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इतिहास

इतिहास में आज: 10 मार्च

८ मार्च २०१४

1959 में आज ही दिन तिब्बत में कुछ ऐसा हुआ कि भारत और चीन युद्ध के मैदान तक पहुंच गए. ये तारीख तिब्बत की छटपटाहट की गवाह है.

तस्वीर: Li Jianglin

10 मार्च 1959 को तिब्बत की राजधानी ल्हासा में चीन की नीतियों के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ. हालांकि चीन एक दशक पहले अक्टूबर 1950 से ही तिब्बत को अपने कब्जे में लेना शुरू कर चुका था. शुरुआत में तिब्बत की सरकार भी चीन के दबाव में झुक गई. एक संधि हुई जिसमें कहा गया कि तिब्बत के भीतरी मसले देश के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के अधीन रहेंगे.

लेकिन इसके बाद भी इलाके में चीनी सेना के बढ़ते दखल से तिब्बत के लोगों में गुस्सा पनपने लगा. पूर्वी तिब्बत के जोरदार प्रदर्शनों के बाद 1958 में जब ल्हासा में सुगबुगाहट होने लगी तो चीनी सेना ने शहर को बम से उड़ाने की धमकी दी.

मार्च 1959 में एक बार फिर ल्हासा में विद्रोह शुरू हो गया. ऐसी खबर आई कि चीनी सेना दलाई लामा को अगवा कर बीजिंग ले जाना चाहती है. ये खबर आते ही 10 मार्च को 30,000 लोग दलाई लामा के महल के बाहर जमा हो गए. चीनी सेना को भीतर घुसने से रोकने के लिए लोगों ने इंसानी दीवार बना दी. 17 मार्च को चीनी सेना ने दलाई लामा के महल के बाहर तोपखाना और मशीनगनें तैनात कर दी. दो दिन बाद चीनी सेना ने हजारों महिलाओं और पुरुषों को पीटना शुरू किया. दलाई लामा के अंगरक्षकों को मार दिया गया. ल्हासा के कई ऐतिहासिक केंद्र रौंद दिये गए. लेकिन जब चीनी सेना महल के भीतर पहुंची तब तक 23 साल के दलाई लामा वहां से भाग चुके थे.

कुछ दिन बाद खबर आई कि दलाई लामा भारत पहुंच चुके हैं और नई दिल्ली ने उन्हें शरण दी है. चीन तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री के इस कदम से बहुत नाराज हुआ. भारत के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच इस घटना ने आग में घी का काम किया और 1962 के भारत-चीन युद्ध की पटकथा लिख दी. दलाई लामा आज भी भारत में ही रहते हैं. हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर से तिब्बत की निर्वसित सरकार चलती है. तिब्बती समुदाय आज भी चीन के कब्जे का विरोध करता है.

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