प्लास्टिक की बोतल की जगह तांबे के लोटे में मिलता है पानी
१४ अगस्त २०१९
लगातार तीन बार देश के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा हासिल कर चुकी मध्य प्रदेश की व्यावसायिक नगरी इंदौर में अब प्लास्टिक की बोतलों के उपयोग पर रोक लगाने का सिलसिला चल निकला है.
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मध्य प्रदेश के इंदौर शहर के नगर निगम ने भी शहर को डिस्पोजल फ्री बनाने के लिए बर्तन बैंक बनाया है. पुलिस के उप महानिरीक्षक के कार्यालय में प्लास्टिक की बोतल में पानी की आपूर्ति को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जा चुका है. वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) रुचिर्वान मिश्र ने स्वच्छता मिशन के तहत और प्लास्टिक के विरोध में पूरे परिसर में डिस्पोजेबल प्लास्टिक आइटम, पानी की बोतलों पर न सिर्फ प्रतिबंध लगा दिया है, बल्कि तांबे के लोटे में पानी दिया जाने लगा है.
पुलिस अधीक्षक (मुख्यालय) सूरज वर्मा का कहना है कि शहर तीन साल से स्वच्छता में नंबर वन है और शासन की नीति है कि प्लास्टिक आइटम का उपयोग न किया जाए तो उसी के तहत तांबे के लोटे रखवाए गए हैं.
इसी तरह पर्यावरण संरक्षण के लिए देश के प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान आईआईएम इंदौर ने बड़ा कदम उठाया है. प्रबंधन ने कैंपस में प्लास्टिक की बोतल पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है. अब ना तो आईआईएम के छात्र, ना शिक्षक और ना ही नन टीचिंग स्टाफ पीने के लिए प्लास्टिक की बोतल का उपयोग कर रहा है. अब तो आईआईएम के आयोजनों में भी मेहमानों को बोतल बंद पानी नहीं दिया जा रहा. सभी को पीतल की बोतल और कांच के गिलास में पानी दिया जा रहा है. वहीं छात्रों को कागज या कांच के गिलास में पानी दिया जा रहा है. संस्थान से मिली जानकारी के अनुसार, पर्यावरण बचाने के लिए यह अहम कदम उठाया गया है. संस्थान में प्लास्टिक का उपयोग पूरी तरह बंद हो इसके लिए प्रयास जारी है.
बताया गया है कि आईआईएम ने हरियाली को लेकर भी एक निर्णय लिया है और तय किया गया है कि मीटिंग, सेमिनार, वर्कशॉप या किसी भी कार्यक्रम के लिए कोई मेहमान परिसर में आएगा तो उनसे एक पौधा जरूर लगवाया जाएगा. पौधे पर मेहमान के नाम का बोर्ड भी लगेगा. जन विकास सोसायटी के डायरेक्टर फादर रोई थॉमस का कहना है कि इंदौर को डिस्पोजल और प्लास्टिक फ्री बनाने की मुहिम एक और सार्थक पहल है, जो इंदौर को नई पहचान दिलाने में मददगार होगा.
इससे पहले नगर निगम भी शहर को डिस्पोजल फ्री बनाने की मुहिम के तहत 'बर्तन बैंक' बना चुका है, जो व्यक्ति अपने आयोजनों में डिस्पोजेबल बर्तनों का उपयोग नहीं करता, उसे इस बैंक से स्टील के बर्तन उपलब्ध कराए जा रहे हैं, जिनका उन्हें कोई किराया नहीं देना होता. नगर निगम ने यह बर्तन बैंक एक गैर सरकारी संगठन बेसिक्स के साथ शुरू किया है. इस बैंक को संबंधित व्यक्ति को बताना होता है कि उसने डिस्पोजेबल बर्तन का उपयोग नहीं करने का फैसला लिया है. लिहाजा, उसे बर्तन उपलब्ध कराए जाएं.
पहले कभी इंदौर भी अन्य शहरों की तरह हुआ करता था. यहां जगह-जगह कचरों के ढेर का नजर आना आम था. वर्ष 2015 के स्वच्छता सर्वेक्षण में 25वें स्थान पर रहा इंदौर अब नंबर एक पर पहुंच गया है. इंदौर के लिए यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था, साल 2011-12 में इंदौर सफाई के मामले में 61वें स्थान पर था.
नगर निगम और स्थानीय लोगों के प्रयास से इंदौर की स्थिति धीरे-धीरे बदली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के 'स्वच्छ सर्वेक्षण 2017' में देश में इंदौर को पहला स्थान मिला, तो उसके बाद इंदौर ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. अब यहां का हर नागरिक स्वयं इतना जागरूक है कि वह कचरे के लिए कचरा गाड़ी का इंतजार करता है. 350 से ज्यादा छोटी कचरा गाड़ियां पूरे शहर में घूमती रहती हैं.
