कम्युनिस्ट क्रांतिकारी फिडेल कास्त्रो ने आज ही के दिन क्यूबा के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. 1959 की क्यूबा क्रांति के बाद उन्होंने देश की बागडोर 2008 तक संभाली. 1976 में वे क्यूबा के राष्ट्रपति भी बने.
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दक्षिणपंथी तानाशाह फुल्गेन्सियो बातिस्ता के खिलाफ छापामार अभियान चला कर और उन्हें सत्ता से बेदखल करने के बाद 16 फरवरी 1959 को कास्त्रो प्रधानमंत्री बने. क्यूबा की क्रांति अधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1953 को शुरू हुई. अमेरिकी समर्थन वाले तानाशाह बातिस्ता तख्ता पलट के बाद सत्तासीन हुए थे. उस समय कास्त्रो को बहुत कम लोग जानते थे. युवा वकील जो तानाशाह के खिलाफ 1952 के चुनाव में खड़े तो हुए लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. क्यूबा के लोग वोट कर पाते इससे पहले ही वोटिंग खत्म कर दी गई.
अलविदा कास्त्रो
क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो ने 90 साल की उम्र में 25 नवंबर 2016 को दुनिया को अलविदा कह दिया. एक नजर उनके जीवन पर.
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महान क्रांतिकारी
फिदेल कास्त्रो का नाम उन बड़े नेताओं में शामिल है, जिनके लिए इतिहास में 20वीं सदी को जाना जाएगा.
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आलोचना
कास्त्रो ने लगभग पचास साल तक क्यूबा पर एकछत्र राज किया. उनके समर्थक जहां समाजवाद को बढ़ावा देने के लिए उनकी प्रशंसा करते हैं, वहीं विरोधियों का कहना है कि उन्होंने अपने आलोचकों का उत्पीड़न और शोषण किया.
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मौत पर जश्न
अमेरिका के मियामी में रहने वाले क्यूबा मूल के बहुत से लोगों ने फिदेल कास्त्रो की मौत पर जश्न मनाया. मियामी को लिटिल हवाना कहा जाता है.
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अमीर किसान के बेटे
कास्त्रो का पूरा नाम फिदेल अलेयांद्रो कास्त्रो रूज था और उनका जन्म 13 अगस्त 1926 को हुआ था. उनके पिता एंजेल मारिया बाउतिस्ता कास्त्रो ई एरगिज एक अमीर किसान थे जो स्पेन से क्यूबा में जाकर बसे थे.
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नाजायज संतान
फिदेल जन्म के समय अपने पिता की नाजायज संतान थे. उनकी मां लिना रुज गोंजालेज फिदेल कास्त्रो के पिता के फार्म पर नौकरी करती थीं. दोनों की दोस्ती हो गई. फिदेल के जन्म के बाद दोनों ने शादी कर ली.
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शानदार वक्ता
कास्त्रो पढ़ाई में ज्यादा अच्छे नहीं थे, उनका मन खेलकूद में ज्यादा लगता था. हवाना यूनिवर्सिटी में पढ़ते हुए 1940 में कास्त्रो एक राजनीतिक कार्यकर्ता बन गए थे. वह गजब के वक्ता थे.
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सरकार के आलोचक
उनके निशाने पर होती थी क्यूबा की सरकार, जिसका नेतृत्व राष्ट्रपति रोमोन ग्राउ कर रहे थे. उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के बहुत आरोप थे.
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पूंजीवाद से समस्या
फिदेल कास्त्रो मानते थे कि क्यूबा की आर्थिक समस्याओं की वजह बेतहाशा पूंजीवाद है और इसका हल सिर्फ एक जनक्रांति है.
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तख्तापलट
1952 में फुलजेंसियो बातिस्ता ने सैन्य तख्तापलट में क्यूबा के राष्ट्रपति कारलोस प्रियो को सत्ता से बाहर कर दिया. लेकिन अमेरिका से उनकी नजदीकी और समाजवादी संगठनों पर कार्रवाई ने कास्त्रो की बुनियादी राजनीतिक सोच पर चोट की.
