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इतिहास

इतिहास में आज: तीन मई

२ मई २०१४

नाजी दौर की क्रूरता एक यहूदी लड़की की जिंदगी की झलक के जरिए दिखाता ऐन फ्रैंक हाउस आज ही के दिन 1960 में लोगों के लिए खोला गया.

Pressebild Anne-Frank-Haus in Amsterdam
दो साल तक चले रेनोवेशन के बाद 2018 में खुला ऐन फ्रैंक म्युजियम अब ऐसा दिखता है.तस्वीर: Anne Frank House/Cris Toala Olivare

नीदरलैंड्स के शहर एम्सटर्डम जाने वाले एक जगह जाना नहीं भूलते, ऐन फ्रांक हाउस. नाजी दौर में अपने परिवार के साथ जान बचाती फिरती एक लड़की की डायरी ने क्रूरता से जूझते उसके मासूम बचपन को दुनिया के सामने खोल कर रख दिया. ऐन फ्रैंक की डायरी उस दौर के प्रामाणिक दस्तावेजों में से एक मानी जाती है. फ्रैंक जर्मनी के फ्रैंकफर्ट शहर में 12 जून 1929 को पैदा हुई थी. 1945 में उत्तरी जर्मनी के बैर्गेन बेल्जेन यातना शिविर में उसने कष्ट और उदासी झेलते हुए पंद्रह साल की उम्र में दम तोड़ा. उसके घर को बाद में ऐन फ्रैंक म्यूजियम में बदल दिया गया. तीन मई 1960 को इसे आम लोगों के लिए खोला गया. एम्सटर्डम जाने वाले अक्सर फ्रैंक म्यूजियम में जाकर उन दिनों के दर्द को महसूस करते हैं.

"क्या कोई भी, यहूदी या गैर यहूदी, कभी यह बात समझेगा कि मैं एक लड़की हूं जो सिर्फ जिंदगी को जिंदादिली से जीना चाहती है?" ऐसे भावों से भरी फ्रैंक की मशहूर डायरी उसके 13वें जन्मदिन पर 12 जून 1942 को उसके पिता को मिली थी. युद्ध खत्म होने पर परिवार के इकलौते जीवित सदस्य उसके पिता ऑटो फ्रैंक एम्सटर्डम लौटे, जहां उन्हें ऐन फ्रैंक की डायरी मिली. 1947 में उनकी कोशिशों से उसकी पहली प्रति डच भाषा में छपी. इस डायरी में 1942 से 1944 तक के फ्रैंक के जीवन की कहानी है.

ऐन फ्रैंक की मूल डायरी इसी संग्रहालय में रखी है. तस्वीर: Anne Frank House/Cris Toala Olivares

फ्रैंक का जन्म फ्रैंकफर्ट में हुआ था. लेकिन 1933 में जर्मनी में नाजियों के शासन में आने पर उनका परिवार नीदरलैंड्स के शहर एम्सटर्डम चला गया. 1942 में वहां भी नाजियों का प्रभाव बढ़ने पर जान बचाने के लिए उनका परिवार तहखाने में छिप कर रहने लगा, जहां कुछ दोस्तों के जरिए उन्हें खाने पीने और जरूरी चीजों की मदद मिलती थी. फ्रैंक ने उन्हीं दिनों यह डायरी लिखी. लेकिन उनके यहूदी होने का राज बहुत देर तक छुप नहीं सका और वे ढूंढ लिए गए. यहां से उन्हें आउश्वित्स यातना शिविर भेज दिया गया. 1945 में ऐन और उनकी बहन मार्गोट की यातना शिविर में ही मौत हो गई.

 

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