1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

इंफ्लूएंजा के वायरस से बचा सकते हैं मेंढक

२० अप्रैल २०१७

वैज्ञानिकों के मुताबिक दक्षिणी भारत में पाये जाने वाले मेंढकों के बलगम (कफ) में एक खास तरह का रसायन मिला है जिसका इस्तेमाल इंफ्लूएंजा के वायरस से निपटने के लिये किया जा सकता है.

Indien Fungoid frog
तस्वीर: picture alliance/picture alliance/Dinodia Photo Library

वैज्ञानिकों के मुताबिक मेंढकों के बलगम में इंफ्लूएंजा के वायरस को मारने की क्षमता होती है. यह खोज उपयोगी और शक्तिशाली एंटी-वायरल ड्रग्स के विकास में मदद कर सकती है लेकिन मेंढकों की कई प्रजातियों आज विलुप्त होने के कगार पर हैं जो वैज्ञानिकों के लिए चिंता का कारण भी है.

तस्वीर: CC BY 3.0/Steveprutz

साइंस पत्रिका "इम्युनिटी" में छपे एक अध्ययन के मुताबिक, मेंढकों की एक खास प्रजाति हाइड्रोफिलैक्स बहुविस्तारा में पाये जाने वाले कण यूरुमिन में फ्लू के वायरस को मारने की क्षमता होती है. शोधकर्ताओं ने चूहों पर इसका परीक्षण किया और देखा कि चूहे, स्वाइन फ्लू नामक एच1एन1 वायरस समेत अन्य फ्लू वायरस को खत्म करने में सक्षम हैं. मेंढकों पर इंफ्लूएंजा वायरस का कोई असर नहीं होता लेकिन बैक्टीरिया और कवक संक्रमणों के साथ-साथ अन्य रोगों से उन्हें खतरा है. इस खोज ने शोधकर्ताओं को एक कारण दिया है जो यह साबित करता है कि मेंढकों के पेप्टाइड बॉन्ड में एंटी वायरल तत्व शामिल हो सकते हैं.

इस खोज के बाद भी इसे दवाई में रूप में विकसित करने में समय लगेगा क्योंकि यूरुमिन कण मानव शरीर में लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकता, ऐसे में वैज्ञानिकों के सामने इसे अधिक स्थायी बनाने की बड़ी चुनौती है. इसके बाद ही इसे उपचार में एक विकल्प के तौर पर देखा जा सकेगा.

वैज्ञानिकों को भरोसा है कि आने वाले समय में इस कण को रासायनिक बदलाव कर इस तरह ढाला जा सकेगा कि यह मनुष्यों के उपयोग में भी आ सके. वैसे इस खोज ने भविष्य की संभावनाओं को बल दिया है और वैज्ञानिकों को भरोसा है कि मेंढकों की अन्य प्रजातियों में ऐसे तत्व जरूर होंगे जो अन्य वायरस से निपटने में कारगर साबित हो सकें और डेंगू बुखार जैसी बीमारियों का सामना करने में सक्षम हो.

साल 2005 में साइंस पत्रिका "जर्नल ऑफ वीरोलॉजी" में छपे एक अध्ययन में कहा गया था कि कुछ मेंढकों की त्वचा में एक खास तरह का रसायन पाया जाता है जो एचआईवी इंफ्केशन से निपटने में कारगर साबित हो सकता है.  

हालांकि यह अध्ययन विलुप्त होने की कगार पर खड़े मेंढकों को बचाने का एक कारण भी देता है. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) की रेड लिस्ट मुताबिक मेंढकों की तकरीबन 466 प्रजातियां गंभीर खतरे में हैं. साल 1980 से लेकर अब तक मेंढकों की करीब 120 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं और इनकी विलुप्तता का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन, आवास की कमी, शिकार और बीमारियों को बताया गया है. 

तस्वीर: picture alliance/Mary Evans Picture Library/P. Morris

एए/एके (एएफपी)

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें