संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1950 में आज के दिन को मानव अधिकार दिवस घोषित किया. मकसद था दुनिया भर के लोगों का ध्यान मानवाधिकार की ओर खींचना, ताकि हर देश और समुदाय में सभी को एक नजर से देखा जाए.
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संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयुक्त कार्यालय की स्थापना को 2019 में 26 साल पूरे हो रहे हैं. 20 दिसंबर 1993 को संयुक्त राष्ट्र ने मानव अधिकार मामलों की देखभाल के लिए एक आयुक्त का होना तय किया. यह फैसला 2013 में विएना में मानवाधिकारों पर हुए विश्व सम्मेलन में शामिल देशों के प्रतिनिधियों की सलाह पर किया गया. पिछले 25 सालों में मानव अधिकारों की रक्षा की दिशा में यह सबसे बड़ा फैसला माना जाता है.
बांग्लादेश में बाल मजदूरी
करीब 45 लाख बांग्लादेशी बच्चे मजदूरी करने को मजबूर हैं और जानलेवा कामों में लगे हुए हैं. इनमें से करीब 17 लाख बच्चे राजधानी ढाका में रहते हैं. इन बच्चों के रोजमर्रा जीवन की एक झलक...
तस्वीर: Mustafiz Mamun
गुब्बारे की फैक्ट्री में
भारी गरीबी के कारण परिवार बच्चों को मजदूरी करवाने के लिए मजबूर हो जाते हैं. इन्हें कम पैसे मिलते हैं. ईंटें ढोना, कंस्ट्रक्शन, कचरा उठाना या फिर गुब्बारा बनाने वाली फैक्ट्रियों में ये काम करते हैं. ढाका के कमरंगी चार इलाके के गुब्बारा कारखाने में कई किशोर काम करते हैं. इनमें 10 साल के बच्चे भी हैं.
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निगरानी की कमी
कमरंगी चार जैसे कारखानों में काम करने वाले बच्चों को अक्सर खतरनाक रसायनों के बीच काम करना पड़ता है. बांग्लादेश की सरकार ने निर्देशिका जारी की है जिसके मुताबिक 38 खतरनाक रोजगारों में बच्चों के काम करने पर रोक है. लेकिन ये निर्देश कहीं लागू नहीं किए गए हैं.
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अधिकतर मजदूर बच्चे
वयस्कों की तुलना में बच्चों को कम पैसे दिये जाते हैं और अक्सर उनसे ज्यादा काम भी करवाया जाता है. यह एक कारण है कि कारखानों में बच्चे काम करते हैं. इन बच्चों को अक्सर कारखाने के कमरों में ही रखा जाता है ताकि बाहर से ये नहीं दिखें. इन्हें शुक्रवार के अलावा कोई छुट्टी नहीं मिलती.
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खतरनाक माहौल
ये अली हुसैन है. यह बच्चा ढाका के केरानीगंज की सिल्वर फैक्ट्री में काम करता है, दिन रात. घंटों का काम और बहरा करने वाला मशीनों का शोर. कहने की जरूरत नहीं कि दिन भर काम करने वाले बच्चे अक्सर स्कूल नहीं जाते.
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चमड़ा बनाने के काम में
2006 में बनाए गए बांग्लादेश के श्रम कानून के मुताबिक काम करने की न्यूनतम आयु 14 है. ये है 12 साल का आसिम. नोआखाली में रहने वाला आसिम हर दिन 12 घंटे ढाका के हजारीबाग में चमड़ा बनाने वाली फैक्ट्री में काम करता है. इसके जरिये वह अपना और मां का पेट पाल सकता है.
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राबी
चांदपुर में रहने वाला राबी अपनी मां के साथ प्लास्टिक कमरंगी चार के प्रोसेसिंग कारखाने में काम करता है, यहां बोतलें बनाई जाती हैं. इस कारखाने में बच्चों को नौकरी नहीं दी जाती लेकिन राबी को इसलिए काम मिला क्योंकि मां की तनख्वाह से घर नहीं चल पाता.
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चिल्लाने के लिए
बाल मजदूरी करने वाले 93 फीसदी बच्चे असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं. छोटे कारखानों, घरेलू धंधों या नौकर के तौर पर या फिर छोटी बसों या टैक्सियों में चिल्लाने वाले कंडक्टर के तौर पर काम करते हैं और अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार भी होते हैं.
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ईंट बनाने में
बांग्लादेश में ईंट बनाने का काम बहुत आम है. कई बच्चे ढाका के आमिन बजार में ईंट ढोने का काम करते हैं. उन्हें इन भारी ईंटों को उठाने के लिए 100-200 टका दिये जाते हैं. एक ईंट करीब तीन किलोग्राम की होती है और हर बच्चे को छह से सोलह ईंटे उठानी ही पड़ती हैं.
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स्वास्थ्य को खतरा
रहीम सीसे की फैक्ट्री में लगा हुआ है. सीसा एक खतरनाक रासायनिक पदार्थ है और स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक. कई बच्चे इस तरह के कामों में लगे हुए हैं और अक्सर भेदभाव, दुर्व्यवहार और यौन हिंसा के भी शिकार बन जाते हैं.