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द मूवमेंट
कानूनी रूप से लड़ाई में नाकाम रहने के बाद कास्त्रो ने द मूवमेंट नाम से एक संगठन बनाया ताकि भूमिगत रह कर बातिस्ता सरकार को उखाड़ा जा सके.
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हमला नाकाम
कास्त्रो ने जुलाई 1953 में सेंटियागो के पास मोनकाडा आर्मी बैरकों से हथियार लूटने की योजना बनाई. लेकिन हमला नाकाम रहा. बहुत से क्रांतिकारी मारे गए. कास्त्रो को जेल हुई. हालांकि 15 साल की सजा के बावजूद उन्हें सिर्फ 19 महीने ही जेल में काटने पड़े क्योंकि कैदियों को आम माफी के दौरान उन्हें भी रिहा कर दिया गया.
चे से मुलाकात
विरोधियों के खिलाफ बातिस्ता की कार्रवाई से बचने के लिए कास्त्रो मैक्सिको चले गए जहां उनकी मुलाकात एर्नेस्टो चे गुएरा नाम के एक युवा क्रांतिकारी से हुई.
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गुरिल्ला युद्ध
1956 में कास्त्रो 81 सशस्त्र साथियों के साथ क्यूबा लौटे. उन्होंने सिएरा माइस्त्रा की पहाड़ियों में शरण ली और दो साल तक सरकार के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध चलाते रहे.
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मिली सत्ता
2 जनवरी 1959 को विद्रोही सेना क्यूबा की राजधानी में दाखिल हुई और बातिस्ता को भागना पड़ा.
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गरीबों के लिए
नई सरकार में राउल कास्त्रो को प्रधानमंत्री का पद मिला. सरकार ने लोगों को उनकी जमीनें वापस देने और गरीबों के लिए हितों के काम करने का वादा किया.
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एक पार्टी का शासन
लेकिन देश में एक पार्टी वाला शासन लागू किया गया. हजारों लोगों को जेल भेजा गया जबकि कुछ लोग लेबर कैंपों में भेजे गए. मध्य वर्ग के हजारों लोगों ने क्यूबा छोड़ दिया.
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साजिशें
बताते हैं कि अमेरिका ने कई बार कास्त्रो की हत्या की साजिश रची और उनकी सरकार को गिराने की कोशिश भी की गई. लेकिन उन्हें हर बार नाकामी हाथ लगी.
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सत्ता छोड़ी
कास्त्रो 2008 में बिगड़ती तबियत के कारण राष्ट्रपति पद से हट गए. उनके छोटे भाई राउल कास्त्रो ने देश की बागडोर संभाली.
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कास्त्रो मतलब क्यूबा
अब क्यूबा की सरकार के साथ अमेरिका के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं. लेकिन एक पीढ़ी के लिए कास्त्रो का मतलब क्यूबा था और कास्त्रो का मतलब क्यूबा.
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कास्त्रो ने करीब 130 लोगों का साथ जुटाया और सैन डियागो डे क्यूबा में मोनकाडा सैनिक छावनियों को अपने हाथों में लेने की कोशिश की और वहां रखे हथियारों को हथियाने की भी. उन्हें उम्मीद थी कि इस बैरक के 400 सैनिक एक दिन पहले के सेंट जेम्स उत्सव के बाद थके हुए होंगे या फिर वहां नहीं होंगे. लेकिन यह योजना विफल हो गई और कई क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई जबकि बाकी पर मुकदमा चला. कास्त्रो को भी गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया. कास्त्रो पर सरकार को उखाड़ फेंकने का आरोप लगा. कास्त्रो ने सुनवाई के दौरान यह दलील दी कि वह और उनके विद्रोही क्यूबा में लोकतंत्र बहाली के लिए लड़ाई लड़ रहे थे. लेकिन उनकी यह दलील नहीं मानी गई.
