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इंसानी गुणों वाले जानवर, जेनटेन प्राणी

४ नवम्बर २०११

बीमारियों पर शोध करने के लिए वैज्ञानिक प्राणियों के शरीर में मनुष्य के जीन डालते हैं. वैज्ञानिकों का उद्देश्य बीमारियों का पता लगाने और उनके इलाज को विकसित करना होता है लेकिन जीन संवर्धित जानवरों की प्रकृति बदल जाती है.

इस चूहे में सामान्य से हजार जीन्स ज्यादा हैं.तस्वीर: picture-alliance/ dpa

एक के लिए ये जानवर बिलकुल अजीब हैं तो दूसरे के लिए रिसर्च प्रोजेक्ट का सामान, मनुष्य और जानवर का मिश्रण. करीब दल साल से चिकित्सा विज्ञानी जीन और कोषिकाओं की कार्यप्रणाली के बारे में जानकारी इकट्ठा करने के लिए जानवरों और मनुष्य के शरीर के अवयवों को मिला रहे हैं. जर्मनी में बहस चल रही है कि क्या इस तरह के शोध को नैतिक कहा जा सकता है.

मनुष्य के कान वाला चूहातस्वीर: picture alliance/dpa

कुछ सौ साल

तो कुछ ही साल लगेंगे जब धरती पर मनुष्य या जानवर नहीं बल्कि जीन संवर्धित 'जेनटेन' प्राणियों का राज होगा, ये मनुष्य और जानवरों का मिश्रण होंगे और क्या ये तब बचे हुए कुछ एक शुद्ध इंसानों पर राज भी करेंगे? इस भयावह स्थिति का बयान लेखक डीटमार डाथ ने 2008 में अपनी एक किताब, प्रजातियों का खात्मा (डी अबशाफूंग डेयर आर्टेन) में किया है. यह साइंस फिक्शन पूरी तरह काल्पनिक नहीं है. क्योंकि 1980 से इस तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं जिसमें मनुष्य की कोषिकाएं, या आंतरिक अंग जानवरों में प्रत्यारोपित किए जाते हैं. वर्षों से इस तरह के प्रयोग अल्जाइमर या कैंसर जैसी बीमारियों में कोषिकाओं की वृद्धि पर नजर रखने के लिए किए जाते हैं.

मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता वाले चूहे

2002 में येइर राइसनर की टीम ने इस्राएल में वाइत्समान इंस्टीट्यूट में मनुष्य की मूल कोषिकाएं चूहों में डाली. नतीजा हुआ कि चूहों में मनुष्य के जैसी किडनी बन गई लेकिन उनका आकार छोटा था. फिर 2008 में चीन और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने मनुष्य और गाय के भ्रूण का हाइब्रिड भ्रूण बना कर दुनिया में हलचल मचाई. इसके लिए उन्होंने मनुष्य की कोषिकाओं का न्यूक्लियस गाय की ऐसी कोषिका में डाला जिसमें न्यूक्लियस नहीं था. ऐसा करके वैज्ञानिकों को एक हाइब्रिड भ्रूण की मूल कोषिकाएं मिलीं. लाइपजिग में फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट के सेल थेरैपी और इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर फ्रांक एमरिष बताते हैं, "हमारे संस्थान में हम एचयूआईएस चूहों के साथ काम करते हैं, मनुष्य-प्रतिरोधी-चूहे. हमने खून बनाने के लिए जरूरी एक कोषिका को एक चूहे में डाला और फिर उस चूहे में मनुष्य की प्रतिरोधक प्रणाली को बनाया. इससे ऐसे चूहे बने जिनमें 30 फीसदी खून बनाने वाली कोषिकाएं मनुष्य के जैसी है."