जब प्लास्टिक लोगों की जिंदगियों का हिस्सा बना, तो सिर्फ उसके फायदों पर ही सबका ध्यान गया, इस पर नहीं कि यह कमाल का आविष्कार भविष्य के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है. अब प्लास्टिक को अलविदा कहने का वक्त आ गया है.
प्लास्टिक को अपनी जिंदगी से निकालने में सबसे अहम कदम तो यही है कि इसकी दीवानगी को छोड़ा जाए. प्लास्टिक की जगह कपड़े के थैले का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन जनाब की तरह प्लास्टिक की स्ट्रॉ को मुंह में फंसाने की शर्त लगाने की जगह कुछ बेहतर भी सोचा जा सकता है. मैर्को हॉर्ट ने 259 स्ट्रॉ को मुंह में रखने का रिकॉर्ड बनाया था.
तस्वीर: AP
खा जाओ
यूरोपीय संघ सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है. ऐसे में प्लास्टिक की स्ट्रॉ, कप, चम्मच इत्यादि बाजार से गायब हो जाएंगे. इनके विकल्प पहले ही खोजे जा चुके हैं. जैसे कि जर्मनी की कंपनी वाइजफूड ने ऐसे स्ट्रॉ बनाए हैं जिन्हें इस्तेमाल करने के बाद खाया जा सकता है. ये सेब का रस निकालने के बाद बच गए गूदे से तैयार की जाती हैं.
तस्वीर: Wisefood
आलू वाला चम्मच
एक दिन में कुल कितने प्लास्टिक के चम्मच और कांटे इस्तेमाल होते हैं, इसके कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन इतना जरूर है कि दुनिया भर में कूड़ेदान इनसे भरे रहते हैं. भारत की कंपनी बेकरीज ने ज्वार से छुरी-चम्मच बनाए हैं. स्ट्रॉ की तरह इन्हें भी आप खा सकते हैं. ऐसा ही कुछ अमेरिकी कंपनी स्पड वेयर्स ने भी किया है. इनके चम्मच आलू के स्टार्च से बने हैं.
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चोकर वाली प्लेट
जिस थाली में खाएं, उसी को खा भी जाएं! पोलैंड की कंपनी बायोट्रेम ने चोकर से प्लेटें तैयार की हैं. अगर आपका इन्हें खाने का मन ना भी हो, तो कोई बात नहीं. इन प्लेटों को डिकंपोज होने में महज तीस दिन का वक्त लगता है. खाने की दूसरी चीजों की तरह ये भी नष्ट हो जाती हैं. और इन प्लेटों का ना सही तो पत्तल का इस्तेमाल तो कर ही सकते हैं.
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कप और ग्लास
अकेले यूरोप में हर साल 500 अरब प्लास्टिक के कप और ग्लास का इस्तेमाल किया जाता है. नए कानून के आने के बाद इन सब पर रोक लग जाएगी. इनके बदले कागज या गत्ते के बने ग्लास का इस्तेमाल किया जा सकता है. जर्मनी की एक कंपनी घास के इस्तेमाल से भी इन्हें बना रही है. तो वहीं बांस से भी ऑर्गेनिक ग्लास बनाए जा रहे हैं.
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घोल कर पी जाओ
इंडोनेशिया की एक कंपनी अवनी ने ऐसे थैले तैयार किए हैं जो देखने में बिलकुल प्लास्टिक की पन्नियों जैसे ही नजर आते हैं. लेकिन दरअसल ये कॉर्नस्टार्च से बने हैं. इस्तेमाल के बाद अगर इन्हें इधर उधर कहीं फेंक भी दिया जाए तो भी कोई बात नहीं क्योंकि ये पानी में घुल जाते हैं. कंपनी का दावा है कि इन्हें घोल कर पिया भी जा सकता है.
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अपना अपना ग्लास
भाग दौड़ की दुनिया में बैठ कर चाय कॉफी पीने की फुरसत सब लोगों के पास नहीं है. ऐसे में रास्ते में किसी कैफे से कॉफी का ग्लास उठाया, जब खत्म हुई तो कहीं फेंक दिया. इसे रोका जाए, इसके लिए बर्लिन में ऐसा प्रोजेक्ट चलाया जा रह है जिसके तहत लोग एक कैफे से ग्लास लें और जब चाहें अपनी सहूलियत के अनुसार किसी दूसरे कैफे में उसे लौटा दें.
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क्या जरूरत है?
ये छोटे से ईयर बड समुद्र में पहुंच कर जीवों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. समुद्री जीव इसे खाना समझ कर खा जाते हैं. यूरोपीय संघ इन पर भी रोक लगाने के बारे में सोच रहा है. इन्हें बांस या कागज से बनाने पर भी विचार चल रहा है. लेकिन पर्यावरणविद पूछते हैं कि इनकी जरूरत ही क्या है. लोग नहाने के बाद अपना तौलिया भी तो इस्तेमाल कर सकते हैं.
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