1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

इंसानी सीने में सूअर का दिल

८ अप्रैल २०१६

हम किसी बुरे दिल वाले ​इंसान की बात नहीं कर रहे, यहां बात हो रही है विज्ञान की. क्या आप ऐसी कल्पना कर सकते हैं कि अगर आपके किसी जानने वाले का दिल धड़कना बंद हो जाए, और उसे सूअर का दिल लगा दिया जाए?

Deutschland Anuga 2013
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Stollarz

जल्द ही ऐसा मुमकिन है. ​हृदय रोगियों को इस तकनीक से एक नई जिंदगी मिल सकती है. क्रॉस स्पीशीज ऑर्गन ट्रांस्प्लांटेशन यानि अलग अलग किस्म के जीवों के आपस में अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि इस दिशा में एक बड़ी सफलता हाथ लगी है.

दुनिया भर में अंग दान करने वालों की भयंकर कमी है. इसके चलते इंसान की जान बचाने के​ लिए जानवरों के दिल, फेफड़े और लिवर का इस्तेमाल कर पाना मेडिकल साइंस के लिए हमेशा से यक्ष प्रश्न रहा है.

प्रत्यारोपण के दौरान अंगों का बेकार हो जाना इस दिशा में सबसे बड़ी दिक्कत रही है. लेकिन अब अमरीका और जर्मनी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि वे सूअर के हृदय को लंगूर में जोड़कर ढाई साल से भी अधिक समय के लिए जीवित अवस्था में रखने में कामयाब हो गए हैं. उन्होंने इसके​ लिए जीन मॉडिफिकेशन और रोगप्रतिरोधी क्षमताओं को रोकने वाली दवाओं का इस्तेमाल कर अपना तरीका तैयार किया है.

लंगूर में हुआ सफल प्रयोग

मैरीलैंड के नेशनल हार्ट, लंग एंड ब्लड इंस्टीट्यूट के मोहम्मद मोहिउद्दीन भी इस शोध का हिस्सा रहे हैं. वे कहते हैं, ''यह बहुत महत्वपूर्ण है ​क्योंकि इससे हम मानव शरीर में जानवरों के अंग प्रत्यारोपण की दिशा में एक कदम और आगे आ गए हैं.'' उन्होंने बताया कि अगर इंसानों में भी यह ट्रांसप्लांट संभव हो जाता है, तो इससे हर साल हजारों लोगों की जिंदगी बचाई जा सकेगी.

पांच लंगूरों में ​​सूअर का दिल जोड़कर हुआ प्रयोगतस्वीर: Sonja Pauen / CC BY 2.0

इस प्रयोग के दौरान पांच लंगूरों से जोड़ा गया सूअर का हृदय 945 दिनों तक जिंदा रहा था. लंगूरों में हृदय को प्रत्यर्पित नहीं किया गया था, बल्कि उसे लंगूर के पेट से दो बड़ी रक्त नलियों के जरिये संचार तंत्र से जोड़ा गया था. इस हृदय की धड़कन सामान्य हृदय की तरह ही थी लेकिन लंगूर का हृदय भी लगातार खून को पंप कर रहा था.

ऐसी स्थिति में अक्सर ऑर्गन रिजेक्शन हो जाने का खतरा रहता है. लेकिन इस प्रयोग में सूअर के हृदय को जेनेटिकली मॉडिफाई किया गया था ताकि वह लंगूर की प्राकृतिक प्रतिरोधी प्रणाली के अनुरूप खुद को ढाल ले. वैज्ञानिकों ने सूअर के हृदय में मानवीय जेनेटिक लक्षण भी डाले थे. साथ ही लंगूर को एसी दवा दी गई थी जो रोग प्रतिरोधी प्रणाली को निष्प्रभावी कर देती है.

सूअर ही क्यों?

दूसरे जानवरों की गुर्दे, हृदय और यकृत को इंसानों में प्रत्यारोपित करने की ​कोशिशें वैज्ञानिक 1960 के दशक से कर रहे हैं. लेकिन इससे पहले यह कभी सफल नहीं हुआ. इंसानों में हृदय प्रत्यारोपण के लिए शुरूआत में उनके सबसे करीबी रिश्तेदार, बंदरों और लंगूरों के ​हृदय का इस्तेमाल किए जाने के ​बारे में सोचा गया था. लेकिन इन जानवरों के विकास में एक लंबा समय लगता है और चिंपैंजी जैसे जानवर तो लुप्तप्राय जानवरों की श्रेणी में हैं.
सूअर के दिल का आकार भी लगभग इंसानी दिल की तरह होता हैतस्वीर: picture-alliance/United Archives/IFTN

इन जानवरों की इंसानों से जेनेटिक तौर पर बेहद करीबी होने से बीमारियों के आपस में फैलने का भी एक बड़ा खतरा हो सकता था. इसलिए सूअरों को एक बेहतर विकल्प के तौर पर चुना गया क्योंकि उनके हृदय का आकार भी लगभग इंसानी दिल की ही तरह होता है. साथ ही उनके साथ रोगों के संक्रमण का खतरा भी कम है. इनका विकास भी कम समय में हो जाता है और ये आसानी से उपलब्ध भी हैं.

आरजे/आईबी (एएफपी)

नकली दिल

04:42

This browser does not support the video element.

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें