भारतीय पाठकों और दर्शकों के लिए आज अखबार, रेडियो और टेलीविजन में समाचार पढ़ने, सुनने और देखने के लिए हजारों विकल्प मौजूद हैं. आज ही के दिन 1780 में भारत का पहला अंग्रेजी अखबार बंगाल गजट पहली बार प्रकाशित हुआ था.
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इन बीते सालों में भारतीय मीडिया में बहुत से बदलाव हुए. राष्ट्रीय अखबारों की जगह क्षेत्रीय अखबारों ने ली तो टीवी न्यूज चैनलों का भी बहुत विस्तार हुआ. अब खबर पढ़ने, देखने या फिर सुनने के लिए पाठकों या दर्शकों के पास अनेक विकल्प मौजूद हैं. लेकिन इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि एक जमाने में न तो प्रेस को इतनी आजादी थी और न ही पाठकों के पास इतने विकल्प थे.
भारत का पहला अखबार 29 जनवरी 1780 को एक अंग्रेज जेम्स अगस्ट्न हिकी ने कोलकाता से निकाला. इसका नाम बंगाल गजट था और इसे अंग्रेजी में निकाला गया. इसे हिकीज गजट भी कहा जाता है. यह चार पृष्ठों का अखबार हुआ करता था और सप्ताह में एक बार प्रकाशित होता था.
हिकी भारत के पहले पत्रकार थे जिन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता के लिये ब्रिटिश सरकार से संघर्ष किया. हिकी ने बिना डरे अखबार के जरिए भ्रष्टाचार और ब्रिटिश शासन की आलोचना की. हिकी को अपने इस दुस्साहस का अंजाम भारत छोड़ने के फरमान के तौर पर भुगतना पड़ा था.
ब्रिटिश शासन की आलोचना करने के कारण बंगाल गजट को जब्त कर लिया गया था. 23 मार्च 1782 को अखबार का प्रकाशन बंद हो गया. इस तरह भारत में मुद्रित पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय हिकी को ही जाता है.
एक अखबार 150 कप कॉफी के बराबर कैसे ?
आपने ग्रे इनर्जी का नाम सुना है! ये आमतौर पर दिखाई नहीं देती लेकिन अगर इकोलॉजिकल फुटप्रिंट नापने की बात हो तो ये काफी अहम हैं. अगर इन्हें ध्यान में नहीं रखा तो फिर जितनी ऊर्जा की हम खपत करते हैं उसका आंकड़ा गलत हो जाएगा.
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चॉकलेट
ऊर्जा की बात हो तो हमारा ध्यान घर, दफ्तर की बिजली, कारों के ईंधन जैसी चीजों पर जाता है. लेकिन ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा हमारी रोजमर्रा की जरूरी चीजों के निर्माण, पैकिंग, ढुलाई और फिर उन्हें निबटाने में खर्च होता है. इसी ऊर्जा को ग्रे इनर्जी कहा जाता है. मिसाल के रूप में चॉकेलट के एक बार के लिए 0.25 किलोवाट घंटा ऊर्जा की जरूरत होती है. इतनी ऊर्जा से एक बड़े बर्तन में 20 बार पास्ता पकाई जा सकती है.
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बोतलबंद पानी
आधा लीटर बोतल बंद पानी के लिए 0.7 किलोवाट घंटा ग्रे एनर्जी की जरूरत होती है. नल से आने वाले पानी की तुलना में यह करीब एक हजार गुना ज्यादा है. जिन चीजों को बनाने की जगह से बहुत दूर इस्तेमाल के लिए ले जाना पड़ा है उसमें ग्रे इनर्जी की खपत और ज्यादा होती है.
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लैपटॉप
लैपटॉप का हार्डवेयर बनाने में करीब 1000 किलोवाट घंटा ग्रे इनर्जी खर्च होती है. इतनी ऊर्जा में एक वैक्यूम क्लीनर 40 दिनों तक लगातार चल सकता है.
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जीन्स
कॉटन की एक जीन्स का मतलब है 40 किलोवाट घंटा ग्रे इनर्जी. इतनी ऊर्जा से आप 400 घंटे तक टेलीविजन चला सकते हैं. ग्रे इनर्जी की कच्चे सामान से गणना शुरू की जाती है और फिर देखा जाता है कि निर्माण की प्रक्रिया में कितनी ऊर्जा खर्च हुई.
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एक परिवार वाले घर
एक परिवार के रहने के लिए 120 वर्ग मीटर जमीन पर घर बनाने में करीब 150,000 किलोवाट घंटे ग्रे इनर्जी की जरूरत होती है. इतनी ऊर्जा में चार सदस्यों वाले एक परिवार की 40 साल तक की बिजली की जरूरतों को पूरा किया जा सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि एक यूरो यानी करीब 75-80 रुपये खर्च करने का मतलब है करीब 1 किलोवाट घंटा ग्रे इनर्जी की खपत.
अखबार
औसतन 200 ग्राम के अखबार का मतलब है करीब 2 किलोवाट घंटा ग्रे इनर्जी. तुलना के लिए हम कह सकते हैं कि इतनी ऊर्जा में 150 कप कॉफी बनाई जा सकती है. ग्रे इनर्जी को मापने के लिए आंकड़े जुटाना थोड़ा मुश्किल है. इसके नतीजे निर्माण और सामानों की ढुलाई के आधार पर बदल सकते हैं.
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स्मार्ट फोन
स्मार्टफोन को बनाने, ढोने, रखने और बेचने और फिर उन्हें इस्तेमाल के बाद खत्म करने में करीब 220 किलोवाट ग्रे इनर्जी खर्च होती है. इतनी ऊर्जा में आपका फोन 50 साल तक चार्ज किया जा सकता है. ग्रे इनर्जी को मापने में सबसे बड़ी दिक्कत होने की वजह से ही इसकी जानकारी ग्राहकों को नहीं दी जाती.
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जूते
एक जोड़ी जूते बनाने में करीब 8 किलोवाट घंटा ग्रे एनर्जी खर्च होती है. इतनी ऊर्जा में एक औसत फ्रिज दो हफ्ते तक चल सकता है. ग्रे इनर्जी दुनिया में खर्च होने वाली ऊर्जा का एक बहुत बड़ा हिस्सा है. साथ ही कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन का भी. यह कई चीजों के कार्बन फुटप्रिंट को कई गुना बढ़ा देता है.
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कार
एक कार सड़क पर उतरने से पहले ही 30,000 किलोवाट घंटा ग्रे इनर्जी का इस्तेमाल करती है. अगर इसे पेट्रोल में बदल दिया जाए तो इसका मतलब है कि 36,000 किलोमीटर तक गाड़ी चलाई जा सकती है. ग्रे इनर्जी के आंकड़े में आयात निर्यात भी बड़ी भूमिका निभाते हैं. अगर कार जर्मनी में बनती है और इस्तेमाल कहीं और होती है तो उसके निर्माण के दौरान हुआ उत्सर्जन इस्तेमाल करने वाले देश के माथे पर जाता है.
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टॉयलेट पेपर
क्लोरीन मुक्त टॉयलेट पेपर का एक रोल बनाने में 20 किलोवाट घंटा ग्रे इनर्जी खर्च होती है. तो इसका मतलब है कि एक रोल टॉयलेट पेपर जितनी उर्जा खर्च करता है उतने में 20 बार वॉशिंग मशीन से धुलाई हो सकती है. इतनी ऊर्जा खर्च होने के बावजूद लोगों के दिमाग में इसका ख्याल बिल्कुल नहीं आता.