादी के मामले में चेन्नई जॉर्डन (99.6 लाख) और अजरबैजान (99.4 लाख) जैसे देशों से आगे है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Strdel
हैदराबाद
चार मिनार और अपनी खास बिरयानी के लिए मशहूर हैदराबाद की अनुमानित आबादी 92.1 लाख है. हैदराबाद को आप बेलारूस (94.5 लाख) और ताजिकिस्तान (91 लाख) के बीच में रख सकते हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
अहमदाबाद
अहमदाबाद गुजरात का सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर है जहां लगभग 75.71 लाख लोग बसते हैं. जिन देशों की आबादी अहमदाबाद के आसपास है उनमें सिएरा लियोन (76.50 लाख) और चीन का स्वायत्त क्षेत्र हांगकांग (73.71 लाख) शामिल है.
तस्वीर: Reuters/A. Dave
सूरत
गुजरात का सूरत शहर हीरों के कारोबार के लिए मशहूर है. इस शहर के बाशिंदों की तादाद लगभग 59.02 लाख है. इस तरह उसकी आबादी तुर्कमेनिस्तान (58.50 लाख) से ज्यादा है.
तस्वीर: Ankita Mukhopadhyay/DW
पुणे
हाल के सालों में पुणे ने भारत के अहम शहरों के बीच जगह बनाई है. उसकी अनुमानित आबादी 58.82 लाख है. इस तरह आबादी के मामले में पुणे सिंगापुर (57.57 लाख) और डेनमार्क (57.52 लाख) को भी पीछे छोड़ता है.
तस्वीर: Sanket Wankhade/AFP/Getty Images
जयपुर
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में गुलाबी शहर जयपुर की आबादी 35.49 लाख रहने का अनुमान जताया गया है, जो इरिट्रिया (34.52 लाख), उरुग्वे (34.49 लाख) और बोस्निया-हर्जेगोवनिया (33.23 लाख) से ज्यादा है.