16 नवंबर 1945 को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को के गठन का फैसला हुआ था. यूनेस्को का उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान, संस्कृति और संचार के माध्यम से शांति और समझबूझ को बढ़ावा देना है.
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1943 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही लंदन में एक अंतरराष्ट्रीय शिक्षा और सांस्कृतिक संगठन बनाने के लिए आठ यूरोपीय मित्र देशों की बैठक हुई. उनके नजरिए की छाप 1945 में यूनेस्को के गठन में दिखी. एजेंडे की प्राथमिकता थी, संवाद के जरिए विश्व में शांति की स्थापना. ये कॉन्फ्रेंस एक से 16 नवंबर 1945 के बीच आयोजित हुई थी जिसमें 44 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था. ये देश चाहते थे कि शांति की बहाली के साथ ही वो अपनी शिक्षा व्यवस्था का पुनर्निमाण करें.
तस्वीर जिसने बदल दी जिंदगी
वेंडी निकोल बतौर पर्यावरण पत्रकार जब युगांडा गईं तो नहीं जानती थीं कि उनकी जिंदगी को वह मकसद मिल गया है जिसके लिए वह अपना घर तक बेच देंगी.
तस्वीर: Wendee Nicole
यहां से हुई शुरुआत
वेंडी निकोल ने युगांडा में एक प्रोजेक्ट के दौरान यह तस्वीर खींची. बेकहम की आंखें बहुत कुछ कहती हैं. उन दो आंखों की ताकत ने निकोल को एहसास दिलाया कि दुनिया के कई हिस्सों में शिक्षा, पर्यावरण और सामाजिक उत्थान की दिशा में कितना कुछ होना बाकी है.
तस्वीर: Wendee Nicole
घर बेचा
अमेरिका में सहूलियतों से भरा जीवन जीने के बाद युगांडा जाने का फैसला आसान नहीं था, लेकिन निकोल ने ऐसा किया. अपना घर बेचकर वह युगांडा में कलेहे गांव पहुंचीं. यहां उन्होंने अपनी गैर सरकारी संस्था शुरू की. वह स्थानीय लोगों के साथ मिलकर पर्यावरण और सामाजिक परियोजनाओं पर काम करती हैं.
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पहाड़ी गुरिल्ला के प्रति आकर्षण
निकोल पहाड़ी गुरिल्ला देखने के लिए बहुत उत्सुक थीं. यहां घट रहे जंगलों से यह प्रजाति बड़े खतरे में है. साथ ही नेशनल पार्क में उनके विस्थापन से भी उन्हें तकलीफ का सामना करना पड़ा. निकोल कहती हैं, "यहां लोग और गुरिल्ला दोनों ही गरीबी की बड़ी बीमारियों जैसे टीबी और स्कैबीज के खतरे में हैं."
तस्वीर: Wendee Nicole
संरक्षण का सपना
निकोल की रिडेंप्शन सॉन्ग फाउंडेशन संस्था पर्यावरण संरक्षण के फिर से जंगल लगाने जैसे उपायों पर काम कर रही है. साथ ही यह संस्था गैरकानूनी शिकार के खिलाफ काम कर रही है. इस तस्वीर में दिखाई दे रहे लकड़ी के लट्ठों को लोग पुल बनाने के लिए ले जा रहे हैं. जहां कहीं भी पेड़ गिरता है वहां नया पौधा रोपा जाता है.
तस्वीर: Wendee Nicole
बहुत कुछ करना है
संरक्षण के अलावा उनकी संस्था स्थानीय लोगों द्वारा बनाई गई डलियों को उचित दाम पर बेचती है ताकि विकास के लिए पैसे जुटाए जा सकें. संस्था बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रोत्साहित करती है और इस बात का ख्याल रखती है कि उनके भोजन में पर्याप्त प्रोटीन हो. निकोल को स्थानीय बच्चों के साथ समय बिताना बेहद पसंद है. (टैमसिन वॉकर के साथ निकोल के इंटर्व्यू पर आधारित)
तस्वीर: Wendee Nicole
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जल्द ही इस प्रयास में तेजी आ गई और इसने एक वैश्विक रूपरेखा अख्तियार कर ली. अमेरिका जैसे देश भी इसमें शामिल हो गए. अगर संयुक्त राष्ट्र की कोई ऐसी संस्था है जिसकी कार्यप्रणाली पर सबको यकीन है और जिसने सबसे अच्छा काम किया है तो वह यूनेस्को ही है. इस संस्था का उद्देश्य शिक्षा, विज्ञान संस्कृति और संचार के माध्यम से शांति और विकास का प्रसार करना है.
विषमता का देश अंगोला
दक्षिण अफ्रीकी देश अंगोला को 1975 में पुर्तगाल से आजादी मिली. लेकिन 2002 तक देश में गृहयुद्ध चलता रहा. जानिए आज कैसे हैं वहां के हालात.
तस्वीर: DW/R. Krieger
स्लमों में कटती जिंदगी
अंगोला की राजधानी लुआंडा के करीब काजेंगा में 40 वर्ग किलोमीटर के इलाके में 400,000 लोग रहते हैं. रास्ते पक्के नहीं हैं, सभी घरों में बिजली नहीं है. सत्ताधारी एमपीएलए पार्टी के बहुत से नेता इस इलाके से आते हैं, लेकिन किसी ने काजेंगा की सुध नहीं ली है.
