11 नवंबर को भारत में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है. भारत में शिक्षा के विकास में जबरदस्त भूमिका निभाने वाले पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद आज ही दिन पैदा हुए थे.
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महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाले मौलाना आजाद भारत के बंटवारे के घोर विरोधी और हिन्दू मुस्लिम एकता के सबसे बड़े पैरोकारों में थे. हालांकि वह उर्दू के बेहद काबिल साहित्यकार और पत्रकार थे लेकिन शिक्षा मंत्री बनने के बाद उन्होंने उर्दू की जगह इंग्लिश को तरजीह दी, ताकि भारत पश्चिम से कदमताल कर चल सके.
11 नवंबर, 1888 को मक्का में पैदा हुए मौलाना आजाद का मानना था कि अंग्रेजों के जमाने में भारत की पढ़ाई में संस्कृति को अच्छे ढंग से शामिल नहीं किया गया, लिहाजा 1947 में आजादी के बाद शिक्षा मंत्री बनने पर उन्होंने पढ़ाई लिखाई और संस्कृति के मेल पर खास ध्यान दिया. मौलाना आजाद की अगुवाई में 1950 के शुरुआती दशक में संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और ललित कला अकादमी का गठन हुआ. इससे पहले वह 1950 में ही भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद बना चुके थे.
क्यों खास है फिनलैंड का शिक्षा मॉडल
शिक्षा और साक्षरता के मामले में विकसित देशों में फिनलैंड का स्थान काफी ऊंचा है. इसका कारण फिनलैंड की असाधारण शिक्षा प्रणाली को बताया जाता है. देखिए क्या हैं वे खास बातें.
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देर से शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय स्कूलों की रैंकिंग में लगातार टॉप पर रहने वाले फिनलैंड के स्कूलों की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को आदर्श माना जाता है. पहला कारण बच्चों को ज्यादा लंबे समय तक बच्चे बने रहने देना है. यहां बच्चे करीब सात साल की उम्र में स्कूल जाना शुरु करते हैं जबकि भारत में 3 साल में.
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खेल खेल में पढ़ाई
बच्चों को हर घंटे के हिसाब से कम से कम 15 मिनट खेल के मैदान में बिताने ही होते हैं. ऐसा पाया गया है कि खेल के बाद बच्चों का पढ़ाई में काफी ध्यान लगता है. जिसको ध्यान में रखते हुए फिनलैंड में बच्चों को लगातार कक्षा में नहीं बैठाया जाता.
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परीक्षा का बोझ नहीं
फिनलैंड का राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड बताता है कि "शिक्षा का जोर परखने से अधिक सिखाने पर है." यहां हाई स्कूल में स्कूल छोड़ने के पहले एक अनिवार्य परीक्षा देनी होती है. उसके पहले की क्लासों में शिक्षक बच्चों के असाइनमेंट पर विस्तार से केवल अपना फीडबैक देते हैं, कोई ग्रेड या अंक नहीं.
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शिक्षक का सम्मान
फिनलैंड में शिक्षकों को नए नए प्रयोग करने की पूरी आजादी होती है. शिक्षक का पेशा बहुत इज्जत से देखा जाता है और इसके लिए आपको कम से कम मास्टर्स डिग्री लेना जरूरी होता है. ओईसीडी का सर्वे दिखाता है कि शिक्षक बच्चों पर होमवर्क का बोझ भी नहीं डालते. फिनलैंड के किशोर हफ्ते में औसतन 2.8 घंटे ही होमवर्क में लगाते हैं.
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हर हुनर की कीमत
फिनलैंड में 1960 के दशक में नए शिक्षा सुधार लाए गए. यह सबके लिए मुफ्त और उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया कराने के सिद्धांत पर आधारित है. यहां हर बच्चे पर ध्यान देकर उसके किसी खास हुनर को पहचानने और उसे बढ़ावा देने पर जोर होता है.
