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इंसाफ में नाम का चक्कर

७ जनवरी २०१३

दिल्ली बलात्कार कांड के बाद लड़की के नाम को लेकर उठा विवाद एक ब्रिटिश अखबार की खबर के बाद और गर्मा गया है. इसे कानून के दायरे से बाहर बताया जा रहा है और कानून के जानकार कह रहे हैं कि नाम में क्या रखा है, इंसाफ तो दिलाओ.

तस्वीर: Reuters

भारत के एक गांव की तस्वीर. घर की औरतें फर्श पर बिछी चादर पर बैठी हैं और घर का मुखिया खाट पर. भले ही इस आम तस्वीर में किसी को दिलचस्पी न हो लेकिन अगर यह बलात्कार पीड़ित लड़की के रिश्तेदारों की हो, तो जरूर जिज्ञासा जगेगी. तिस पर घर का मुखिया लड़की का नाम बताए और कहे कि "वह चाहता है कि दुनिया उसकी बेटी के नाम को जाने" तो दिलचस्पी और बढ़ सकती है.

भारतीय मीडिया जिस लड़की के नाम पर तीन हफ्ते से संयम बरत रहा था, ब्रिटिश मीडिया ने उसे फौरन छाप दिया. लेकिन कुछ ही घंटों में लड़की के पिता ने भारतीय अखबार को दूसरा इंटरव्यू दिया और दावा किया कि उन्होंने "सिर्फ नए कानून बनाए जाने की शर्त पर लड़की का नाम इस्तेमाल करने की बात कही थी." भारतीय कानून बलात्कार पीड़ित का नाम जाहिर करने से मना करता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील कामिनी जायसवाल ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि पहले इंसाफ तो पक्का हो, "लड़की की पहचान गुप्त रखने की बात की जाती है, ताकि गवाह और समाज उसे परेशान न करे. लेकिन अब तो वह इस दुनिया में है ही नहीं और उसने कोई गुनाह नहीं किया था. इसमें शर्म की कोई बात नहीं."

तस्वीर: Reuters

सारा मामला केंद्रीय मंत्री शशि थरूर के एक ट्वीट के बाद शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने सलाह दी कि "बलात्कार के खिलाफ भारत में नया कानून दिल्ली बलात्कार कांड की लड़की के नाम पर हो." दिल्ली में 16 दिसंबर के बलात्कार कांड के बाद से संयम बरत रहा मीडिया अचानक नाम और परिवार वालों को तलाशने लगा. पहले भारत के एक टेलीविजन चैनल पर उस शख्स का इंटरव्यू चला, जो पीड़ित लड़की के साथ था.

भारत में ब्रॉडकास्टर एडिटर्स एसोसिएशन के सदस्य अजीत अंजुम कहते हैं, "यह काम पहचान जाहिर किए बिना भी किया जा सकता था. लड़के के चेहरे को ब्लर किया जा सकता था." अंजुम उन लोगों में हैं, जिनकी पहल पर भारतीय मीडिया ने इस कांड में पीड़ित लड़की का नाम पता और रिश्तेदारों की पहचान सार्वजनिक न करने का फैसला किया.

लेकिन मीडिया पर दबाव कौन बना रहा है, भारत के प्रमुख समाचार चैनल न्यूज 24 के प्रमुख अंजुम कहते हैं, "सोशल मीडिया ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है, जिसे आप कहीं से नियंत्रित नहीं कर सकते. इस लड़की के मामले में भी वहां सैकड़ों पोस्ट आ रहे हैं, जिसमें सही गलत तस्वीरें भी हैं. लेकिन अच्छी बात यह है कि इसके आने से कोई खबर दब नहीं सकती. दिल्ली के प्रदर्शन में भी सोशल मीडिया का अहम रोल रहा."

तस्वीर: Reuters

अंतरराष्ट्रीय मीडिया आम तौर पर नियम कायदों को समझते हुए संयमित रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता है. लेकिन हाल ही में भारतीय मूल की ब्रिटिश नर्स को लेकर ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने भी गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाया था, जिसके बाद यह नर्स मृत पाई गई. बलात्कार पीड़ित लड़की की पहचान को लेकर भी विवाद तेज हो रहे हैं.

तो क्या अंतरराष्ट्रीय मीडिया पर कोई कानून नहीं लगता. भारत की सामाजिक कार्यकर्ता और वकील श्वेता भारती का कहना है कि "मामला भारत का है और भारतीय कानून से जुड़ा है, जिसमें ऐसी बातों का खुलासा मना है." उनका कहना है कि अगर सरकार चाहे तो इस पर कार्रवाई हो सकती है, "भारत सरकार इस मामले पर सफाई मांग सकती है और अखबार से हर्जाना देने को भी कह सकती है."

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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