क्या कल्पना भी किया जा सकता है कि दुनिया के किसी देश की साक्षरता दर सिर्फ 12 फीसदी है, यानी 100 में से 88 अनपढ़. लोगों को पढ़ाई के प्रति जागरूक करने के लिए यूनेस्को 8 सितंबर को साक्षरता दिवस मनाता है.
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संयुक्त राष्ट्र के शिक्षा और सांस्कृतिक विभाग यूनेस्को ने 1966 में पहली बार विश्व साक्षरता दिवस मनाया. यूनेस्को की वेबसाइट के मुताबिक "साक्षरता दिवस अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इस बात की याद दिलाता है कि साक्षरता मानवाधिकार है और यह किसी भी तरह की पढ़ाई की बुनियाद है."
फिर भी अफ्रीका के बुरकीना फासो जैसे देश हैं, जहां 2006 के आंकड़ों के मुताबिक मुश्किल से 12 फीसदी लोग साक्षर हैं. नाइजर और माली जैसे अफ्रीकी देशों में भी 20 फीसदी लोगों को लिखना पढ़ना नहीं आता. भले ही दुनिया 21वीं सदी में पहुंच गई हो, लेकिन पढ़ाई लिखाई जैसी बुनियादी चीजें अब भी सब लोगों तक नहीं पहुंची हैं.
यूनेस्को का कहना है कि एशिया और अफ्रीका में साक्षरता दर बहुत बुरी है और पूरी दुनिया में अब भी 20 फीसदी लोगों को पढ़ना लिखना नहीं आता. चिंता की बात है कि इनमें से दो तिहाई औरतें हैं.
जहां तक भारत का सवाल है, ऐसा माना जाता है कि जिसे "अपना नाम लिखना आता है, वह निरक्षर नहीं". इस बुनियाद पर भारत में साक्षरता दर करीब 74 फीसदी है, हालांकि महिलाओं की साक्षरता दर इससे बहुत कम है. केरल और हिमाचल प्रदेश जैसे भारत के गिने चुने राज्य हैं, जहां लगभग हर शख्स साक्षर है. फिनलैंड जैसे देश की साक्षरता दर तो 100 फीसदी है लेकिन यह जान कर ताज्जुब होता है कि जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका में भी इक्के दुक्के लोगों को पढ़ना लिखना नहीं आता.
समंदर में पढ़ाई
स्कूली शिक्षा के दौरान विदेश की एक खास यात्रा. छह महीने जर्मनी के स्कूली बच्चे अटलांटिक की यात्रा पर गए. नाव खेना सीखा, दूसरी संस्कृतियों के बारे में जाना, सब कुछ पाल नौका यानि सेलबोट पर.
तस्वीर: KUS-Projekt
लहरों से टकराएं
पारंपरिक तीन मस्तूल वाली पाल नौका 25 साल से युवाओं को ट्रेनिंग दे रही है और समंदर में उनके साथ है. 2008 से इस पर खास प्रोजेक्ट चल रहा है, क्लासरूम अंडर सेल.
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बड़ी यात्रा की बड़ी पैकिंग
190 दिन की यात्रा के लिए काफी सामान चाहिए. यात्रा से चार दिन पहले अपने नए घर के लिए सामान जुटाते स्कूली छात्र.
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खुशी खुशी विदा
पूरे जर्मनी से 34 छात्र अलेक्जांडर फॉन हुम्बोल्ट और क्रिस्टोफ कोलंबस के रास्ते पर निकले. शुरुआत में वह कील से होते हुए कनारिया से नई दुनिया में पहुंचें.
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पहाड़ों में पढ़ाई
कोर्स के दौरान सेंट क्रूज डे टेनेरिफा में पहली बार छात्र जमीन पर पहुंचते हैं. ये छात्र अतिथि बन कर वहां के लोगों के घरों में रहते हैं. और स्पेन के सबसे ऊंचे पर्वत पिको डेल टेइडे के नीचे विज्ञान के पाठ सीखते हैं.
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दूर की यात्रा
अटलांटिक की यात्रा के दौरान स्कूली बच्चे पक्के नाविक बन जाते हैं. वह नाव के सारे काम, खाना बनाना और सफाई करना भी सीखते हैं.
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खूब सूरज
करैबियाई द्वीप पर धूप और समंदर का आनंद उठाते बच्चे. 24 दिन समंदर की लहरों से जूझने के बाद जमीन पर पहुंचने का आनंद अलग ही है.
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फिर लहरों पर
करैबियाई समंदर में वह अपनी नौका थोर हेयरडाल से ये पनामा की ओर जाएंगे. इस दौरान वे मस्तूल पर चढ़ कर पाल लगाना सीखते हैं.
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पेड़ की नाव
नासो इंडियाना लोगों के साथ एक तने से बनी नाव में वर्षावनों के बारे में सीखते बच्चे. इससे वे इंडियाना लोगों के गांव तक पहुंचते हैं.
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क्यूबा में साइकिल पर
क्यूबा की यात्रा होती है साइकिल से. इस दौरान वे तंबाखू के खेत में जाते हैं और हवाना में क्यूबाई छात्रों से मिलते हैं.
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घर की ओर
अप्रैल 2014 में बच्चे कील यानि घर की ओर निकल पड़ते हैं. समंदर और उसके रोमांच के अलावा नए दोस्तों को बाय बाय कहने का वक्त.
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इस साल के साक्षरता दिवस को 21वीं सदी के लिए अहम माना गया है, जिसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को लिखना पढ़ना सिखाया जा सके. यूनेस्को के मुताबिक "साक्षरता सिर्फ शैक्षणिक प्राथमिकता नहीं, यह भविष्य के लिए जबरदस्त निवेश है और 21वीं सदी के लिए जरूरी हर काम की पहली सीढ़ी." विश्व साक्षरता दिवस 2013 के मौके पर यूनेस्को की महानिदेशक इरीना बोकोवा का कहना है, "हम ऐसी सदी देखना चाहते हैं, जहां हर बच्चे को पढ़ना आता हो."