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डिजिटल दुनिया के लिए तैयार
दुनिया में कुछ ही देशों में बच्चों को डिजिटल युग के लिए ठीक से तैयार किया जा रहा है. फिनलैंड उनमें से एक है क्योंकि 2016 तक ही यहां के सभी प्राइमरी स्कूलों में कोडिंग उनके पाठ्यक्रम का एक मुख्य विषय होगा. कोडिंग की मदद से ही कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, ऐप और वेबसाइटें बनाई जाती हैं.
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मुफ्त पर बहुमूल्य शिक्षा
फिनलैंड में केवल स्कूल ही नहीं बल्कि कॉलेज की पढ़ाई भी मुफ्त है. यहां प्राइवेट स्कूल नहीं होते. धीमी गति से सीखने वाले बच्चों के लिए खास संस्थान हैं. सालाना करीब दो प्रतिशत बच्चे इन विशेष संस्थानों में जाते हैं.
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वह भारत के केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन थे, जिसका काम केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर शिक्षा का प्रसार था. उन्होंने सख्ती से वकालत की कि भारत में धर्म, जाति और लिंग से ऊपर उठ कर 14 साल तक सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दी जानी चाहिए. वह महिला शिक्षा के खास हिमायती थे. उनकी पहल पर भारत में 1956 में यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की स्थापना हुई. मौलाना आजाद को एक दूरदर्शी विद्वान माना जाता है, जिन्होंने 1950 के दशक में ही सूचना और तकनीक के क्षेत्र में शिक्षा पर ध्यान देना शुरू कर दिया था. शिक्षा मंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल में ही भारत में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का गठन किया गया.
दुनिया भर की कक्षाएं
बच्चे राष्ट्र का भविष्य होते हैं, यह एक सर्वमान्य तथ्य है. बेहतर प्राथमिक शिक्षा तय करती है कि देश की प्रगति कैसी होगी. एक नजर दुनिया भर के प्राथमिक स्कूलों की कक्षाओं पर.
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स्कूल का अर्थ
दुनिया भर में छात्र कैसे सीखते हैं? हर जगज टीचर ब्लैकबोर्ड पर चॉक से लिखते हैं, लेकिन इसके बावजूद कक्षाओं में अंतर दिखता है. कुछ जगह नन्हे छात्र बाहर कामचलाऊ बेंचों पर बैठते हैं, तो कहीं जमीन पर पद्मासन की मुद्रा में और कहीं लैपटॉप के सामने.
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डिजिटल टेक्स्टबुक
दक्षिण कोरिया की शिक्षा प्रणाली में डिजिटल मीडिया का अत्यधिक चलन है. हर कक्षा में कंप्यूटर और इंटरनेट मौजूद होता है. सरकार किताबों की जगह ई-बुक्स इस्तेमाल करना चाहती है. इसे बढ़ावा देने के लिए गरीब से गरीब परिवार को भी टेबलेट पर्सनल कंप्यूटर मुफ्त दिये जा रहे हैं.
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देहाती इलाकों को नुकसान
किताबों और चार्टों को डिजिटलाइज किया जा सकता है लेकिन सीखने का तरीका मानव स्वभाव का हिस्सा है और इसे डिजिटलाइज नहीं किया जा सकता. छह साल तक स्कूली पढ़ाई मुफ्त करने के बाद घाना में अब सारक्षता का स्तर काफी ऊंचा हो चुका है. वैसे तो वहां स्कूल की पढ़ाई नौ साल की है, लेकिन देहाती इलाकों के स्कूली बच्चे पढ़ाई के बावजूद आधिकारिक भाषा अंग्रेजी नहीं बोल पाते हैं.
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मुश्किल शुरूआत
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू पर प्राथमिक शिक्षा की अनदेखी के आरोप लगते हैं, लेकिन आरोप लगाने वाले भी जानते हैं कि हालात आज भी बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं. ग्रामीण इलाकों में प्राइमरी स्कूलों की दशा दयनीय है, ज्यादातर स्कूलों में शौचालय तक नहीं हैं. कई इलाकों में एक से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए सिर्फ एक या दो शिक्षक मौजूद रहते हैं.
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टचपैड पर लिखने की सीख
जर्मनी के इस स्कूल में नन्हे बच्चे पेंसिल से कॉपी पर लिखना नहीं सीखते. यहां लिखने के लिए स्मार्टबोर्ड का इस्तेमाल किया जाता है. कोशिश है कि बच्चे तकनीक के साथ घुलें मिलें.
