26 सितंबर 1960 को पहली बार अमेरिका में राष्ट्रपति पद के दो उम्मीदवारों के बीच टेलीविजन पर सीधी बहस हुई.
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टीवी बहस यह तय करने में मदद देती है कि देश के लिए योग्य कौन है. जॉन एफ केनेडी और रिचर्ड निक्सन के बीच हुई इस पहली बहस को अमेरिका में सात करोड़ लोगों ने देखा. पहली व उसके बाद हुई तीन और बहसों में युवा केनेडी भारी पड़े. टीवी के जरिए केनेडी को ऐसी कामयाबी मिली कि उन्होंने उपराष्ट्रपति निक्सन जैसे अनुभवी नेता को हरा दिया.
केनेडी टीवी की ताकत को भांप चुके थे, वो हर मौके पर इसका इस्तेमाल करने लगे. उन्होंने दुनिया भर के नेताओं को भी टीवी के जरिए संवाद करना सिखाया. हालांकि केनेडी का कार्यकाल ज्यादा लंबा नहीं चला. जनवरी 1961 में पद संभालने वाले केनेडी की 1963 में सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी गई.
आज दुनिया भर के नेता टीवी के जरिए जनता से संवाद करते हैं. अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, मेक्सिको, केन्या, आयरलैंड, माल्टा, नीदरलैंड्स और न्यूजीलैंड में तो संसदीय चुनावों से पहले मुख्य उम्मीदवारों के बीच बाकायदा टीवी पर बहस की पंरपरा है. नेता आर्थिक, सामाजिक, नैतिक और विदेश नीति पर अपना दृष्टिकोण जनता के सामने रखते हैं. जनता इस बहस के जरिए तय करती है कि कौन सा नेता देश का बेहतर प्रतिनिधित्व करेगा.
एक हत्याकांड जिसने बदल दी दुनिया
22 नवंबर 1963 को अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी की हत्या कर दी गई थी. पश्चिमी दुनिया को उनकी हत्या से गहरा झटका लगा था.
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पश्चिम को लगा झटका
दोपहर के 12.31 बजे, डलास- ताबड़तोड़ चली गोलियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति के सीने और सिर को भेद दिया. सबकुछ कैमरों के सामने हुआ. जॉन एफ केनेडी की पत्नी उस वक्त साथ थीं. उस वक्त टेक्सास के गवर्नर जॉन कॉनली और नेली भी केनेडी दंपति के साथ थे. गोलीबारी में कॉनली भी गंभीर रूप से जख्मी हो गए. अब तक साफ नहीं हो पाया है कि कितनी गोलियां चलाईं गई थीं. गोली चलाने के क्रम के बारे में भी रहस्य बरकरार है.
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बदल गया इतिहास
शुक्रवार के दिन जब अमेरिकी राष्ट्रपति और उनकी पत्नी डलास एयरपोर्ट पहुंचे थे तो सूरज चमक रहा था. केनेडी का टेक्सास राज्य में चुनाव प्रचार का दूसरा दिन था. शहर के बीच से गुजरते वक्त केनेडी ने ही अपनी लिमोजिन की छत को खोलने की सलाह दी थी.
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राष्ट्रपति का निधन
डलास पहुंचने के एक घंटे के बाद ही अमेरिका के 35वें राष्ट्रपति गोलियों के शिकार हो गए थे. जब वह पार्कलैंड मेमोरियल अस्पताल पहुंचे तो उनका दिल धड़क रहा था, लेकिन एक गोली सिर को पार कर गई थी. उनको बचाने की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुई. गोली के जख्मों की वजह से केनेडी 46 साल की उम्र में दुनिया से चल बसे.
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वॉशिंगटन वापसी
उप राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन को जब एयरफोर्स वन में राष्ट्रपति की शपथ दिलाई गई तो जैकी केनेडी भी ठीक उनके बगल में थे. केनेडी का ताबूत भी उस वक्त राष्ट्रपति के विमान में था. केनेडी का शव पोस्टमार्टम के लिए वॉशिंगटन लाया जा रहा था. हत्याकांड के चार दिन बाद जॉनसन ने जांच का ऐलान करते हुए आयोग बनाया. वॉरेन कमीशन ने जो परिणाम जारी किए वह विवादित ही रहे.
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संदिग्ध हमलावर
प्रकाशन संस्था की छठी मंजिल से राष्ट्रपति पर गोलियां चलाईं गईं थीं. केनेडी की हत्या के डेढ़ घंटे बाद ली हार्वे ऑस्वाल्ड नाम के शख्स को एक पुलिस वाले की हत्या के शक में गिरफ्तार किया गया. बंदूक उसी शख्स की थी. पूछताछ के दौरान पुलिस ने केनेडी की हत्या के संदिग्ध के तौर पर उससे सवाल किए. ऑस्वाल्ड ने दोनों हत्याओं से इनकार किया.
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हमेशा के लिए खामोश
24 नवंबर को जब ऑस्वाल्ड को एक जेल से दूसरी जेल ले जाया जा रहा था. तब उस दौरान घटना को कवर करने के लिए एक चैनल का कैमरा दल भी मौजूद था. नाइट क्लब के मालिक जैक रूबी अचानक संदिग्ध हमलावर के सामने प्रकट हुआ और एक ही गोली में ऑस्वाल्ड को ढेर कर दिया. टीवी पर लाखों लोग इस हत्या के चश्मदीद बने. ऑस्वाल्ड को भी पार्कलैंड अस्पताल लाया गया लेकिन उसको बचाया नहीं जा सका.
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सदमे में सब
जब 25 नवंबर को केनेडी अपनी आखिरी यात्रा पर निकले तो लाखों लोगों ने उन्हें नम आंखों से विदाई दी. मेमोरियल सर्विस अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छाया रहा.
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अंतिम यात्रा
केनेडी की श्रद्धांजलि सभा अंतरराष्ट्रीय मीडिया में छाई रही. देश विदेश के नेताओं ने केनेडी के निधन पर शोक जताया.
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वह बर्लिन के थे
केनेडी के निधन से जर्मनी को भी झटका लगा था. खासकर पश्चिम बर्लिन में इसका ज्यादा असर दिखा. अगस्त 1963 में एक भाषण के दौरान केनेडी ने पश्चिम बर्लिन की एकता का समर्थन किया. अपने भाषण में केनेडी ने, 'इश बिन बर्लिनर' वाक्य का इस्तेमाल किया था. जिसका मतलब है ''मैं एक बर्लिनवासी हूं.'' केनेडी के निधन के बाद कई लोगों ने दुख जताते हुए शोक पुस्तक में संदेश लिखे और बर्लिन की दीवार पर फूल चढ़ाए.
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अगर...
1961-1963 तक जब केनेडी राष्ट्रपति थे, शीत युद्ध के दौरान देशों की दुश्मनी भी चरम पर थी. इसी समय बर्लिन दीवार खड़ी की गई, क्यूबा में मिसाइल संकट और विएतनाम में युद्ध हो रहा था. एक जवान, करिश्माई राष्ट्रपति और बहुतों के लिए 'जैक'. जेएफके के नाम से भी वो खासे विख्यात रहे हैं.