स्वेज नहर के बनने से पहले एशिया से आ रहे जहाज अफ्रीकी महाद्वीप का पूरा चक्कर लगाकर यूरोप पहुंचते थे. उस वक्त काहिरा को फ्रांस के राजदूत फेर्दिनां दे लेसेप ने मिस्र के उसमानी शाह से एक नहर बनाने की अनुमति मांगी. यह नहर मिस्र के दक्षिण में स्वेज शहर से लेकर उत्तर मिस्र में सईद बंदरगाह तक फैला है. इसके दक्षिण में इस्माइलिया शहर है. दे लेसेप को उस्मानी शाह ने नहर बनाने की अनुमति दे दी. स्वेज कनाल कंपनी को नहर खत्म करने के बाद उस पर 99 साल तक नियंत्रण करने की भी अनुमति मिली.
नहर का निर्माण 1859 में शुरू हुआ और शुरुआत में मजदूर बेलचों और कुदालियों से काम करते थे. इसके बाद यूरोप से भाप से चलने वाली भारी मशीनें लाई गईं. मजदूरों में हैजा फैलने की वजह से काम बीच बीच में रुकता रहा और नहर को पूरा करने में 10 साल लग गए. 1869 में इसकी गहराई केवल 25 फीट थी यानी करीब सात मीटर. सतह पर इसकी चौड़ाई 60 से लेकर 90 मीटर तक थी. खुलने के बाद पहले एक साल में केवल 500 जहाज नहर पार कर पाए.
1875 में ब्रिटेन ने स्वेज कनाल में शेयर खरीदे और सात ही साल बाद मिस्र पर धावा बोलकर उसे अपना उपनिवेश बना लिया. 1936 में मिस्र और ब्रिटेन के बीच समझौते के बाद मिस्र आजाद हो गया लेकिन ब्रिटेन ने नहर पर अपना नियंत्रण बनाए रखा. दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन को नहर पर नियंत्रण छोड़ना पड़ा और 1956 में तब के राष्ट्रपति गमाल अब्दल नासेर ने कनाल का राष्ट्रीकरण किया. वे नहर के इस्तेमाल के लिए कर लागू करना चाहते थे लेकिन इस्राएल ने बदले में मिस्र पर हमला किया जिसके बाद ब्रिटेन और फ्रांस के सैनिक भी कनाल पर कब्जा करने पहुंच गए. मामला तब सुलझा जब संयुक्त राष्ट्र ने दबाव डाला.
1966 में नहर फिर बंद हो गई जब इस्राएल ने सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा किया. मिस्र और इस्राएल की सेना आठ साल तक स्वेज नहर के आर पार तैनात रही. फिर 1975 में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादत ने स्वेज कनाल को दोबारा खोला और इस्राएल से शांति बहाल की.
आज इस नहर से हर रोज 50 जहाज यहां से गुजरते हैं. हर साल 300 टन सामान यहां से ले जाया जाता है. यह दुनिया के सबसे व्यस्त जलमार्गों में से एक है.
1986 में लगाई गई रोक के मुताबिक व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए व्हेलों को नहीं मारा जा सकता था. लेकिन जापान से जैसे कुछ देश इसके शिकार से बाज नहीं आ रहे थे. द हेग में यूएन की अदालत ने 31.03.2014 को इस पर रोक लगा दी.
तस्वीर: picture-alliance/ dpaनॉर्वे, आइसलैंड और जापान 1986 की रोक के बावजूद व्हेल मछलियों का शिकार कर रहे थे. जापान की दलील थी कि वो वैज्ञानिक शोध के लिए इनका शिकार कर रहे थे. लेकिन अब जापान को इस पर रोक लगानी होगी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa20 साल तक ऑस्ट्रेलिया जापान के व्हेल प्रोग्राम को कूटनीतिक तरीके से हल करने की कोशिश कर रहे थे. फिर उन्होंने द हेग की अदालत में मुकदमा दायर किया. द हेग ने फैसला दिया कि अंटार्कटिक के आसपास समुद्र में जापान पूरी तरह शिकार रोक दे.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo1986 की रोक के बाद कई प्रजातियां बच गई लेकिन ब्लू, फिन, सेई, सदर्न राइट और स्पर्म व्हेल फिर भी खतरे में हैं और कुछ तो विलुप्त होने के कगार पर हैं. व्हेल स्तनपायी जीव होते हैं. ये 33 मीटर लंबी 190 टन भारी हो सकती हैं और धरती का सबसे बड़ा जीव हैं.
तस्वीर: DWअधिकारिक तौर पर तो जापान शोध के लिए व्हेलों का शिकार करता है लेकिन बाद में इसका मांस मछली बाजार और कई रेस्तरां में बेचा जाता है. जापान का व्हेल रिसर्च संस्थान 1986 के मोरेटिरयम के ठीक एक साल बाद बना था.
तस्वीर: Greenpeace/Kate Davisonजापान में लंबे समय से व्हेल मछली खाई जाती है. ये परंपरा दूसरे विश्व युद्ध के बाद शुरू हुई क्योंकि जनता के पास इनके अलावा खाने के लिए कुछ नहीं था. लेकिन अब जापान में मिलने वाले मांस का केवल एक फीसदी ही व्हेल से आता है.
तस्वीर: gemeinfreiजापान के फ्रीजरों में 7,000 टन व्हेल का मांस इकट्ठा हो जाता है. फिन व्हेल के लिए खरीदार नहीं मिलने पर जापान की एक कंपनी ने इसे कुत्ते के खाने में मिला दिया. हालांकि अब कंपनी ने इसे बाजार से वापिस ले लिया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaकई जापानी व्हेल के शिकार का समर्थन करते हैं. सरकार अपने खर्चे पर ये काम करती है. 25 साल में व्हेल के शिकार पर करीब 6 करोड़ 30 लाख यूरो की सब्सिडी दी गई.
तस्वीर: picture-alliance/ dpaआइसलैंड और नॉर्वे अभी भी व्हेल का शिकार कर रहे हैं. उन्होंने रोक के खिलाफ अपील की और वह खुद को इसके लिए प्रतिबद्ध नहीं मानते.
तस्वीर: picture-alliance / dpaरूस के चुकशी या कनाडा के इनुइट आदिवासियों को व्हेल का शिकार करने की अनुमति है, बशर्ते वो इसका व्यापार नहीं करें. व्हेल पकड़ने की परंपरा यहां सदियों पुरानी है. वे इस पर खाने, तेल और हड्डियों के लिए निर्भर हैं.
तस्वीर: picture-alliance/empicsकई देश जो पहले व्हेल का शिकार करते थे अब व्हेल की निगरानी या पर्यटकों को व्हेल के बारे में जानकारी देते हैं. जापान और नॉर्वे में भी ये परंपरा शुरू हुई है. अब कई जापानी व्हेल खाना पसंद नहीं करते.
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