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एक पार्टी, एक नेता
"एमपीएलए राष्ट्रपति की पार्टी है. वे गृहयुद्ध के बाद से सत्ता सौंपने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लोग उन्हें ही चाहते हैं. इसलिए वे सत्ता में बने हुए हैं." यह कहना है कि 27 वर्षीय यूरीक्लेरिवाल वास्को का, जिन्होंने 2012 में इस पार्टी को चुना. आलोचकों का कहना है कि दोस सांतोस ने अब तक कोई वादा पूरा नहीं किया है.
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बेरोजगार लोग
करीब 40 प्रतिशत अंगोलावासी 1 डॉलर प्रति दिन पर जी रहे हैं. बहुत से लोगों को देश में मिले तेल से होने वाली आमदनी से रोजगार मिलने और जिंदगी के बेहतर होने की उम्मीद थी. लेकिन वह उम्मीद ही क्या जो पूरी हो जाए. वे रोज कमा खा रहे हैं. इस विक्रेता की तरह जो बिस्कुट बेचकर अपने परिवार का गुजारा चलाता है.
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लुआंडा की लग्जरी
तेल से होने वाली आमदनी राजधानी लुआंडा तक ही पहुंची है. यह इस बीच दुनिया के सबसे खर्चीले शहरों में शामिल हो गया है. एक अपार्टमेंट का किराया 5000 डॉलर तक है. यहां की सबसे ज्यादा अमीरी खासकर समुद्र तट पर बसे इलाके बाया दे लुआंडा में दिखती है. पूरे शहर में बहुमंजिली इमारतें खड़ी होती जा रही हैं.
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अंगोला का कैपिटल हिल
बाया दे लुआंडा में ही अंगोला का नया संसद भवन बन रहा है. सत्ताधारी एमपीएलए पार्टी के पास संसद में 220 में से 175 सीटें हैं. गृहयुद्ध में वामपंथी एमपीएलए के खिलाफ लड़ने वाली यूनीटा सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है. उसकी 32 सीटें हैं. अंगोला के राजनीतिक परिदृष्य पर एमपीएलए का सख्त शिकंजा है.
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अंगोला के दबंग
राष्ट्रपति होसे अदुआर्दो दोस सांतोस की तस्वीर चुनावी पोस्टर से झांक रही है. आलोचकों का कहना है कि उनका कार्यकारी से लेकर न्यायिक और विधायी सत्ता पर नियंत्रण है. वे 33 साल से अंगोला पर शसासन कर रहे हैं. 1979 में वे गृहयुद्ध में फंसे अंगोला में आगुस्तिन्यो नेटो की जगह पर पार्टी और सरकार के नेता बने थे.
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रिकॉर्ड पुनर्निर्माण
राजधानी से दूर देहाती इलाकों में गृहयुद्ध के समय की बारूदी सुरंगे हर कहीं छितरी दिखाई देती हैं. 2002 में गृहयुद्ध समाप्त हो गया लेकिन सोयो का इलाका अभी भी युद्ध की छाप लिए है. लेकिन प्रांतों को सड़कों के साथ जोड़ दिया गया है. 2002 से पहले सड़कों से देश में सफर करना नामुमकिन था.
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समुद्र से आई समृद्धि
अंगोला की समृद्धि सिर्फ तेल भंडारों में नहीं है. समुद्र तट के पास ही से प्राकृतिक गैस भी निकलती है. हालांकि अंगोला अपने तेल पर बुरी तरह निर्भर है.
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प्राकृतिक तेल कोष
2012 में सरकार ने देश के अंदर और बाहर निवेश करने के लिए एक प्राकृतिक तेल कोष शुरू किया. इस कोष की मदद से सरकार तेल के बढ़ते घटते दामों के असर को कम करने की उम्मीद कर रही है. तेल के भंडार तीस साल ही रहेंगे, विकल्प कृषि क्षेत्र का विकास है.
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विदेशी निवेश
अंगोला में अकसर चीनी कंपनियों के विज्ञापन देखे जा सकते हैं. देश में रहने वाले विदेशियों में सबसे ज्यादा तादाद चीनियों की है. उसके बाद यूरो संकट से निबट रहे पुर्तगालियों और सांस्कृतिक रूप से निकट ब्राजील के लोगों की बारी आती है. चीनी निवेशकों से प्रतिस्पर्धा में असमर्थ ब्राजील तकनीकी प्रशिक्षण पर ध्यान दे रहा है.
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बेघर शिक्षक
शिक्षक फर्नांडो पिंटो डोंडी का कहना है कि अंगोला की सरकार को सड़कों के बदले लोगों में निवेश करना चाहिए. उनका मासिक वेतन 300 डॉलर है जिससे वे पांच बच्चों वाले परिवार का खर्च चलाते हैं. वे बेघर हो गए हैं और वायना के इलाके में रहते हैं. उनका लुआंडा का पुराना घर सरकारी सड़क परियोजना के हत्थे चढ़ गया.
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कहां जा रहा है धन?
अंगोला 182 देशों की ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्टाचार सूची में 168वें नंबर पर है. सरकार पर गबन और धोखाधड़ी के आरोप हैं. उनका कहना है कि 2007 से 2010 के बीच सरकारी तेल कंपनी सोनंगोल की 32 अरब डॉलर की आमदनी संरचना विकास पर खर्च हुई. वह यह नहीं बता रही कि किन परियोजनाओं पर.