स्विट्जरलैंड की सर्न प्रयोगशाला के लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर में अब तक का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग आज ही के दिन 2008 में शुरू हुआ.
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यूरोपीयन ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च ने 10 साल की कड़ी मेहनत के बाद इस कोलाइडर को तैयार किया है जिसका मकसद पार्टिकल फिजिक्स और हाई एनर्जी फिजिक्स के सिद्धांतों की पुष्टि करना है खासतौर से हिग्स कणों के सिद्धांत. लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर यानी एलएचसी से विज्ञान के कुछ अनसुलझे रहस्यों पर से पर्दा उठाने की उम्मीद की जा रही है. इन सिद्धांतों से पर्दा उठा तो भौतिकी के नियमों के बारे में इंसानी समझ काफी आगे चली जाएगी.
एलएचसी को दुनिया के 100 से ज्यादा देशों के 10 हजार से ज्यादा वैज्ञानिकों ने मिल कर तैयार किया है. फ्रांस और स्विट्जरलैंड की सीमा पर जिनेवा में यह 27 किलोमीटर लंबी सुरंग में फैला है जिसकी गहराई करीब 175 मीटर है. यह अब तक की सबसे विशाल और जटिल प्रयोगशाला है. इस प्रयोगशाला से हर साल दसियों पेटाबाइट्स की दर से कॉलिजन डाटा निकल रहे हैं जिनका ग्रिड आधारित कंप्यूटर नेटवर्क के जरिए विश्लेषण किया जा रहा है. यह नेटवर्क 35 देशों के 140 कंप्यूटर केंद्रों में फैला है.
कैसी है सर्न की प्रयोगशाला
दुनिया के सबसे बड़े कण कोलाइडर यानी लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर, एलएचसी में इयॉन के आपस में प्रकाश की गति से टकराते हैं और एक दूसरे को सूक्ष्म कणों में तोड़ देते हैं. यह सब विशालकाय डिजिटल कैमरों में रिकॉर्ड किया जा रहा है.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
कणों की तस्वीरें
यूरोपीय ऑर्गेनाइजेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च यानी सर्न का एलिस डिटेक्टर जिनेवा की एक बहुरंगी इमारत के नीचे 90 मीटर की गहराई पर है. एलिस एक विशाल डिजिटल कैमरा है जो ब्रह्मांड के सूक्ष्म से सूक्ष्म कण की तस्वीर ले सकता है. यह वो कण हैं जिनसे परमाणु का नाभिक बना है.
तस्वीर: DW/F. Schmidt
हेलमेट जरूरी है
एलिस के अलावा तीन दूसरे कैमरे भी हैं जिनका नाम एटलस, सीएमएस और एलएचसीबी है. जो एलएचसी में कणों की टक्कर को दर्ज करते हैं. इन्हें देखने के लिए जमीन के भीतर पहुत गहराई में जाना हो गया. यइलाका फ्रेंच और स्विस आल्प्स की चट्टानों के नीचे है.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
क्या दुर्बल कण बिग बैंग को मानते हैं?
जब प्रोटॉन या लेड आयन के कण आपस में प्रकाश की गति से टकराते हैं तो प्राथमिक कण पैदा होते हैं और ये वो कण हैं जो सीएमएस डिटेक्टर की तरह नजर आते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारा ब्रह्मांड बिग बैंग के बाद इन्हीं कणों से बना है.
तस्वीर: 2011 CERN
सही गति पर सही दिशा
यह वो जगह है जहां लेड आयनों और हाइड्रोजन प्रोटॉन्स को गति दी जाती है. वे एक निर्वात नली के जरिए उड़ कर तेज रफ्तार ट्रेन की गति से आते हैं और विशाल विद्युत चुम्बकों के जरिए सही ट्रैक पर बनाए रखे जाते हैं. नली की परिधि 27 किलोमीटर है और इसमें उन चार बड़े संसूचकों के जरिए पहुंचा जा सकता है जहां कणों की टक्कर होती है.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
दुनिया का सबसे विशाल फ्रिज
कणों को ट्रैक पर रखने वाले विद्युत चुम्बक अतिचालक इनडेक्टर से बने हैं. केबल हर हाल में माइनस 271.3 डिग्री सेल्सियस तक ठंडे होने चाहिए, जिससे उनमें विद्युत प्रतिरोध बिल्कुल न हो. इन्हें ठंडा करने के लिए कोलाइडर बड़ी मात्रा में तरल हीलियम नलियों के जरिए भेजता है.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
छोटे चुंबक
एलएचसी पूरी तरह से वृत्ताकर नहीं है बल्कि लंबे लंबे मोड़ों से बना है, जिसमें चुंबक किरण को मोड़ते हैं. यह विद्युत चुंबक बहुत छोटे हैं. टक्कर से ठीक पहले वो किरण पर फोकस करते हैं और वो भी एक बिल्कुल निश्चित कोण से, जिससे कि दोनों कणों के टकराने की संभावना प्रबल हो. इसके बाद टक्कर संसूचक के एक दम बीच में होती है.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
बोतल में जहाज जैसा
संसूचक बहुमंजिली इमारतों जैसे बड़े हैं. लेकिन इन सबको पर्वतों के नीचे इस तरह के छोटे छोटे हिस्से में लाया गया है. इनके नीचे एक विशालयकाय गुफा है जिसमें सबको जोड़ा गया है.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
एक सेकेंड में 8000 फोटो
यह एलिस संसूचक है, जो मरम्मत के लिए खोला गया है. जह यह ऑपरेशन में होता है तो इयॉन किरणें इसके केंद्र में टकराती हैं. नए कण बनते हैं जो अलग अलग दिशाओं में सिलिकॉन चिप्स की कई परतों के सहारे बढ़ते हैं. ठीक वैसे ही जैसे कि डिजिटल कैमरे के सेंसर. चिप्स और दूसरे संसूचक कणों का रास्ता दर्ज करते हैं. एलिस हर सेकेंड 1.25 गीगाबाइट डिजिटल डाटा जमा कर सकता है.
