भारत में अभी पिछले ही रविवार यानी 16 जून को फादर्स डे मनाया गया. अमेरिका की ही तरह यह जून के तीसरे रविवार को भारत में मनाया जाता है. वैसे तो दुनिया के अलग अलग हिस्सों में फादर्स डे अलग अलग दिन और विविध परंपराओं के कारण मनाया जाता है. हिन्दू परंपरा के मुताबिक पितृ दिवस भाद्रपद महीने की सर्वपितृ अमावस्या के दिन होता है.
पहला फादर्स डे 1910 की 19 जून को सोनोरा स्मार्ड डोड ने शुरू किया. अपने पिता विलियम जैक्सन स्मार्ट की याद में उन्होंने पादरी से अपील की कि पिता के लिए भी एक दिन होना चाहिए. पहले वह अपने पिता के जन्मदिन पांच जून को फादर्स डे मनाना चाहती थीं, लेकिन पादरी के पास तैयारी का समय नहीं था. फिर इसे 10 जून को मनाया गया, क्योंकि उस साल इसी दिन जून का तीसरा रविवार था.
वहीं जर्मनी में इसकी परंपरा चर्च और यीशू मसीह के स्वर्गारोहण से जुड़ी हुई है. यह हमेशा होली थर्सडे यानी पवित्र गुरुवार को ईस्टर के 40 दिन बाद बनाया जाता है. इस दिन जर्मनी में छुट्टी होती है और इसे पुरुष दिवस के तौर पर मनाया जाता है. पुरुष मित्र मिल कर इस दिन का पूरा मजा लेते हैं.
एक ऐसा देश जहां बच्चे अकेले छूट गए हैं. उनके माता पिता पैसे कमाने के लिए परदेस चले गए, बच्चों को अपने हाल पर छोड़ कर. ये देश है मोल्डोवा.
तस्वीर: Andrea Diefenbachकारोलीन टेलीफोन पर अपनी मां को हमेशा यही कहती है. फोटोग्राफर आंद्रेया डीफेनबाख के मुताबिक बच्चे स्थिति से निबट तो रहे हैं लेकिन परिवार बिखर गया है. नतीजा शायद बच्चों के बड़े होने के बाद दिखेगा.
तस्वीर: Andrea Diefenbachओल्गा, सबरीना और कारोलीना तीन साल से अकेले रह रहे हैं. उनकी मां इटली के एक परिवार में बूढ़े लोगों की देखभाल करती है. आंद्रेया डीफेनबाख का फोटो मोल्डोवा के बच्चों की कहानी कहता है. 'बिन मां-बाप वाला देश'.
तस्वीर: Andrea Diefenbachसबसे बड़ी बहन ओल्गा मां की भूमिका निभाती हैं. वह पनीर बनाती हैं, ब्रेड पकाती हैं, अपने छोटे भाई बहनों का ख्याल रखती है, उन्हें स्कूल भेजती हैं.
तस्वीर: Andrea Diefenbachकाटालीना के माता पिता भी परदेस में काम करते हैं. लेकिन उसकी किस्मत अच्छी है क्योंकि उसकी दादी पास के गांव में रहती है. अब वह भी दादी के साथ है. विश्वबैंक के मुताबिक यहां की एक चौथाई आबादी दूसरे देश में काम करती है.
तस्वीर: Andrea Diefenbachमाता पिता अपने बच्चों के लिए अक्सर उपहार भेजते हैं. कभी पॉपकॉर्न, कभी सेब. बच्चों के लिए प्यार दिखाने का उनके पास और कोई उपाय भी नहीं होता.
तस्वीर: Andrea Diefenbachलुदमिला इटली में छह जगह साफ सफाई का काम करती है. सात साल से उन्होंने अपने बेटे स्लावेक को नहीं देखा है. गैर कानूनी तरीके से विदेशों में रहने वाले लोग अपने बच्चों से मिलने नहीं जा सकते. अब उसे परमिट मिल गया है, वह बेटे को ला सकती है.
तस्वीर: Andrea Diefenbachअल्योना और वान्या अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए इटली के खेत में पसीना बहाते हैं. यहां से वह रोज अपने घर फोन करते हैं. बारिश हुई तो काम नहीं होता और काम नहीं तो कमाई नहीं होती.
तस्वीर: Andrea Diefenbachआंद्रेया डीफेनबाख कहती हैं, "मैं चाहती हूं कि पश्चिमी यूरोप में लोग मेरे फोटो से मेरी भावनाएं समझें. शायद उनके घर में काम करने वाली के बच्चे भी किसी देश में अकेले हों."
तस्वीर: Andrea Diefenbachआंद्रेया के एक फोटो का शीर्षक है, "कोई विकल्प नहीं". जब कई साल बच्चों को मां बाप सिर्फ फोटो में देखते हैं तो उन्हें पता ही नहीं चलता कि बच्चे कितने बड़े हो गए. पूर्व सोवियत गणतंत्र मोल्डोवा यूरोप के सबसे गरीब देशों में है.
तस्वीर: Andrea Diefenbachआंद्रेया डीफेनबाख को इस फोटो प्रोजेक्ट के लिए 'नोस्ट' रिपोर्ताज पुरस्कार मिला है. ये तस्वीरें यूरोप में बढ़ती आर्थिक खाई की सच्चाई बताती हैं.
तस्वीर: Andrea Diefenbach