बंदरों पर भी कई प्रयोगतस्वीर: BUAV

शोध अहम

एमरिष और उनके साथी शोध कर रहे हैं कि क्यों अंग प्रत्यारोपण के बाद कभी कभी मरीज की प्रतिरोधक प्रणाली शरीर के खिलाफ काम करने लगती है. शोध से पता लगाया जाएगा कि कैसे भविष्य में प्रत्यारोपण के बाद होने वाली मुश्किलों को खत्म किया जाए भले ही प्रत्यारोपित हिस्सा मनुष्य का नहीं हो कर किसी और जानवर का हो. भविष्य में इस शोध के जरिए कोशिश की जाएगी कि अंगदान की कमी पूरी की जा सके. अभी तक प्रत्यारोपण के लिए सुअर के शरीर से लिए हिस्से से जानवरों की सभी कोषिकाएं हटानी पड़ती थीं ताकि प्रत्यारोपण के बाद शरीर उसे स्वीकार करे. 2009 में पहली बार श्टुटगार्ट के वैज्ञानिकों को नकली श्वास नलिका प्रत्यारोपित करने में सफलता मिली. इसे प्रयोगशाला में पहले सुअर की आंत की कोषिकाओं से विकसित किया गया था. इस समय हाइडेलबर्ग यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि सुअर के हृदय का आधार बना कर मनुष्य का हृदय एक बायोरिएक्टर में विकसित किया जाए.

सीमा कहां

सवाल है कि मनुष्य के शरीर में जीन संवर्धित कोषिकाएं या जानवरों के शरीर में मनुष्य की कोषिकाओं को डालना कितना नैतिक है. वोल्फ मिषाएल काटेनहुजेन जर्मन नैतिकता परिषद में मनुष्य-जानवरों पर प्रयोग मामलों के प्रवक्ता हैं. वे कहते हैं, तकनीक फैल रही है और हम अब पूरे के पूरे क्रोमोजोम जानवरों में डाल सकते हैं. इसलिए हमें मनुष्य के नए नए जीन पता लग रहे हैं जो जानवरों के शरीर में लक्षित बदलाव कर सकते हैं. 1980 में एक प्रयोग किया गया जिसमें मुर्गी के भ्रूण को बटेर के मस्तिष्क की कोषिकाओं से बदला गया. इस तरह से पैदा हुआ चूजा मुर्गियों की तरह नहीं बल्कि बटेर की आवाज में चिल्लाता था. और हाल ही में लाइपजिग में सेंटर फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपॉलॉजी को पता लगा कि चूहों में एक मानव जीन डालने पर चूहों की बोलने की क्षमता बदल जाती है.

बीमारियों के इलाज के लिए प्रयोग, पर किस हद तकतस्वीर: dpa

चूंकि इस तरह के प्रयोगों के दौरान पता नहीं चल सकता कि जानवरों पर इसका क्या प्रभाव होना चाहिए इसलिए जर्मन नैतिकता परिषद का कहना है कि इस तरह के प्रयोगों को कड़े नियंत्रण में ही किया जाना चाहिए. खासकर मस्तिष्क और तंत्रिका प्रणाली से जुड़े प्रयोग.

वानरों के मस्तिष्क पर प्रयोग नहीं

गोएटिंगन में माक्स प्लांक संस्थान के न्यूरोबायोलॉजिस्ट प्रोफेसर अहमद मंसौरी इस डर से परिचित हैं कि मनुष्य के मस्तिष्क की कोशिकाओं को अगर वानरों के दिमाग में डाला गया तो वानरों के व्यवहार में भारी बदलाव हो सकता है. लेकिन उनका और उसके कई साथियों का कहना है कि यह शंका आधारहीन है. वह कहते हैं कि ऐसा एक भी प्रयोग नहीं है जो मस्तिष्क की प्रणाली को बदलता हो. जर्मन नैतिकता परिषद चाहती है कि नए नियम के तहत मनुष्य के भ्रूणों को जानवरों में प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकेगा और जानवरों का मनुष्यों में भी नहीं.

रिपोर्टः लिडिया हेलर/आभा मोंढे

संपादनः महेश झा

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