जर्मनी की नाजी तानाशाही में यह महत्वपूर्ण पड़ाव था, जिसका अंत बड़े पैमाने पर यहूदी नरसंहार और द्वितीय विश्व युद्ध के रूप में सामने आया, जिसमें 60 लाख से ज्यादा लोग मारे गए
न्यूरेम्बर्ग शहर में हुई नाजी पार्टी की वार्षिक रैली में ये यहूदी विरोधी कानून पेश किया गया. 1933 में हिटलर के सत्ता में आने के बाद नाजीवाद जर्मनी की सरकारी विचारधारा बन गया और यहूदियों को व्यवस्थित और सुनियोजित तरीके से निशाना बनाया गया.
हालांकि यहूदी कौन हैं, इसकी साफ और कानूनी परिभाषा नहीं होने के कारण कुछ यहूदी इस भेदभाव से बच सके. बाद में रेस्टोरेशन ऑफ प्रोफेशनल सिविल सर्विसेज नाम का एक कानून बना, जिसके तहत गैर आर्यों को सिविल सर्विस में आने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इस कानून के कारण नाजियों के राजनीतिक प्रतिद्ंवद्वियों के सिविल सर्विस में आने से रोक लग गई.
दूसरे विश्व युद्ध में 6 जून 1944 को कबूतर गठबंधन सेना की नॉर्मैंडी में लैंडिंग की अच्छी खबर लाए. सेना में चमगादड़, मधुमक्खी, चिड़िया या डॉल्फिन बहुत सारे जानवरों का सेना में इस्तेमाल किया जाता रहा है. देखें तस्वीरें...
तस्वीर: picture-alliance/dpaदोनों विश्व युद्धों में कबूतरों का संदेश भेजने के लिए काफी इस्तेमाल किया गया. उनके अच्छे दिशा ज्ञान के कारण दूसरे विश्व युद्ध में सिर्फ ब्रिटेन ने दूर दराज में संदेश भेजने के लिए दो लाख कबूतर इस्तेमाल किए. इस पंछी ने हजारों लोगों की जान भी बचाई है. कुछ को तो विक्टोरिया क्रॉस की तरह का डिकिन मेडल भी दिया गया.
तस्वीर: Getty Imagesये पंछी सिर्फ संदेश लाते ले जाते नहीं थे. 1907 में युलियुस नॉयब्रोनर को आयडिया आया कि इनके गले में छोटा सा कैमेरा बांध हवा से फोटो भी लिए जा सकते हैं. इन्हें कभी जासूसी के लिए या लड़ाई के मैदान में इस्तेमाल किया जाना था या नहीं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. अमेरिका ने प्रोजेक्ट पिजन के तहत पिजन गाइडेड मिसाइल बनाने की कोशिश भी की.
तस्वीर: picture-alliance/akgइंसान के सबसे अच्छे दोस्त कुत्ते को बारुदी सुरंग सूंघने और बम धमाकों में घायल लोगों को ढूंढने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. वियतनाम में अमेरिका ने चार हजार कुत्ते इस्तेमाल किए, इनमें अधिकतर लैब्रेडोर और जर्मन शेफर्ड प्रजाति के थे.
तस्वीर: Getty Imagesदूसरे विश्व में इन्हें एंटी टैंक डॉग्स कहा जाता है. रूस की सेना इन्हें जर्मनी के टैंकों के खिलाफ इस्तेमाल करती थी. विस्फोटकों के साथ इन्हें टैंक के नीचे जाने की ट्रेनिंग दी जाती. जैसे ही ये वहां पहुंचते बम में विस्फोट करवा दिया जाता. 1996 तक इन्हें इस्तेमाल किया जाता रहा. अब कुत्तों का इस्तेमाल विस्फोटक ढूंढने में किया जाता है, धमाके में उड़ा देने के लिए नहीं.
तस्वीर: Getty Imagesअमेरिका ने एक प्रयोग शुरू किया, 1940 के दशक में चमगादड़ों पर बम बांध दिए जाते थे. जैसे ही बम का कनस्तर गिराया जाता हजारों छोटे चमगादड़ नैपैम को लिए उड़ते और नीचे किसी इमारत पर बैठते. योजना थी एक ही शहर में एक साथ कई जगह आगजनी करने की जाए.
