13 जनवरी 1920 को न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने संपादकीय में खास तौर से लिखा कि रॉकेट कभी उड़ नहीं सकते. इससे पहले रॉबर्ट गोडार्ड नाम के वैज्ञानिक का एक रिसर्च आधारित लेख छपा था. इसमें उन्होंने एक ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया का वर्णन किया था जिससे रॉकेट में बैठकर मनुष्य पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को तोड़ कर बाहर जा सकता है. इस लेख को आज अंतरिक्ष यात्रा को संभव करने वाले सबसे अहम शोधों में गिना जाता है.
इस लेख के छपने के एक ही दिन बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक बेनाम संपादकीय में लिखा कि रॉकेट में वैज्ञानिक यंत्रों को लेकर जाना नामुमकिन है. लेखक का कहना था कि अंतरिक्ष में वेक्यूम होने की वजह से वहां उड़ना असंभव है. अखबार का मानना था कि अगर रॉकेट को धकेलने के लिए हवा नहीं है, तो वह उड़ भी नहीं सकेगा.
कुछ वक्त बाद न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने इस दावे को वापस ले लिया लेकिन गोडार्ड पर वैज्ञानिक भी विश्वास नहीं करना चाहते थे. गोडार्ड को अमेरिकी नौसेना के साथ करार करने का मौका मिला लेकिन उनके पास शोध के लिए पैसे नहीं थे. इसका फायदा जर्मन तकनीक को हुआ, जिसके वैज्ञानिकों ने वी 2 रॉकेट बनाया. कहा जाता है कि सोवियत रूस के कुछ जासूसों को गोडार्ड की रिपोर्टें मिलीं और उन्होंने इसका इस्तेमाल अपने रॉकेट कार्यक्रम के लिए किया था.
जर्मनी के अंतरिक्ष यात्री अलेक्जांडर गैर्स्ट ने अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर छह महीने गुजारते हुए कुछ मजेदार तस्वीरें ली थीं. देखिए.
तस्वीर: ESA/NASA"हैलो बर्लिन, यहां ऊपर से मुझे कोई सीमाएं नजर नहीं आ रही हैं." 9 नवंबर, बर्लिन दीवार के गिरने की 25वीं वर्षगांठ के मौके पर अलेक्जांडर गैर्स्ट ने यह ट्वीट किया. विज्ञान से जुड़े कई प्रयोगों के अलावा गैर्स्ट का मकसद था लोगों को दिखाना कि अंतरिक्ष से हमारी पृथ्वी कितनी खूबसूरत लगती है. अपने प्रोजेक्ट का नाम उन्होंने 'ब्लू डॉट' रखा.
तस्वीर: Alexander Gerst/ESA/picture-alliance/dpaउत्तरी ध्रुव के पास रोशनी का ऐसा अनोखा नजारा देखने को मिलता है. इसे ऑरोरा कहते हैं. अंतरिक्ष से ऑरोरा की तस्वीर भेजते हुए गैर्स्ट ने लिखा, "मैं शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकता कि ऑरोरा के बीच से उड़ान भरते हुए मुझे कैसा महसूस हो रहा है." गैर्स्ट शब्दों में भले ही ऑरोरा की खूबसूरती को व्यक्त ना कर पाए हों, लेकिन तस्वीर सब कुछ कह रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ESA/NASA/Alexander Gerstऑरोरा को नॉदर्न लाइट्स के नाम से भी जाना जाता है. धरती पर भी इन्हें देखना कम ही लोगों को नसीब हो पाता है. नॉर्वे के बर्फीले इलाकों में लोग रोशनी के मंजर को देखने पहुंचते हैं. गैर्स्ट खुद को भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें अंतरिक्ष में ऑरोरा का अनुभव करने का मौका मिला.
तस्वीर: ESA/NASAअंतरिक्ष में रहते हुए भी गैर्स्ट सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय रहे. उन्होंने वहां से कई तस्वीरें फेसबुक और ट्विटर पर शेयर कीं. #geochallenge के साथ वे अक्सर तस्वीर पोस्ट किया करते और लोगों से पूछते कि उनके अनुसार यह किस जगह की तस्वीर है. किसी पहाड़ या ज्वालामुखी जैसा दिखने वाला दरअसल यह एरिजोना में एक उल्कापिंड द्वारा बनाया गड्ढा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ESA/NASA/Alexander Gerstदेखने में तो यह बादलों के बीच एक छोटा सा सुराख लगता है, पर यह 80 किलोमीटर बड़ा है. इसे 'आय ऑफ स्टॉर्म' यानि तूफान की आंख कहा जाता है. यह देखने में भले ही खूबसूरत हो, लेकिन इससे धरती पर भारी नुकसान पहुंच सकता है. इस तस्वीर को पोस्ट करते हुए गैर्स्ट, "यहां ऊपर से देख कर हैरानी होती है कि हमारी दुनिया एक दूसरे से कितने प्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ESA/NASA/Alexander Gerstगैर्स्ट की तस्वीरों की खास बात है कि इनमें किसी भी तरह के फेर बदल नहीं किए गए हैं. यह तस्वीर गाजा और इस्राएल की है. वहां हो रही बमबारी और धमाकों को इसमें साफ देखा जा सकता है. जब गैर्स्ट ने यह तस्वीर भेजी, तो उन्होंने लिखा, "यह अब तक की मेरी सबसे दुखद तस्वीर है."
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ESA/NASAऊपर से नजर आ रही ये गोल आकृतियां किसी एलियन का काम नहीं हैं, बल्कि इंसानों द्वारा बनाए गए खेत हैं. यह मेक्सिको की तस्वीर है जहां सूखे इलाके में भी खेती को मुमकिन बनाया गया है. गैर्स्ट ने भी अंतरिक्ष में रहते हुए कुछ पौधों को उगाने की कोशिश की ताकि पता किया जा सके कि पानी को बेहतर रूप से कैसे इस्तेमाल किया जा सकता है.
तस्वीर: ESA/NASAगैर्स्ट के ऐसी कई तस्वीरें किसी कलाकार का काम लगती हैं. कुदरत के ये नजारे हैरान करते हैं. यह तस्वीर कजाकिस्तान की एक नदी को दिखाती है. अलग अलग रंगों से नदी के अब तक के नए और पुराने रास्तों को भी देखा जा सकता है.
तस्वीर: ESA/NASAकहते हैं कि सहारा में जा कर ऐसा लगता है जैसे रेत के पहाड़ कभी खत्म ही नहीं होंगे. लेकिन अंतरिक्ष से देखें तो इन रेतीले पहाड़ों की सीमाएं पता चलती हैं. इस तस्वीर के साथ गैर्स्ट ने लिखा, "आइसिस के अंदर जब नारंगी रोशनी आने लगती है, तो मुझे बिना बाहर देखे ही पता चल जाता है कि मैं अफ्रीका के ऊपर उड़ रहा हूं."
तस्वीर: ESA/NASAयह उत्तरी अफ्रीका की तस्वीर है. इस तरह की पुरानी तस्वीरें भी मौजूद हैं. नई और पुरानी की तुलना कर वैज्ञानिक भौगोलिक बदलावों को बेहतर रूप से समझ सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ESA/NASA/Alexander Gerst