6 जुलाई 2006 में दो दुश्मनों ने सुलह करने की सोची और एक दूसरे के करीब आए.
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1962 में भारत चीन युद्ध की वजह बंद हुआ नाथुला पास 6 जुलाई 2006 को फिर खुला. सिक्किम के इस पास से भारत और चीन के बीच व्यापार होता था. कपड़ा, साबुन, तेल, सीमेंट और यहां तक कि स्कूटर को भी सीमा के पार टट्टू पर लादकर तिब्बत भेजी जाता था. गंगटोक से तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक 20 से लेकर 25 दिनों का सफर होता है. यह सारा सामान तिब्बत लाता था और वहां से रेशम, कच्चा ऊन, देसी शराब, कीमती पत्थर, सोने और चांदी के बर्तन लाए जाते थे.
6 जुलाई 2006 को नाथुला पास फिर खुल तो गया लेकिन इसकी पुरानी रौनक कभी नहीं लौटी. न तो दोनों देशों के रिश्ते बहुत बेहतर हुए और न ही पहले जैसा कारोबार हुआ.
चीन विमानवाही युद्धपोत बनाने वाले चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल हुआ. देश ने पहली बार स्वदेशी तरीके से एयरक्राफ्ट कैरियर बनाया है.
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वक्त से पहले काम पूरा
चीन ने डालिन बंदरगाह में नये एयरक्राफ्ट कैरियर को पानी में उतारा. चीनी मीडिया के मुताबिक तमाम परीक्षणों के बाद यह पोत 2020 से नौसेना का हिस्सा बनेगा.
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दूसरा विमानवाही युद्धपोत
फिलहाल चीनी नौसेना के पास सिर्फ एक विमानवाही पोत लियाओनिंग है. लियाओनिंग को चीन ने यूक्रेन से खरीदा और अपनी जरूरतों के मुताबिक ढाला. नया पोत पूरी तरह चीन में बनाया गया.
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चार साल में तैयार
चीन की सरकारी न्यूज एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक नए एयरक्राफ्ट कैरियर पर काम 2013 में शुरू किया गया. लियाओनिंग की मरम्मत के दौरान हासिल हुए अनुभव ने नया विमानवाही पोत बनाने में काफी मदद की.
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एलीट क्लब में शामिल
अमेरिका, रूस और यूनाइटेड किंगडम के बाद चीन ऐसा चौथा देश बना है, जिसने खुद अपना एयरक्राफ्ट कैरियर बनाया है. चीन का नया पोत 70,000 मीट्रिक टन क्षमता वाला है.
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जे-15 की तैनाती
नये विमानवाही पोत पर चीन शेनयांग जे-15 फाइटर जेट तैनात करेगा. रक्षा विशेषज्ञों का अंदाजा है कि चीन के नए विमानवाही पोत की क्षमताएं अमेरिकी नौसेना के बेड़े में तैनात 10 पोतों से ज्यादा है.
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दक्षिण चीन सागर विवाद
यह तय है कि नया एयरक्राफ्ट कैरियर मिलने के बाद चीन की सैन्य क्षमता ज्यादा मजबूत हो जाएगी. अमेरिका और अन्य पड़ोसी देशों के साथ जारी दक्षिण चीन सागर विवाद में बीजिंग एयरक्राफ्ट कैरियर का इस्तेमाल कर सकता है.
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बड़े बाजार पर नजर
बीते एक दशक में चीन हथियारों का बड़ा विक्रेता बनकर उभरा है. अब वह लड़ाकू विमान जैसी अत्याधुनिक मशीनें भी बेच रहा है. भविष्य में चीन विमानवाही पोतों के अरबों डॉलर के बाजार में जरूर उतरना चाहेगा.