भारत पाकिस्तान के बीच 1971 की लड़ाई में 4 दिसंबर को नौसेना भी शामिल हो गई. 3 तारीख को इस जंग की शुरुआत वायुसेना के साथ हुई थी. इस जंग में भारतीय नौसेना की भूमिका काफी अहम साबित हुई. 4 तारीख को ही संयुक्त राष्ट्र में सुरक्षा परिषद की आपात बैठक भी बुलाई गई क्योंकि भारत पाकिस्तान के बीच तनाव युद्ध में बदल गया था. 1971 में भारत पाकिस्तान के बीच हुई जंग दुनिया की सबसे छोटी और सफल लड़ाइयों में गिनी जाती है जो महज 13 दिनों में अपने अंजाम पर पहुंच गई. बांग्लादेश आजाद हो गया.
बम धमाकों, गोलियों की तड़तहाड़ट या बेहद जोखिम भरे हालात में अगर कोई इंसान घायल हो जाए, तो उसे कैसे बचाया जाए. पोलैंड की राजधानी वारसा में सैन्य रोबोट प्रतियोगिता एम-एलरोब में इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढे जा रहे हैं.
तस्वीर: DW/F. Schmidtसैनिक 75 किलो भारी डमी को "जख्मी जवान" के तौर पर मैदान में ले जा रहे हैं. अब देखा जाएगा कि रोबोट जख्मी सैनिक को कैसे बचाते हैं. असल हालात में घटनास्थल पर बारूदी सुरंगें भी फटेंगी और गोलियां भी चलेंगी.
तस्वीर: DW/F. Schmidtरोबोट को कमर तक ऊंची घास में आगे बढ़ना होगा. जीपीएस की मदद से डमी की जगह पता की जाती है. लेकिन मुश्किल यह है कि रोबोट को दूर से नियंत्रित कर रहे शख्स को घास, धूल या धुएं की वजह साफ वीडियो देखने में परेशानी हो रही है.
तस्वीर: DW/F. Schmidtरोबोट ने डमी को खोज निकाला. लेकिन अब घायल सैनिक को सुरक्षित तरीके से बाहर निकालना होगा. ये आसान नहीं.
तस्वीर: DW/F. Schmidtरोबोट नकली सैनिक को कॉलर के पास पकड़ता है. घायल को ऊपर उठाना जरूरी है क्योंकि जख्मी को घसीटते हुए नहीं लाया जा सकता.
तस्वीर: DW/F. Schmidtडमी के भार से रोबोट गिर पड़ा और घायल सैनिक भी. अब रोबोट को डमी को छोड़ना होगा और खुद खड़े होने की कोशिश करनी होगी. इसके बाद ही बचाव का काम आगे बढ़ सकेगा. यह कठिन चुनौती है.
तस्वीर: DW/F. Schmidtमारेक, रिमोट से चलने वाला ये रोबोट वारसा की सैन्य अकादमी का है. इसमें एक कैमरा लगा है और खुदाई करने वाले शॉवल भी. यह पेड़ के गिल्टों को भी उठा सकता है. लिहाजा इंसान के वजन उठाना इसके लिए कोई समस्या नहीं.
तस्वीर: DW/F. Schmidtनिचला शॉवल डमी को छुए बिना जमीन को खोदता है, इससे डमी को उठाने के लिए अच्छी ग्रिप बन जाती है
तस्वीर: DW/F. Schmidtमारेक घायल सैनिक को कुछ ही सेकंड में कवर कर लेता है. डमी शॉवल पर सुरक्षित ढंग से लेटी हुई है. अब मारेक डमी को उठाकर वापस लाएगा, ताकि उसे इलाज मिल सके.
तस्वीर: DW/F. Schmidtलेकिन अगर घटनास्थल पर मारेक जितने बड़े रोबोट के लिए जगह न हो तो. जर्मनी में फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट ने इसके लिए ट्रिक निकाली है. ये छोटा सा रोबोट सीढ़ियां चढ़ सकता है और बहुत ही कम जगह में मुड़ भी सकता है.
तस्वीर: DW/F. Schmidtये छोटा रोबोट घायल को उठा कर नहीं ला सकता. ये खींचने वाले हुक और तार का इस्तेमाल करता है
तस्वीर: DW/F. Schmidtलेकिन ये छोटा रोबोट तभी सफल होगा, जब घायल ने बेल्ट पहनी हो. जीवन रक्षक जैकेट पहनी हो तो काफी मदद मिलेगी.
तस्वीर: DW/F. Schmidtइंसानी पायलट रोबोट पर बहुत ही दूर एक टेंट के भीतर से भी कंट्रोल कर सकते हैं. वो रोबोट्स को नहीं देख सकते. ऐसे में पायलट पूरी तरह रोबोट में लगे कैमरों और सेंसरों पर निर्भर रहते हैं.
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