बहुत ज्यादा मीट खाने वालों की जल्दी मरने की संभावना काफी ज्यादा होती है. शाकाहारियों का भी यही हाल है. ऐसे में क्या खाया जाए और कितनी मात्रा में.
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मांस, कई जानवरों की तरह इंसान के लिए भी यह प्रोटीन का मुख्य जरिया है. लेकिन बदलती जीवनशैली के साथ इंसान बहुत ज्यादा मीट खाने लगा है. और इसके दुष्परिणाम 18 साल लंबे शोध में सामने आए हैं. यह दुनिया के सबसे लंबे शोधों में से एक है. शोध में 10 यूरोपीय देशों के पांच लाख लोगों ने हिस्सा लिया. इस दौरान उनके खान पान का हिसाब रखा गया और कैंसर, दिल की बीमारियों व डायबिटीज पर भी नजर रखी गई.
शोध का निचोड़ यह निकला कि ज्यादा मीट खाने वालों की जल्दी मरने की संभावना भी अधिक होती है. शाकाहारी भी बहुत लंबा नहीं जीते हैं, लेकिन कम मांस खाने वाले इन दोनों के मुकाबले ज्यादा लंबा जीते हैं. वैज्ञानिकों को इसका कारण भी समझ में आया है. मांस में ऐसे कई तत्व होते हैं जो इंसान को पोषण देते हैं. शरीर का मेटाबॉलिज्म मांस को शाकाहार की तुलना में ज्यादा आसानी से पचा लेता है.
जर्मन न्यूट्रिशियन सोसायटी और वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड का सुझाव है कि एक हफ्ते में 500 ग्राम से ज्यादा मीट नहीं खाना चाहिए. इसके साथ ही सॉसेज, बैकन और सलामी जैसे प्रोसेस्ड मीट से बचना चाहिए. इनमें सोडियम नाइट्रेट होता है जो सेहत को नुकसान पहुंचाता है.
जरा सोचिये कि जैसा व्यवहार इंसान जानवरों के साथ कर रहा है, अगर वैसा ही उसके साथ भी किया जाए तो. इसी अंदाज में दुनिया भर में पशु अधिकार कार्यकर्ता विरोध करते रहे हैं.
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इंसानी सभ्यता में अक्सर मनावाधिकारों, इंसानियत और एक व्यक्ति की गरिमा की बात होती है. लेकिन क्या पशुओं के भी अधिकार होते हैं? या फिर वे सिर्फ मांस हैं?
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पुराने जमाने में शरीर को गर्म रखने के लिए इंसान पशुओं की खाल का प्रयोग करता था. लेकिन अब फैशन के नाम पर जानवरों को पाला और मारा जाता है ताकि उनके उनके फर को इस्तेमाल किया जा सके.
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जर्मनी की राजधानी बर्लिन के ब्रांडेनबुर्ग गेट पर पशु अधिकार कार्यकर्ता. 6,20,000 लोगों को हस्ताक्षरों के जरिये उन्होंने जर्मन के पर्यावरण मंत्रालय से सर्कस में जंगली जानवरों के इस्तेमाल को रोकने की मांग की.
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लिपिस्टिक, लिपबाम या क्रीम को टेस्ट करने के लिए चूहों का इस्तेमाल होता है. काजल की टेस्टिंग में खरगोशों को अंधा होना पड़ता है. जर्मन दर्शनशास्त्री और भौतिकविज्ञानी अल्बर्ट श्वाइत्जर के मुताबिक, "जब तक इंसान सभी जीवित प्राणियों के लिए स्नेह का घेरा नहीं बनाएगा, तब तक शांति हासिल नहीं होगी."
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स्पेन में होने वाली बुलफाइटिंग का विरोध करते कार्यकर्ता. 20वीं सदी की महान शख्सियतों में गिने जाने वाले भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था, "किसी राष्ट्र का नैतिक विकास इस बात से चेक किया जा सकता है कि वह पशुओं से कैसा बर्ताव करता है."
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चमड़े के लिए पशुओं को बड़े पैमाने पर कत्ल करने वाले उद्योगों के खिलाफ बार्सिलोना में इस अंदाज में प्रदर्शन हुआ.
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16वीं सदी में इटली में पैदा हुई महान शख्सियत लियोनार्दो दा विंची के मुताबिक, "एक दिन आएगा जब जानवर की हत्या को इंसान की हत्या की तरह देखा जाएगा."
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मीट उद्योग के लिए तैयार होने वाले जीवों को बहुत ज्यादा एंटीबायोटिक खिलाये जाते हैं. शारीरिक विकास तेज करने के लिए उन्हें कई तरह के रसायन दिये जाते हैं. जरा सोचिये पशुओं पर क्या गुजरती होगी.
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खुराक के अलावा इन जीवों को बेहद तंग माहौल में रखा और मारा जाता है.
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फैशन उद्योग ने लोमड़ियों की बड़ी पैमाने पर बलि ली है. इसी का विरोध इस अंदाज में करते पशु अधिकार कार्यकर्ता.
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बहुत सारे लोगों को अच्छे बैग, पर्स या बेल्ट बार बार खरीदने का शौक होता है, उनकी इस इच्छा की कीमत मगरमच्छों, सांपों, गायों या भैंसों को चुकानी पड़ती है.
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धीमी गति से चलने वाले कछुए लालची इंसान के तेज दिमाग का शिकार हो रहे हैं. बाली में समुद्री कछुओं के संरक्षण की अपली करते कार्यकर्ता.
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मछली और सील का शिकार करने वाले ध्रुवों के बर्फीले इलाके में जाते हैं, और वहां ध्रुवीय भालू भी उनका निशाना बनते हैं. गर्म होती जलवायु और शिकार ने ध्रुवीय भालुओं की हालत खस्ता कर रखी है.
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जापान में व्हेलों के अंधाधुंध शिकार के खिलाफ होता प्रदर्शन.