1959 में आज ही दिन तिब्बत में कुछ ऐसा हुआ कि भारत और चीन युद्ध के मैदान तक पहुंच गए. ये तारीख तिब्बत की छटपटाहट की गवाह है.
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10 मार्च 1959 को तिब्बत की राजधानी ल्हासा में चीन की नीतियों के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ. हालांकि चीन एक दशक पहले अक्टूबर 1950 से ही तिब्बत को अपने कब्जे में लेना शुरू कर चुका था. शुरुआत में तिब्बत की सरकार भी चीन के दबाव में झुक गई. एक संधि हुई जिसमें कहा गया कि तिब्बत के भीतरी मसले देश के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के अधीन रहेंगे.
लेकिन इसके बाद भी इलाके में चीनी सेना के बढ़ते दखल से तिब्बत के लोगों में गुस्सा पनपने लगा. पूर्वी तिब्बत के जोरदार प्रदर्शनों के बाद 1958 में जब ल्हासा में सुगबुगाहट होने लगी तो चीनी सेना ने शहर को बम से उड़ाने की धमकी दी.
मार्च 1959 में एक बार फिर ल्हासा में विद्रोह शुरू हो गया. ऐसी खबर आई कि चीनी सेना दलाई लामा को अगवा कर बीजिंग ले जाना चाहती है. ये खबर आते ही 10 मार्च को 30,000 लोग दलाई लामा के महल के बाहर जमा हो गए. चीनी सेना को भीतर घुसने से रोकने के लिए लोगों ने इंसानी दीवार बना दी. 17 मार्च को चीनी सेना ने दलाई लामा के महल के बाहर तोपखाना और मशीनगनें तैनात कर दी. दो दिन बाद चीनी सेना ने हजारों महिलाओं और पुरुषों को पीटना शुरू किया. दलाई लामा के अंगरक्षकों को मार दिया गया. ल्हासा के कई ऐतिहासिक केंद्र रौंद दिये गए. लेकिन जब चीनी सेना महल के भीतर पहुंची तब तक 23 साल के दलाई लामा वहां से भाग चुके थे.
कुछ दिन बाद खबर आई कि दलाई लामा भारत पहुंच चुके हैं और नई दिल्ली ने उन्हें शरण दी है. चीन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री के इस कदम से बहुत नाराज हुआ. भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच इस घटना ने आग में घी का काम किया और 1962 के भारत-चीन युद्ध की पटकथा लिख दी. दलाई लामा आज भी भारत में ही रहते हैं. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर से तिब्बत की निर्वसित सरकार चलती है. तिब्बती समुदाय आज भी चीन के कब्जे का विरोध करता है.
संवाद के कलाकार दलाई लामा
दलाई लामा तिब्बत की पहचान हैं और चीन के अधीन इस इलाके की स्वायत्तता के लिए वास्तविक स्वायत्तता चाहते हैं. वहीं चीन उन्हें एक अलगगाववादी मानती है.
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अथक यात्री
दलाई लामा अथक यात्री हैं जो वैश्विक समुदाय के साथ अच्छे रिश्ते बनाए रखते हैं. भले ही उनके पास ज्यादा राजनैतिक ताकत नहीं हो, लेकिन नेताओं, अभिनेताओं और बड़ी हस्तियों से उनके नजदीकी संबंध हैं. हालांकि उनसे मुलाकात दुनिया के कई नेताओं के लिए मुश्किल बन जाती है.
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भारत में बसेरा
दलाई लामा अपने लाखों अनुयायियों के साथ भारत में शरण लिए हुए हैं. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला से तिब्बतियों की निर्वासित सरकार चलती है.
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नाराज बीजिंग
2007 में जर्मनी में दलाई लामा के स्वागत के लिए चांसलर अंगेला मैर्केल खुद आई थीं. चीनी सरकार ने इसकी कड़ी आलोचना की थी और कुछ जर्मन नेताओं ने भी. मई 2008 में तत्कालीन विकास मंत्री हाइडेमारी वित्सोरेक सॉइल भी ल्हासा के दंगों के बाद दलाई लामा से उनके निवास के बाहर अनौपचारिक तौर पर मिली थीं.
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मजाक करने वाले
तिब्बतियों के धार्मिक नेता का ह्यूमर जोरदार है. तस्वीर में 2008 में सिएटल की कॉन्फ्रेंस के दौरान दक्षिण अफ्रीका के आर्चबिशप से बातचीत करते हुए दलाई लामा. .
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मिलने से डर नहीं
जर्मनी के रुढ़िवादी नेता रोनाल्ड कॉख की आलोचना की जाती रही है क्योंकि दलाई लामा उनके नजदीकी मित्र हैं. 2009 में फ्रैंकफर्ट में दलाई लामा और कॉख.
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दोस्त और शिक्षक
2005 में वीसबाडेन शहर में दलाई लामा अपने दोस्त हाइनरिष हारेर के साथ. हारेर बाद में दलाई लामा के टीचर बने. 94 साल की उम्र में हारेर की ऑस्ट्रिया के त्सारिंथिया में मृत्यु हुई.
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फ्रांस में दलाई लामा
फ्रांस की पूर्व प्रथम महिला कार्ला ब्रूनी-सारकोजी दक्षिणी फ्रांस में एक बौद्ध मंदिर के उद्घाटन के दौरान. हालांकि 2008 में फ्रांस के राष्ट्रपति निकोला सारकोजी तिब्बती आध्यात्मिक नेता से नहीं मिले.
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नकली नजदीकी
तिब्बत की आजादी में दलाई लामा को शामिल करने की चीन की कोशिशें विफल रहीं. चीनी कम्युनिस्ट नेता माओ जेडॉन्ग को दलाई लामा और पंचम लामा के रक्षक के रूप में दिखाया गया है. यह तस्वीर दलाई लामा के भारत भागने से तीन साल पहले 1956 की है.
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कूटनीति
2014 की शुरुआत में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दलाई लामा को निजी बातचीत के लिए व्हाइट हाउस में बुलाया. यह दोनों के बीच तीसरी बैठक थी. चीन ने चेतावनी दी कि वह इस बैठक को चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानेगा.