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इंसान सोचेगा और रोबोट चलेगा

१८ फ़रवरी २०११

वैज्ञानिक एक ऐसे रोबोट का विकास कर रहे हैं जो खयालों से चल सकता है. इससे उन लोगों को फायदा हो सकता है जिनकी रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचा है.

तस्वीर: AP

नकली हाथ पैर में भी इसी तरकीब का इस्तेमाल किया जाता है. मरीज उन नसों को संदेश भेजता है जो आम तौर पर हाथ पैर चलाने के काम आती हैं. अब नए ब्रेन (दिमाग) कंप्यूटर की मदद से चलने के 'विचार' को चलने की 'क्रिया' में बदला जा सकता है. वॉशिंगटन के अमेरिकी विज्ञान विकास असोसिएशन (एएएएस) में वैज्ञानिकों ने इस तकनीक को जनता के सामने पेश किया. एक वैज्ञानिक ने एक टोपी पहनी जिसमें इलेक्ट्रॉड लगे हुए थे. इसकी मदद से उन्होंने कमरे में एक रोबोट को चलाया.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

ब्रेन कंप्यूटर

स्विट्जरलैंड के लौसैन तकनीकी स्कूल के जोस दे मिलां ने बताया, "यह रोबोट रोज इस्तेमाल करने वाली युक्ति है, खासकर उन लोगों के लिए जो बिस्तर पर रहते हैं लेकिन पारिवारिक जीवन में हिस्सा लेना चाहते हैं." मिलां की टीम ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेसस पर काम कर रही है जो एक मरीज के ख्यालों को पढ़ सकता है. इससे मरीज एक वक्त पर एक से ज्यादा काम कर सकेगा. जैसे बोलते वक्त वह अपने पैर हिला सकेगा. नकली पैरों के साथ परेशानी यह है कि हिलाते वक्त पूरा ध्यान इसी एक काम में लगा रहता है.

बंदर पर प्रयोग सफल

पिट्सबर्ग विश्वलिद्यालय में वेज्ञानिक ऐंड्रू श्वार्ज भी इसी काम में लगे हुए हैं. श्वार्ज उन मरीजों के लिए शोध कर रहे हैं जिनकी रीढ़ की हड्डी में खराबी आई है और वह अपने हाथ पैर नहीं हिला सकते. श्वार्ज एक ऐसी तकनीक का विकास कर रहे हैं जिसमें वह मरीजों के दिमाग में एक इलेक्ट्रोड लगाएंगे. मरीज फिर अपने विचारों की ऊर्जा से अपने नकली हाथ पैर हिला सकेंगे. श्वार्ज ने इस तकनीक की जांच बंदरों पर की है. दिमाग में लगाए गए इलेक्ट्रॉड की मदद से बंदर अपने नकली हाथ हिलाने में कामयाब रहे. श्वार्ज की परियोजना के तहत अब रीढ़ की हड्डी के एक मरीज के दिमाग में 29 दिनों के लिए इलेक्ट्रॉड लगाया जाएगा. फिर मरीज एक कंप्यूटर की मदद से कंप्यूटर के कर्सर और नकली पुर्जों को हिला सकेगा. इसके बाद बंदरों पर दोबारा प्रयोग होगा. बंदरों के दिमाग में न्यूरॉन्स से संदेश लेकर एक नकली लेकिन कृत्रिम मानवीय हाथ को चलाने की कोशिश की जाएगी.

नए पैर, नई सोच

हालांकि इस तरह की तकनीक को बाजार में आने तक 10 साल लग जाएंगे. लेकिन पिछले वर्षों में नकली हाथ पैर की तकनीक में बहुत विकास हुआ है. कुछ मामलों में त्वचा जैसी आभास करने की क्षमता को भी मरीज के नकली हाथों में स्थापित किया जा सका है. डॉक्टरों का कहना है कि हाथ से ज्यादा पेरशानी पैरों में आती है क्योंकि पैर हिलाते वक्त आपका नियंत्रण बिलकुल सही होना चाहिए, नहीं तो आप गिरते रहेंगे.

रिपोर्टः डीपीए/एमजी

संपादनः वी कुमार

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