अमेरिका की ब्रिटनी मेनार्ड ने खुदकुशी कर इच्छामृत्यु पर बहस छेड़ दी है. जहां युवा ब्रिटनी का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कैथोलिक चर्च इसका कड़ा विरोध करता नजर आ रहा है.
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वैटिकन की अकैडमी फॉर लाइफ के अध्यक्ष इग्नासिओ कारासो दे पाउला ने ब्रिटनी मेनार्ड के कदम को 'दुष्ट' बताया है. उन्होंने कहा कि वे किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन यह कदम निंदनीय है, "इस महिला को लगा कि वह प्रतिष्ठा के साथ मरेगी. लेकिन यही उसकी गलती है. खुदकुशी करना कोई अच्छी बात नहीं, यह दुष्ट है क्योंकि ऐसा कर के आप अपने जीवन को ना कह रहे हैं और इस दुनिया में जिस मकसद से हम आए हैं, उसका निरादर कर रहे हैं." दे पाउला का कहना है कि अपनी जान लेना पाप है.
इसी तरह अमेरिका के एक कैथोलिक समूह अमेरिकन लाइफ लीग की अध्यक्ष जूडी ब्राउन ने भी ब्रिटनी मेनार्ड के कदम की निंदा की है. उनका कहना है, "खुदकुशी करना कभी भी समाधान नहीं हो सकता, भले ही व्यक्ति किसी भी परिस्थिति से गुजर रहा हो."
कानूनों में बदलाव
वहीं दूसरी ओर डेथ विद डिगनिटी नेशनल सेंटर जैसे संघ इच्छामृत्यु की पैरवी करते हैं. इस संघ की पेग सैंडीन उम्मीद कर रही हैं कि ब्रिटनी मेनार्ड जाते जाते जो मुहिम छेड़ गयी हैं, उससे कानूनों में बदलाव लाने में मदद मिलेगी. फेसबुक और ट्विटर पर ब्रिटनी की मौत लगातार चर्चा का विषय बनी हुई है.
उनकी वेबसाइट से अब तक चालीस लाख लोग जुड़ चुके हैं. ये केवल अमेरिका के ही नहीं हैं, बल्कि ताजिकिस्तान, बुर्किना फासो, सीरिया और आइसलैंड जैसे विभिन्न देशों के लोग हैं. इनमें अधिकतर युवा हैं. पेग सैंडीन बताती हैं, "युवा लोग सम्मानजनक मौत पर काफी जोर देते हैं, जबकि यह उनके जीवन में कोई बड़े मायने नहीं रखता है." उनका कहना है कि ब्रिटनी के जरिए युवाओं में चल रही बहस को एक चेहरा मिल गया है.
मौत का कॉकटेल
अमेरिका के ऑरेगन में 1997 से इच्छामृत्यु वैध है. अब तक 800 से ज्यादा लोग इस कानून के तहत आत्महत्या कर चुके हैं. खुदकुशी के इच्छुक व्यक्ति को डॉक्टर दवा देते हैं, जिसे कॉकटेल कहा जाता है. इसे लेते ही मरीज सो जाता है और आधे घंटे के भीतर उसकी मौत हो जाती है. ब्रिटनी को ब्रेन ट्यूमर था. वह अपने पति के साथ कैलिफोर्निया छोड़ ऑरेगन आई थी ताकि अपनी जान दे सके.
एक महीना पहले ही उसने एक वीडियो जारी कर अपनी मौत का ऐलान कर दिया था. इस वीडियो को यूट्यूब पर एक करोड़ से ज्यादा बार देखा जा चुका है. जहां एक तरफ इच्छामृत्यु का समर्थन करने वाले इस संख्या को बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहे हैं, वहीं इसके विरोधी यह कह रहे हैं कि वीडियो देखने का मतलब यह नहीं कि हर व्यक्ति ब्रिटनी के फैसले से सहमत था.
आईबी/एमजे (एपी, एएफपी)
कैंसर से बचने के तरीके
कैंसर को जीवन का अंत नहीं समझ लेना चाहिए. वैज्ञानिकों को पता लग चुका है कि यह बीमारी होती कैसे है. फिर बचने के उपाय भी हो सकते हैं.
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किस्मत अपने हाथ
विशेषज्ञ बताते हैं कि कैंसर के लगभग आधे मामले कम किए जा सकते हैं. कैंसर के ट्यूमर का हर पांचवां मामला सिगरेट पीने से होता है. इससे फेफड़ों के कैंसर के अलावा कई और तरह के ट्यूमर भी हो सकते हैं.
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मोटापे से खतरा
कैंसर की दूसरी सबसे बड़ी वजह मोटापा है. शरीर में जब इंसुलिन बढ़ता है तो वह हर तरह के कैंसर का खतरा बढ़ा देता है. मोटी महिलाओं की वसा कोशिकाओं में सेक्स हॉर्मोन भी ज्यादा निकलते हैं जिससे गर्भाशय या स्तन कैंसर हो सकते हैं.
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आलसी मत बनिए
लंबे रिसर्च से पता चला है कि नियमित व्यायाम से ट्यूमर का खतरा कम हो जाता है. कारण है कसरत से शरीर में इंसुलिन का स्तर कम होना. जरूरी नहीं कि आप बहुत भागदौड़ वाले खेल ही खेलें. साइकिल चलाने और टहलने से भी फायदा है.
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ज्यादा न पीजिए
शराब से मुंह, गले और खाने की नली में ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है. धूम्रपान और शराब साथ लेने से कैंसर का खतरा 100 गुना बढ़ जाता है. अधिक से अधिक वाइन का एक ग्लास ही सेहत के लिए ठीक होता है.
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'रेड मीट' कम
आंतों के कैंसर के लिए इसे जिम्मेदार माना जाता है. दूसरी ओर मछली का मांस कैंसर से बचाता है.
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ज्यादा धूप नहीं
सूरज की पराबैंगनी किरणें शरीर में इतने अंदर तक जा सकती हैं कि कोशिकाओं में घुस कर जीनोम यानि आनुवांशिक संरचना बदल दें. 'सन टैन' के शौकीनों को ध्यान देना होगा क्योंकि ज्यादा धूप से त्वचा का कैंसर हो सकता है.
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आधुनिक दवाएं भी दोषी
एक्सरे से जीनोम यानि आनुवांशिक संरचना पर असर पड़ता है. लेकिन बदलती रोजमर्रा में मुश्किलें बहुत हैं. हवाई जहाजों में सफर के दौरान भी लोग कैंसर पैदा करने वाले विकिरण के संपर्क में आते हैं.
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संक्रमण से कैंसर
ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के संक्रमण से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है. इससे तस्वीर में दिखाई दे रहा बैक्टीरिया पेट में पहुंच जाता है और वहां कैंसर पैदा करता है. इन संक्रमणों से बचने के टीके लिए जा सकते हैं.
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इतनी बुरी नहीं गर्भनिरोधक गोलियां
इन गोलियों से स्तन कैंसर का खतरा थोड़ा बढ़ जाता है, लेकिन ओवरी या अंडाशय के कैंसर से काफी हद तक बचा जा सकता है. कम से कम कैंसर के मामले में तो गोलियां लेना अच्छा है.
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बाकी प्रकृति जिम्मेदार
कई बार सारी अच्छी आदतों के बावजूद बीमारी हो सकती है. कभी उम्र का तकाजा ले डूबता है तो कभी पीढ़ी दर पीढ़ी जीन से होने वाली बीमारी. रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टेराथ/ऋतिका राय संपादन: ए जमाल