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औद्योगिक देशों में प्राथमिक शिक्षा
औद्योगिक देशों में स्कूल का मतलब प्राथमिक शिक्षा से कहीं ज्यादा है. अमेरिका के आयोवा में ये चार साल के बच्चे अपने टीचर को ध्यान से सुन रहे हैं. औद्योगिक देशों में 70 फीसदी बच्चे प्राथमिक स्कूल से पहले किंडरगार्डेन में कुछ कुछ सीखना शुरू कर देते हैं. कम आय वाले देशों में 20 में से सिर्फ तीन ही बच्चों को ऐसी सुविधा मिल पाती है.
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पैसे की कमी का असर
केन्या में सभी बच्चों के लिए आठ साल की स्कूली शिक्षा नि:शुल्क है. लेकिन इसके बावजूद सभी बच्चे स्कूल नहीं जा पाते. कई अभिभावकों के लिए स्कूल की पोशाक, जूते, किताबें, कॉपिया और पेन जुटाना मुश्किल होता है. सरकारी स्कूलों में भारी भीड़ के बावजूद पढ़ाई लिखाई के लिए अच्छा माहौल नहीं है. ठीक ठाक कमाई वाले लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं.
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पढ़ाई स्कूल की यूनिफॉर्म में
इंग्लैंड में ज्यादातर बच्चे यूनिफॉर्म में स्कूल जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि यूनिफॉर्म के जरिए बच्चे खुद को स्कूल की पहचान से जोड़ पाते हैं और बेहतर ढंग से सीखते हैं. लेकिन विकास करते देशों में जो लोग अपने बच्चों के लिए यूनिफॉर्म नहीं खरीद सकते, वो सरकारी मदद की आस में रहते हैं.
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खुले में कक्षा
स्कूल तो बच्चे तब जाएंगे जब स्कूल होगा. पाकिस्तान के कुछ इलाकों में बच्चों को सार्वजनिक पार्कों में पढ़ाया जाता है. पाकिस्तान ने शिक्षा पर खर्च घटाया है. देश शिक्षा के बजाए सेना पर ज्यादा खर्च करता है.
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आधारभूत शिक्षा के लिए संघर्ष
अफगानिस्तान की आबादी का अच्छा खासा हिस्सा बिना किसी शिक्षा के बड़ा हुआ है. देश में तालिबान के शासन के दौरान छिड़े गृह युद्ध के चलते ऐसा हुआ. अफगानिस्तान की सिर्फ 25 फीसदी महिलाएं ही साक्षर हैं. पुरुषों में सारक्षता 52 फीसदी है. देश में अब भी पर्याप्त स्कूल, शिक्षक और सामग्री का अभाव है.
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पिछड़ती बेटियां
ऐसे ही हालात दक्षिण सूडान में भी हैं, जहां सिर्फ 16 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं. विदेशी मदद संगठन यहां लड़कियों को शिक्षित करने पर जोर दे रहे हैं. लंबे गृह युद्ध का असर यहां के स्कूलों पर पड़ा है. कुछ ही स्कूल सुरक्षित बचे हैं और उनमें भी फर्नीचर का अभाव है. किताबें भी आधे स्कूलों के पास हैं.
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विशाल अंतर
ब्राजील के दूर दराज के इलाकों के स्कूल भी सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं. ब्राजील को तेजी से औद्योगिक होता देश कहा जाता है लेकिन इसके बावजूद वहां अमीर और गरीब का फासला फैलता जा रहा है. पूर्वोत्तर ब्राजील में खेती करने वाले आज भी बेहद गरीबी में जी रहे हैं.
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मौलाना आजाद पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना के घोर विरोधी थे और उन्होंने अपनी किताब इंडिया विन्स फ्रीडम में आजादी के बारे में कुछ विवादित हिस्सों को भी छुआ है. 1958 में आखिरी सांस लेने तक वह भारत के शिक्षा मंत्री बने रहे. मौलाना आजाद को 1992 में मरणोपरांत भारत के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.