अक्सर लोग मरना चाहते हैं. सबको तो मरने की इजाजत नहीं दी जा सकती लेकिन कुछ लोग जिनके लिए जीने के मतलब सिर्फ दर्द में रहना है, क्या उन्हें मरने की आजादी होनी चाहिए? बहस बड़ी और पुरानी है.
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सालों की बहस और कानूनी लड़ाई के बाद भारत सरकार ने इच्छा मृत्यु पर कानून का मसौदा पेश किया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने ड्राफ्ट बिल को अपनी वेबसाइट पर पोस्ट किया है और आम लोगों के इस कानून पर अपनी राय मांगी है.
नया कानून मरीजों और डॉक्टरों को चिकित्सीय सुविधा रोकने या बंद करने के लिए जिम्मेदारी से सुरक्षा देता है. इसके अलावा इसमें यह भी प्रवाधान है कि दर्द कम करने का इलाज जारी रह सकता है. इस बिल के कानून बनने से मरीजों को अपनी इच्छा से मरने का अधिकार होगा और वे गंभीर बीमारी की स्थिति में अपना इलाज रोकने का फैसला ले सकते हैं. भारत सरकार ने इस ड्राफ्ट बिल पर लोगों से 19 जून तक राय मांगी है.
स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, "सरकार ने पैसिव इच्छा मृत्यु पर कानून बनाने से पहले लोगों से उनका मत और टिप्पणी मांगने का फैसला किया है." कानून के मसौदे के साथ एक नोट भी है जिसमें बताया गया है कि नकारात्मक इच्छा मृत्यु का मतलब जीवन के जारी रहने के लिए जरूरी इलाज या लाइफ सपोर्ट सिस्टम को बंद करना, एंटी बायटिक बंद करना और कॉमा वाले मरीज का हर्ट लंग मशीन हटाना है.
पिछली बार स्वास्थ्य मंत्रालय ने इच्छा मृत्यु पर प्रावधान बनाने पर 2006 में विचार किया था. लेकिन विशेषज्ञों की रिपोर्ट मिलने पर ऐसा कानून न बनाने का फैसला किया गया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 2011 के एक फैसले में पैसिव यूथेनेजिया यानी इच्छामृत्यु के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए. साथ ही यह भी कहा गया कि कानून बनने तक इन दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए.
2012 में कानून आयोग ने एक बार फिर एक कानून का प्रस्ताव बनाया जिसमें पैसिव यूथेनेजिया और जीने की इच्छा पर बात की गई. मंत्रालय की ओर से जारी एक नोट में कहा गया है, “लॉ कमीशन की 241वीं रिपोर्ट और मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए ड्राफ्ट बिल के आधार पर इस बात पर विचार किया जा रहा है कि इच्छा मृत्यु पर बिल बनाया जाए या नहीं.”
वीके/एमजे (पीटीआई)
मृत्यु का विज्ञान
मृत्यु क्या है और इंसान क्यों मरता है, मनुष्य इन सवाल का जवाब हजारों साल से खोज रहा है. चलिये देखते हैं आखिर विज्ञान मृत्यु और उसकी प्रक्रिया के बारे में क्या कहता है.
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विकास से विघटन तक
30 की उम्र में इंसानी शरीर में ठहराव आने लगता है. 35 साल के आस पास लोगों को लगने लगता है कि शरीर अब कुछ गड़बड़ करने लगा है. 30 साल के बाद हर दशक में हड्डियों का द्रव्यमान एक फीसदी कम होने लगता है.
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भीतर खत्म होता जीवन
30 से 80 साल की उम्र के बीच इंसान का शरीर 40 फीसदी मांसपेशियां खो देता है. जो मांसपेशियां बचती हैं वे भी कमजोर होती जाती है. शरीर में लचक कम होती चली जाती है.
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कोशिकाओं का बदलता संसार
जीवित प्राणियों में कोशिकाएं हर वक्त विभाजित होकर नई कोशिकाएं बनाती रहती हैं. यही वजह है कि बचपन से लेकर जवानी तक शरीर विकास करता है. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं के विभाजन में गड़बड़ी होने लगती है. उनके भीतर का डीएनए क्षतिग्रस्त हो जाता है और नई कमजोर या बीमार कोशिकाएं पैदा होती हैं.
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बीमारियों का जन्म
गड़बड़ डीएनए वाली कोशिकाएं कैंसर या दूसरी बीमारियां पैदा होती हैं. हमारे रोग प्रतिरोधी तंत्र को इसका पता नहीं चल पाता है, क्योंकि वो इस विकास को प्राकृतिक मानता है. धीरे धीरे यही गड़बड़ियां प्राणघातक साबित होती हैं.
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लापरवाही से बढ़ता खतरा
आराम भरी जीवनशैली के चलते शरीर मांसपेशियां विकसित करने के बजाए जरूरत से ज्यादा वसा जमा करने लगता है. वसा ज्यादा होने पर शरीर को लगता है कि ऊर्जा का पर्याप्त भंडार मौजूद है, लिहाजा शरीर के भीतर हॉर्मोन संबंधी बदलाव आने लगते हैं और ये बीमारियों को जन्म देते हैं.
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शट डाउन
प्राकृतिक मौत शरीर के शट डाउन की प्रक्रिया है. मृत्यु से ठीक पहले कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. आम तौर पर सांस पर इसका सबसे जल्दी असर पड़ता है. स्थिति जब नियंत्रण से बाहर होने लगती है तो दिमाग गड़बड़ाने लगता है.
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आखिरकार मौत
सांस बंद होने के कुछ देर बाद दिल काम करना बंद कर देता है. धड़कन बंद होने के करीब चार से छह मिनट बाद मस्तिष्क ऑक्सीजन के लिए छटपटाने लगता है. ऑक्सीजन के अभाव में मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती हैं. मेडिकल साइंस में इसे प्राकृतिक मृत्यु या प्वाइंट ऑफ नो रिटर्न कहते हैं.
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मृत्यु के बाद
मृत्यु के बाद हर घंटे शरीर का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस गिरने लगता है. शरीर में मौजूद खून कुछ जगहों पर जमने लगता है और बदन अकड़ जाता है.
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विघटन शुरू
त्वचा की कोशिकाएं मौत के 24 घंटे बाद तक जीवित रह सकती हैं. आंतों में मौजूद बैक्टीरिया भी जिंदा रहता है. ये शरीर को प्राकृतिक तत्वों में तोड़ने लगते हैं.
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बच नहीं, सिर्फ टाल सकते हैं
मौत को टालना संभव नहीं है. ये आनी ही है. लेकिन शरीर को स्वस्थ रखकर इसके खतरे को लंबे समय तक टाला जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्याप्त पानी पीना, शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, अच्छा खान पान और अच्छी नींद ये बेहद लाभदायक तरीके हैं.