इतिहास में आजः 13 अक्टूबर
१२ अक्टूबर २०१३ ग्रीनविच मीन टाइम का मतलब था रॉयल ऑब्जर्वेटरी लंदन का मीन सोलर टाइम. इसे बाद में वैश्विक स्तर पर मानक समय माना गया. वैसे तो यह कॉर्डिनेटेड यूनिवर्सल टाइम यूटीसी जैसा ही है, लेकिन जीएमटी को अधिकतर ब्रिटिश संस्थाएं इस्तेमाल करतीं थी.
इसे आज भी ब्रिटेन सहित कई कॉमनवेल्थ देशों में इस्तेमाल किया जाता है जिनमें भारत और पाकिस्तान भी शामिल हैं. 1 जनवरी 1972 में यूटीसी के इस्तेमाल के बाद से खगोलविज्ञानियों ने ग्रीनविच मीन टाइम का इस्तेमाल बंद कर दिया है.
खाली समय में क्या करते हैं जर्मन
आमतौर पर जर्मन बेहद मेहनती माने जाते हैं, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों के मुकाबले जर्मनी में लोगों के पास ज्यादा खाली समय होता है. तो इस खाली समय में क्या करते हैं वे...
सर्फिंग
लहरों के साथ खेलने के लिए समंदर किनारे रहने की जरूरत नहीं. ये साबित करते हैं म्यूनिखवासी. यहां आइसबाख के नजदीक इंग्लिश गार्डन के पास लहरों की सवारी करने वाले दिख जाएंगे. यहां लहर करीब एक मीटर ऊंची हो जाती है. म्यूनिख के सर्फर अब कॉमन है. 2009 में इन पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई गई थी.
पतंगों का मौसम
जब सितंबर में पत्तियों पर रंग चढ़ने लगते हैं तो यहां के आसमान में भी रंगों की छटा बिखरती है, छोटी बड़ी पतंगों के रूप में. इन्हें यहां रंगीन ड्रैगन कहा जाता है. जर्मनी में उत्तरी सागर पर ये खेल खूब होता है.
पढ़ते हुए
कवियों और दर्शनशास्त्रियों के इस देश में किताबें खूब पसंद की जाती हैं. अक्टूबर में किताबों के दीवाने फ्रैंकफर्ट पुस्तक मेले से प्रेरणा ले सकते हैं. जर्मन क्लासिक साहित्य ही पसंद करते हैं. प्रकाशकों की कमाई में अब 10 फीसदी हिस्सा ईबुक्स का भी है.
टीवी ऑन
नवंबर में जैसे जैसे दिन छोटे होने लगते हैं, लोग टीवी ज्यादा देखते हैं. यह वैसे भी जर्मनों का पसंदीदा काम है. सर्वे के मुताबिक 96 फीसदी जर्मन नियमित तौर पर टीवी देखते हैं. इसके बाद टेलीफोन और रेडियो की बारी आती है. सर्वे में शामिल लोगों के मुताबिक वे परिवार के साथ ज्यादा समय गुजारना चाहते हैं.
खुद बनाएं
ऐसा भी नहीं है कि जर्मन टीवी देखते हुए बैठे रहते हैं. अक्सर वे बुनाई, कढ़ाई या सिलाई भी करते हैं. ये फैशन लौट रहा है. दिसंबर में क्रिसमस का समय भागदौड़ से दूर, आराम और मजे का होता है.
स्कीइंग
जर्मनी में जनवरी अक्सर काफी ठंडा महीना होता है. इस समय सलाइयां, क्रोशिया पैक कर दी जाती हैं और समय होता है स्कीइंग का. कई शहरों के बाजार में एक छोटा सी जगह स्केटिंग के लिए बना दी जाती है. फिर यहां बच्चे और बड़े खूब मजे से आइस स्केटिंग का मजा लेते हैं.
बर्फ के दीवाने
यहां हर चौथा जर्मन या तो बर्फ में स्कीइंग करता है या फिर स्नोबोर्ड पसंद करता है. फरवरी में पहाड़ों में इसका खूब मजा आता है. जर्मनी में स्कीइंग के लिए आल्प्स और मिटिलगेबिर्गे पर्वत श्रृंखला खूब मशहूर है. जिनके लिए पहाड़ बहुत दूर हैं वो उत्तरी जर्मनी के स्कीइंग हॉल में भी जा सकते हैं.
चलो घास काटने
मार्च में जर्मनी सर्दियों को बाय बाय कहता है. तब समय होता है बागीचे की साफ सफाई का और किचन गार्डन में खुद फल सब्जियां उगाने का. बड़े शहरों में भी अरबन गार्डनिंग होती है. सर्वे के मुताबिक पूर्वी जर्मनी के राज्यों में करीब 50 फीसदी लोग हर रोज बगीचे में काम करते हैं.
