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इंसानों के कारण बदल रहा है मौसम

१६ दिसम्बर २०१२

अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण वैज्ञानिक पहले से ज्यादा भरोसे के साथ कह रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग, समुद्र के बढ़ते जल स्तर और मौसमी बदलावों के लिए इंसान जिम्मेदार है. यह बात विशेषज्ञों के एक दल की लीक हुई रिपोर्ट से पता चली है.

तस्वीर: ddp images/AP Photo/Larry Downing, Pool

मौसमी बदलाव पर अंतर सरकारी पैनल आईपीसीसी की रिपोर्ट 2013 के अंत तक जारी होगा और तब तक इसके वर्तमान मसौदे में संशोधन किए जाने की गुंजाइश है. लेकिन शुरुआती मसौदे के अनुसार औद्योगिक क्रांति से पहले के औसत तापमान में 2100 तक 2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की बढ़त रहेगी और यह 4.8 सेल्सियस को भी पार कर सकती है.

आईपीसीसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा गया है, "यह बहुत संभव है कि 1950 के बाद दिखी दुनिया के तापमान में वृद्धि इंसानी गतिविधियों की वजह से हुई है." आईपीसीसी की शब्दों में "बहुत संभव" का मतलब कम से कम 95 फीसदी की निश्चितता है. अगला स्तर "एक तरह से निश्चित"का है जो 99 फीसदी की निश्चितता है. यह वैज्ञानिकों के लिए सबसे ज्यादा संभव निश्चित होना है.

आईपीसीसी की पिछली रिपोर्ट 2007 में आई थी. इसमें कहा गया था कि 90 फीसदी भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि कोयला और पेट्रोलियन को जलाने जैसी इंसानी गतिविधियां तापमान में वृद्धि की वजह है. उसके बाद से दुनिया के तापमान को बढ़ने से रोकने के प्रयासों में तेजी आई है. आईपीसीसी का लीक हुआ ड्राफ्ट पर्यावरण में बदलाव पर संदेह करने वाले एक ब्लॉग पर डाला गया है.

तस्वीर: picture alliance/dpa

ड्राफ्ट को लीक किए जाने पर अपनी प्रतिक्रिया में आईपीसीसी ने कहा है कि समय से पहले उसे सार्वजनिक किए जाने से गफलत पैदा हो सकती है, क्योंकि उस पर अभी भी काम चल रहा है और उसे जारी किए जाने से पहले बदला जा सकता है.

पिछले हफ्ते ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी के लक्ष्य पर हुए एक संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में कोई प्रगति नहीं दिखी, कनाडा, रूस और जापान ने ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ठहराई जा रही जहरीली गैसे के उत्सर्जन को सीमित करने वाली क्योटो संधि पर अमल रोक दिया है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने तो इस संधि की कभी पुष्टि ही नहीं की, जबकि विकासशील देशों को इससे बाहर रखा गया है.

ज्यादातर देश क्योटो को 2020 तक बढाने पर सहमत हो गए हैं लेकिन जिन देशों ने इस पर दस्तखत किए हैं वहां दुनिया भर के ग्रीन हाउस गैसों का सिर्फ 15 फीसदी ही निकलता है. विकासशील देशों ने कहा है कि वे अगले साल एक ऐसे कठोर यूएन संधि पर जोर देंगे जिसमें उन्हें मौसम में बदलाव के लिए हर्जाना दिया जाए.

आईपीसीसी ने कहा है कि उसे पक्का भरोसा है कि इंसानी गतिविधियों के कारण समुद्रों. बर्फ की चादरों और पर्वतों के ग्लेशियर में बडा़ परिवर्तन हुआ है. इसकी वजह से बीसवीं सदी के दूसरे हिस्से में समुद्र का जल स्तर भी बढ़ा है. मसौदे के अनुसार इंसानी प्रभाव से मौसमी घटनाओं में भी बदलाव आया है.

आईपीसीसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार इस शताब्दी में दुनिया का तापमान 0.2 से 4.8 सेल्सियस बढ़ सकता है. यह 2007 के आकलन से कम है लेकिन लगभग सभी अनुमानों में तापमान के 2 डिग्री से ज्यादा बढने की बात कही गई है. 2010 में सरकारों ने तय किया था कि वे इस बात की कोशिश करेंगी की तापमान 2 डिग्री से ज्यादा न बढ़े. इसे वैज्ञानिक बाढ़, सूखा और दूसरी मौसमी आपदाओं को रोकने के लिए जरूरी मान रहे हैं.

ड्राफ्ट रिपोर्ट के अनुसार माहौल में कार्बन डाय ऑक्साइड का जमाव पिछले 8 लाख सालों में सबसे ज्यादा हो गया है. इसमें शताब्दी के अंत तक समुद्र के स्तर में 29 से 82 सेंटीमीटर की वृद्धि की आशंका व्यक्त की गई है. समुद्रों में यदि जल स्तर बढ़ता है तो उसका असर न सिर्फ निचले इलाकों में रहने वाले लोगों पर पड़ेगा बल्कि बांग्लादेश से लेकर न्यूयॉर्क, लंदन और ब्यूनस आयर्स जैसे शहर भी प्रभावित होंगे.

आईपीसीसी की रिपोर्ट प्रभावी मानी जाती है क्योंकि इसमें पर्यावरण परिवर्तन से संबंधित सभी रिसर्च को शामिल किया जाता है और इसकी जानकारी नीति बनाने वालों को दी जाती है. बहुत से देश आईपीसीसी की रिपोर्ट पढ़ने के बाद ही वैश्विक जलवायु संधि पर दस्तखत करना चाहते हैं.

एमजे/एनआर (रॉयटर्स)

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