तस्वीर: DW/F. Schmidt
विद्युत चुम्बक से कणों की पहचान
यह नीला हिस्सा एक और विशाल विद्युत चुंबक है जो एलिस संसूचक का बहुत जरूरी हिस्सा है. यह वह क्षेत्र बनाता है जिसमें टकराव से बने कणों की पहचान हो पाती है. वैज्ञानिक कण के पथ की दिशा का अध्ययन करते हैं. उदाहरण के लिए इसके जरिए वो जान सकते हैं कि कण पर धनात्मक आवेश है या ऋणात्मक या फिर यह अनावेशित है.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
म्यूऑन को पकड़ने के लिए
एटलस संसूचक में एक खास पैमाना है जिसे म्यूऑन स्पेक्ट्रोमीटर कहा जाता है. यह संसूचक के हृदयस्थल में विशाल पंखों की तरह लगा है. इन पंखों के साहरे इलेक्ट्रॉन के एक भारी रिश्तेदार म्युऑन को पकड़ा जा सकता है. म्यूऑन को ढूंढना कठिन होता है क्योंकि वो सेकेंड के 20 लाखवें हिस्से जितने भर के लिए अस्तित्व में आते हैं.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
दूर से रखी जाती नजर
सारे संसूचकों का एक नियंत्रण कक्ष है, जैसे कि यह एटलस का है. कोलाइडर चल रहा हो तो किसी को भी जमीन के भीतर वाले हिस्से में रहने की इजाजत नहीं है. अनियंत्रित हुई प्रोटॉन किरण 500 किलो तांबे को पिघला सकती है और इससे निकली हीलियम गैस दम घोंट सकती है. कणों का प्रवाह रेडियोधर्मिता भी पैदा कर सकती है.
तस्वीर: DW/F. Schmidt
क्या होगा आंकड़ों का
संसूचक हर सेकेंड में 4 करोड़ बार डाटा भेजते हैं, लेकिन चूंकि सारे टकरावों में वैज्ञानिकों की दिलचस्पी नहीं इसलिए इसे छांटना पड़ता है. आखिर में हर सेकेंड 100 टकराव के आंकड़े ही बचते हैं. हालांकि अब भी यह करीब 700 मेगाबाइट प्रति सेकेंड डाटा होती है जो कि एक सीडी में आ सकती है. सारे आंकड़े सबसे पहले सर्न के डाटा प्रोसेसिंग सेंटर में लाए जाते हैं.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
ग्लोबल कंप्यूटर नेटवर्क
सर्न हर साल जितने आंकड़े पैदा करता है अगर उन्हें सीडी में रखा जाए तो यह ढेर 20 किलोमीटर ऊंचा होगा. यहां तक कि टेप लाइब्रेरी भी इतने आंकड़ों को बोझ नहीं उठा सकती. इसलिए इन आंकड़ों को पूरी दुनिया में बांट दिया जाता है. 200 से ज्यादा यूनिवर्सिटी और रिसर्च इंस्टीट्यूट से मिल कर पूरी दुनिया में सर्न का कंप्यूटर नेटवर्क तैयार हुआ है जो उनके लिए डाटा प्रोसेसिंग सेंटर का काम कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/F.Schmidt
हर किसी के लिए आंकड़े
पूरी दुनिया के कण भौतिक शास्त्री सर्न के आंकड़ों का इस्तेमाल कर रहे हैं. यह केंद्र खुद को यूनिवर्सिटी और रिसर्च इंस्टीट्यूट के लिए सेवा देने वाले के रूप में देखता है. एक साझी परियोजना जो सबके भले के लिए है.