फुटबॉल
अप्रैल में बढ़ता तापमान लोगों को घर की चारदीवारी से बाहर जाने को कहता है और फिर हरी घास पर फुटबॉल के मैच शुरू हो जाते हैं. जर्मन फुटबॉल संघ डीएफबी के 68 लाख सदस्य हैं लेकिन खाली समय में फुटबॉल सबसे पसंदीदा नहीं...
दो पहिए पर
जर्मनों को साइकिल चलाना खूब भाता है. मई में जत्थे के जत्थे सड़कों पर साइकिलों से जाते हुए दिख जाएंगे. पहाड़ी से तीखी ढलान पर साइकिल चलाने की दीवानगी लगातार बढ़ रही है. माउंटेन बाइकिंग लोगों को काफी पसंद आ रही है.
पानी में
सर्वे के मुताबिक जर्मन आलस करने की भी इच्छा रखते हैं. जून में खुले स्विमिंग पूल खुल जाते हैं. गर्मियों में लोग काम के बाद आराम से नदी, समंदर के किनारे पर लेटे हुए वक्त बिता सकते हैं. बहुत गर्मी होने पर पानी सुकून भी देता है. तैरना जर्मनों को खूब पसंद है.
ये वादियां बुला रही हैं...
जुलाई में पहाड़ी पर जाने से गर्मी से छुटकारा मिल जाता है और घाटी के शानदार नजारे देखने को मिलते हैं सो अलग. आल्प्स असोसिएशन के मुताबिक हर साल कम से कम 10 लाख लोग वहां पहुंचते हैं. यह असोसिएशन 1869 में बनाई गई थी.
आराम के पल
जर्मन लोगों को आमतौर पर मेहनती और सक्षम माना जाता है. दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में उनके पास काफी खाली समय होता है. कम से कम चार घंटा हर दिन.
एक सेकंड के लिए रुक जाए घड़ी
30 जून 2015 साल के बाकी दिनों से अलग रहा क्योंकि यह दिन एक सेकंड लंबा था. आपके कंप्यूटर और स्मार्टफोन की घड़ी में यह एक सेकंड अपने आप ही जुड़ गया और आपको पता भी नहीं चला.
क्या है लीप सेकंड?
जिस तरह से चार साल में एक बार एक दिन जोड़ दिया जाता है, उसी तरह कभी कभी एक सेकंड जोड़ने की जरूरत भी पड़ती है. लीप ईयर की ही तरह इसे लीप सेकंड कहा जाता है.
कितना लंबा है एक दिन?
धरती 24 घंटे में अपनी धुरी पर एक चक्कर पूरा करती है. इसी को एक दिन कहा जाता है. यानि 86,400 सेकंड. लेकिन अगर इस समय को सटीक रूप से नापा जाए तो दरअसल यह 86,400.002 सेकंड के बराबर है.
क्या है गणित?
हर दिन ये 0.002 सेकंड जमा होते रहते हैं और एक साल में करीब 2 मिलीसेकंड जुड़ जाते हैं. इस तरह से करीब तीन साल में एक पूरा सेकंड बन जाता है. हालांकि यह इतना छोटा वक्त है कि कई बार इसे पूरा होने में काफी लंबा वक्त लगता है.
अजीब समस्या
वैज्ञानिकों के लिए समस्या यह है कि यह एक सेकंड पूरा कब होगा, इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता. इसकी वजह यह है कि धरती के परिक्रमण की गति धीमी होती जा रही है.
26वीं बार
ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. 1972 से ही वैज्ञानिक एक एक सेकंड जोड़ते रहे हैं. इस बार इतिहास में 26वीं बार घड़ियों के साथ फेर बदल किया जाएगा. पिछली बार 30 जून 2012 में एक सेकंड जोड़ा गया था.
23:59:60
घड़ियों को रोकने का काम या तो 31 दिसंबर को किया जाता है या 30 जून को. रात को बारह बजने से ठीक पहले ऐसा किया जाएगा, यानि 23:59:59 के बाद 00:00:00 नहीं, बल्कि 23:59:60 देखने को मिलेगा.
गड़बड़ाया सॉफ्टवेयर
2012 में जब लीप सेकंड जोड़ा गया तो मोजिला, लिंक्डइन और स्टंबल अपोन जैसी कई साइटें क्रैश हो गईं क्योंकि उनके सॉफ्टवेयर इस बदलाव के लिए तैयार नहीं थे.
कौन करेगा?
फ्रांस स्थित इंटरनेशनल अर्थ रोटेशन सर्विस लीप सेकंड को जोड़ने का काम करेगी. जिस तरह से गर्मियों और सर्दियों में पश्चिमी देशों में घड़ियां एक घंटा आगे और पीछे कर दी जाती हैं, उसी तरह दुनिया भर की घड़ियों में यह बदलाव होगा.