तस्वीर: imago1960 में सीआईए ने अकूस्टिक किट्टी प्रोजेक्ट के जरिए सोवियत दूतावासों में जासूसी करने की योजना शुरू की. इसके लिए एक बिल्ली में माइक्रोफोन, बैटरी, एंटीना ऑपरेशन कर लगा दिए जाते. ये बाहर होने वाली बातचीत रिकॉर्ड कर सकते थे. इस प्रोजेक्ट को 1967 में खत्म कर दिया गया.
तस्वीर: Peymanसी लायन और डॉल्फिन अमेरिकी सेना में 1960 से काम कर रहे हैं. वह नौसेना के मैमल प्रोग्राम का हिस्सा हैं. उन्हें दुश्मन गोताखोरों का पता लगाने, जहाज के यात्रियों को सुरक्षित तट तक पहुंचाने और पानी के नीचे बिछाई गई बारुदी सुरंगों का पता लगाने के लिए किया जाता था. इराक युद्ध के दौरान फारस की खाड़ी में बारूदी सुरंगों की सफाई का काम डॉल्फिन करती थीं.
तस्वीर: picture-alliance/PIXSELLमीठा पराग सूंघने की मधुमक्खी की क्षमता का भी इस्तेमाल सेना में किया गया. क्रोएशिया में बम पार्टिकल को मीठे घोल में डूबा कर शोधकर्ता ऐसी मधुमक्खियां ब्रीड करवा रहे हैं जो तीन मील दूर से ही छिपी हुई बारुदी सुरंग का पता लगा लें.
तस्वीर: Getty Imagesतंजानिया में बेल्जियाई गैर सरकारी संगठन अपोपो चूहों को बारुदी सुरंग सूंघने की ट्रेनिंग दे रहा है. इन्हें कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है और फिर ये दूसरे देशों को किराये पर दिए जाते हैं. फिलहाल 57 चूहे ऐसे हैं जो इन सुरंगों का पता लगा सकते हैं.
तस्वीर: Yasuyoshi Chiba/AFP/Getty Images1970 में ब्रिटेन की एमआई5 ने योजना बनाई कि वह खास चूहों की एक टीम बनाएगी जिन्हें एड्रेनलीन यानि स्ट्रेस हार्मोन सूंघना सिखाया जाएगा. जैसे ही किसी में एड्रेनलीन बढ़ेगा चूहे उसे सूंघ लेंगे. सबसे पहले इन्हें तेल अवीव में आतंकियों को सूंघने के लिए तैनात किया गया, लेकिन जल्द ही पता चला कि वे नर्वस यात्रियों और आतंकियों के बीच फर्क नहीं कर सकते.
तस्वीर: imago/alimdiदुनिया भर की सेनाएं जानवरों की खासियतों पर सालों साल निर्भर रही है. लंदन में विश्व युद्ध के दौरान मारे गए जानवरों की याद में ये स्मारक बनाया बनाया गया है. इसे 2004 में लंदन में सार्वजनिक रूप से खोला गया.
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न्यूरेम्बर्ग कानून के तहत चार जर्मन दादा-दादियों वाले लोगों को जर्मन माना गया, लेकिन जिनके तीन या चार दादा-दादी यहूदी थे, उन्हें यहूदी माना गया. एक या दो यहूदी दादा-दादी वाले लोगों को मिश्रित खून वाला वर्णसंकर कहा जाता. इस तरह के कानूनों ने यहूदियों से जर्मन नागरिकता तो छीन ही ली, यहूदियों और जर्मनों के बीच शादी पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया. शुरुआत में तो यह कानून सिर्फ यहूदियों के लिए ही बने थे लेकिन बाद में इन्हें जिप्सियों या बंजारों और अश्वेतों पर भी लागू कर दिया गया.
इससे पहले ही जर्मनी में यहूदी व्यवसायों का बहिष्कार शुरू हो गया था. न्यूरेम्बर्ग कानूनों के माध्यम से न्यायिक मान्यता दी गई.