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इंसान और जंगल की लड़ाई में हर रोज गयी एक जान

२ अगस्त २०१७

भारत में इंसानों की बढ़ती आबादी और सिमटते जा रहे जंगली जीवों के बीच एक घातक जंग चल रही है. बीते तीन साल के आंकड़े बताते हैं कि घूमते फिरते बाघों या उपद्रव करते हाथियों ने औसतन हर रोज एक इंसान को मारा है.

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तस्वीर: Diptendu Dutta/AFP/Getty Images

आप इसे इंसान और जंगल की लड़ाई भी कह सकते हैं. पर्यावरण से जुड़े आंकड़े बता रहे हैं कि 20 अप्रैल 2014 से इस साल मई के बीच 1144 लोगों की जान गयी है. इनमें 426 लोगों की मौत 2014-15 में हुई जबकि उसके बाद के साल में 446 लोग मरे. 2016-17 में फरवरी तक 259 लोगों ने जान गंवायी जबकि फरवरी से मई के बीच 27 लोग मरे. 

वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया की संस्थापक बेलिंडा राइट कहती हैं, "यह जंग संरक्षण के लिए पहले ही सबसे बड़ी चुनौतियों में है. भारत में यह खासतौर से ज्यादा तीखी है क्योंकि यहां इंसानों की आबादी बहुत ज्यादा है."

तस्वीर: AP

भारत में 1.3 अरब की आबादी लगातार बढ़ रही है. इसके साथ ही इंसान तेजी से देश के पारंपरिक जंगलों और वन्य जीव अभयारण्यों में घुसपैठ कर रहा है. फिर वहां मानव और वन्य जीवों के बीच भोजन और दूसरे संसाधनों के लिए मुकाबला हो रहा है. इंसानी बस्तियों को अकसर आर्थिक विकास माना जाता है. बहुत से लोग जंगलों के आसपास रह रहे हैं और इस विकास की कीमत जंगल के जीव चुका रहे हैं.

बीते तीन सालों में 1,052 लोगों की जान हाथियों ने ली. इनमें से ज्यादातर घटनाएं ऐसी थी कि ये हाथी भोजन की तलाश में जंगल से बाहर निकल कर गांवों के खेतों में घुस गये. वन्य जीवों के जानकार बताते हैं कि ये घटनाएं अकसर होने लगी हैं क्योंकि हाथियों के रास्ते में अकसर हाइवे, रेलवे ट्रैक या फिर फैक्ट्रियां खड़ी हो जाती हैं.

तस्वीर: Reuters

बेलिंडा राइट कहती हैं, "भारत में हाथियों के संरक्षण और उनके भविष्य के लिए अच्छे आवास और विचरण के लिए मुक्त गलियारों का उनकी पहुंच में होना बेहद जरूरी है." वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया से जुड़े पशुओं के डॉक्टर एनवीके अशरफ का कहना है कि ज्यादा संख्या में लोगों की मौत की वजह उनका जीविका के लिए जंगलों पर निर्भर होना है. अशरफ ने कहा, "लोग भोजन और जंगलों से मिलने वाली दूसरी चीजों की तलाश में घने जंगलों तक जाते हैं और ऐसे में उनके बाघ या हाथियों के झुंड के रास्ते में आने का खतरा रहता है."

तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Chowdhury

बाघ के साथ इंसान की लड़ाई 1970 के बाद धीरे धीरे तेज हो गयी, जब भारत में बाघों के संरक्षण के लिए कार्यक्रम चलाया गया. इसके तहत बाघ अभयारण्य बनाये गये और बाघों का मारना अपराध बन गया. बाघों की गिनती के तरीके बदलते रहते हैं लेकिन 2014 में हुई गणना के मुताबिक देश में बाघों की संख्या 1,800 से बढ़ कर 2,226 तक पहुंच गयी. हालांकि बाघों की संख्या बढ़ने के साथ उनके आवास में इजाफा नहीं हुआ.

सरकार ये तो नहीं बताती कि दूसरे जानवरों के कारण कितने लोगों की मौत हुई लेकिन तेंदुओं के अकसर शहरों में घुसने की घटनाएं सामने आती हैं. ये खतरा इतना ज्यादा है कि गांववालों ने ऐसे समूह बना रखे हैं जो तेंदुओं से उनके बच्चों और पालतू जानवरों की रक्षा करते हैं. अशरफ बताते हैं, "जब कोई तेंदुआ गांव या शहर में आ जाता है तो वो उसे घेर कर डंडों और पत्थरों से मार डालते हैं."

भारत के हाथी और बाघ देश में सबसे ज्यादा शिकार किये जाने वाले जानवरों में शामिल हैं. बाघों की खाल और हाथियों के दांत और हड्डियों की बाजार में बड़ी मांग है. इसके अलावा पारंपरिक चीनी दवाइयो में भी उनका इस्तेमाल होता है.

एनआर/एके (एपी)

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