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इतिहास में आजः 29 दिसंबर

२८ दिसम्बर २०१३

29 दिसंबर 1911 में सुन यात सेन को नए चीन गणतंत्र का राष्ट्रपति घोषित किया गया. चीन में आम जनता और साम्यवादी कार्यकर्ता उन्हें चीन गणतंत्र का राष्ट्रपिता मानते हैं.

China Soldaten der Volksbefreiungsarmee Juli 2014
तस्वीर: AFP/GettyImages/G. Baker

सुन यात सेन का जन्म 12 नवंबर 1866 को कांटोन प्रांत के पास एक गांव में हुआ. उनके पिता के पास थोड़ी सी जमीन थी और वह सिलाई का काम भी करते थे. 13 साल की उम्र में सुन अपने भाई के पास हवाई चले गए और वहां पढ़ाई की. सुन कुछ सालों बाद वापस चीन लौट गए लेकिन उनके पिता ने उन्हें पढ़ाई के लिए हांगकांग भेज दिया.

1892 में डॉक्टर की पढ़ाई खत्म करने के बाद सुन ने शादी कर ली लेकिन दो ही साल बाद तय किया कि वे चीन को उपनिवेशकों की चंगुल से आजाद करेंगे. 1894 में उन्होंने सिंग चुंग हुई नाम की क्रांतिकारी पार्टी का गठन किया और चीन पर शासन कर रहे चिंग राजवंश को गद्दी से हटाने की कोशिश की.

तस्वीर: K.T. Thompson

सुन और उनके क्रांतिकारी सहयोगियों की योजना असफल रही और सुन को अगले 16 साल देश में जाने से प्रतिबंधित कर दिया गया. पहले वह लंदन गए जहां उन्हें चीन के खुफिया अफसरों ने अगवा कर लिया. सार्वजनिक दबाव के बाद सुन रिहा हो गए और पश्चिमी जगत में चीन गणतंत्र के लिए लड़ने वाले के नाम से मशहूर हो गए.

1898 में सुन ने फिर पूरब का रुख किया और जापान में बस गए. वहां उन्होंने चिंग शासन के तख्तापलट के उद्देश्य से एक नई क्रांतिकारी पार्टी तुंग मेंग हुई का गठन किया. 1906 से लेकर 1909 तक पार्टी ने चिंग शासक को अपदस्थ करने की कई कोशिशें कीं, लेकिन सारी नाकाम हो गईं.

1912 में सुन ने राष्ट्रीय पार्टी कुओमिंतांग का गठन किया जिसके सिद्धांत राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और सामाजिक सुरक्षा थे. 1913 में पार्टी ने दोबारा चिंग शासन के प्रतिनिधि जनरल युआन शिह काई को हटाने की कोशिश की जो फिर नाकाम रही. सुन को एक बार फिर चीन छोड़ना पड़ा.

जापान में कई साल बिताने के बाद आखिरकार 1921 में सुन ने दक्षिण चीन में शासन विरोधी सरकार का गठन किया. फिर उन्होंने सोवियत रूस से मदद मांगी ताकि देश के उत्तरी हिस्से में नियंत्रण पाने की संभावना अच्छी हो. चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ने भी कुओमिंतांग के साथ आने का फैसला किया.

पेकिंग में फिर सुन ने चीन गणतंत्र स्थापित करने के मकसद से शासकों से बातचीत की लेकिन इसी दौरान कैंसर से उनकी मौत हो गई. कुओमिंतांग के तीन सिद्धांत, राष्ट्रवाद, लोकतंत्र और सामाजिक सुरक्षा आज भी चीन गणतंत्र के मार्गदर्शक हैं.

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