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इकोसिस्टम बचाने के लिए सेटेलाइट की मदद

११ मार्च २०११

फ्लोरिडा एवरग्लेड्स में अमेरिकी वैज्ञानिक घड़ियालों और मगरमच्छों की भर्ती कर रहे हैं ताकि उनके गलों में सेटेलाइट चिप लगाकर कमजोर आद्रभूमि को बचाया जा सके.

तस्वीर: AP

घड़ियाल और मगरमच्छ पानी में रहने वाले जीव हैं. फ्लोरिडा के नेशनल पार्क में उनकी गतिविधियों से इकोसिस्टम में परिवर्तन, उनके आकार पर इसके प्रभाव और उनकी गतिविधियों के पैटर्न के बारे में जानकारी मिलती है.फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के फ्रांक माजोटी कहते हैं, "वे हमें महत्वपूर्ण जानकारियां दे रहे हैं. वे हमारे लिए काम कर रहे हैं."

उपग्रह चिप से मिलने वाली सूचनाएं एक कंप्यूटर एप्लिकेशन को भेज देते हैं जो घड़ियालों और मगरमच्छों के बारे में जानने के लिए गूगल मैप की मदद लेता है. इन जानवरों को पकड़ कर उनके गले में चिप लगाकर उन्हें 15 के ग्रुप में फिर से पानी में छोड़ दिया जाता है. मजोटी का कहना है, "वैज्ञानिक इकोसिस्टम में परिवर्तन पर पानी के इन जानवरों की प्रतिक्रिया और उनकी संख्या, उनका आकार, उनकी जगह जानने के लिए विभिन्न मापदंडों का इस्तेमाल करते हैं."

तस्वीर: AP

इन सूचनाओं का इस्तेमाल एवरग्लेड्स इकोसिस्टम की हालत जानने के अलावा इस बात का पता लगाने के लिए भी किया जाता है कि पहले के संरक्षण प्रयासों का कितना असर हुआ है. संरक्षणकर्ताओं का मानना है कि दक्षिणी फ्लोरिडा में 500 से 1200 घड़ियाल हैं जो मगरमच्छ से अलग होते हैं. पिछले सालों में साढ़े चार मीटर लंबे और 200 किलोग्राम भार वाले इन जानवरों की संख्या घटी है.

एवरग्लेड्स के पक्षियों की तरह घड़ियालों का भविष्य भी पानी के स्तर पर निर्भर करता है जो उनके भोजन की आपूर्ति के लिए जरूरी है. पानी का स्तर गिरने से पौधों की संख्या घटती है जो ब्रीडिंग और निवास के काम आता है. इससे मछलियों की संख्या भी कम होती है जो बड़े जानवरों के अलावा पक्षियों के खाने के काम आती है. एक अनुमान के अनुसार इस समय एवरग्लेड्स में हर साल 30-50 हजार पक्षियां निवास करती हैं. पर्यावरण संरक्षण ग्रुप ऑडोबोन के जेरी लॉरेन्स के अनुसार 1940 के दशक में उनकी संख्या 5 लाख हुआ करती थी. वे कहते हैं, "आधे दशक से कुछ ज्यादा में औसत नब्बे फीसदी की कमी." अलग अलग समय में आए बाढ़, तूफान, आग और सूखे के कारण एवरग्लेड्स में अनूठे जानवरों और पौधों का अभूतपूर्व इकोसिस्टम तैयार हुआ है, जिसे देखने हर साल दस लाख से अधिक लोग जाते हैं. संरक्षणवादियों को डर है कि बजट में कटौती होने से आर्द्र प्रदेश के संरक्षण के प्रयासों को नुकसान पहुंचेगा.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य

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