कास्त्रो को 15 साल की सजा हुई. दो साल बाद बातिस्ता अपनी ताकत को लेकर इतना आश्वस्त हुए कि उन्होंने सभी नेताओं को माफी दे दी. इसके बाद कास्त्रो अपने भाई राउल कास्त्रो के साथ मेक्सिको चले गए और वहां चे ग्वेरा के साथ मिलकर 26 जुलाई की क्रांति की शुरुआत की. बातिस्ता के खिलाफ क्यूबा में अंसतोष बढ़ता चला गया. 2 दिसंबर 1956 को कास्त्रो क्यूबा के तट पर हथियार से लैस 81 लोगों के साथ पहुंचे. कास्त्रो, राउल और चे ग्वेरा समेत नौ लोग बच गए और बाकी या तो मारे गए या पकड़े गए. गुरिल्ला लड़ाई में बातिस्ता की सेना कमजोर होती गई. 1958 के मध्य तक कास्त्रो के लिए क्यूबा में समर्थन बढ़ता गया.
अमेरिका ने भी बातिस्ता को सैन्य मदद रोक दी. इसके बाद कास्त्रो के सहयोगी चे ग्वेरा ने दिसंबर 1958 में सांता क्लारा पर हमला कर दिया. एक जनवरी 1959 को बातिस्ता अपनी कमजोर होती सेना को देख डॉमिनिक गणराज्य भाग गए. उस वक्त कास्त्रो के पास एक हजार से भी कम जवान थे. बावजूद इसके कास्त्रो ने क्यूबा सरकार के 30,000 सैनिकों की कमान संभाल ली. अन्य विरोधी नेताओं के पास लोकप्रियता और समर्थन की कमी होने का लाभ कास्त्रो को मिला. 16 फरवरी 1959 को फिडेल कास्त्रो ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. इसके बाद लगभग आधी सदी तक वह क्यूबा के प्रमुख बने रहे.
इंसानी इतिहास के सबसे क्रूर तानाशाह
हर चीज को अपने मुताबिक करवाने की सनक, ताकत और अतिमहत्वाकांक्षा का मिश्रण धरती को नर्क बना सकता है. एक नजर ऐसे तानाशाहों पर जिनकी सनक ने लाखों लोगों की जान ली.
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1. माओ त्से तुंग
आधुनिक चीन की नींव रखने वाले माओ त्से तुंग के हाथ अपने ही लोगों के खून से रंगे थे. 1958 में सोवियत संघ का आर्थिक मॉडल चुराकर माओ ने विकास का नारा दिया. माओ की सनक ने 4.5 करोड़ लोगों की जान ली. 10 साल बाद माओ ने सांस्कृतिक क्रांति का नारा दिया और फिर 3 करोड़ लोगों की जान ली.
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2. अडोल्फ हिटलर
जर्मनी के नाजी तानाशाह अडोल्फ हिटलर के अपराधों की लिस्ट बहुत ही लंबी है. हिटलर ने 1.1 करोड़ लोगों की हत्या का आदेश दिया. उनमें से 60 लाख यहूदी थे. उसने दुनिया को दूसरे विश्वयुद्ध में भी धकेला. लड़ाई में 7 करोड़ जानें गई. युद्ध के अंत में पकड़े जाने के डर से हिटलर ने खुदकुशी कर ली.
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3. जोसेफ स्टालिन
सोवियत संघ के संस्थापकों में से एक व्लादिमीर लेनिन के मुताबिक जोसेफ स्टालिन रुखे स्वभाव का शख्स था. लेनिन की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत के बाद सोवियत संघ की कमान संभालने वाले स्टालिन ने जर्मनी को हराकर दूसरे विश्वयुद्ध में निर्णायक भूमिका निभाई. लेकिन स्टालिन ने अपने हर विरोधी को मौत के घाट भी उतारा. स्टालिन के 31 साल के राज में 2 करोड़ लोग मारे गए.
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4. पोल पॉट
कंबोडिया में खमेर रूज आंदोलन के नेता पोल पॉट ने सत्ता में आने के बाद चार साल के भीतर 10 लाख लोगों को मौत के मुंह में धकेला. ज्यादातर पीड़ित श्रम शिविरों में भूख से या जेल में यातनाओं के चलते मारे गए. हजारों की हत्या की गई. 1998 तक कंबोडिया के जंगलों में पोल पॉट के गुरिल्ला मौजूद थे.
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5. सद्दाम हुसैन
इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन की कुर्द समुदाय के प्रति नफरत किसी से छुपी नहीं थी. 1979 से 2003 के बीच इराक में 3,00,000 कुर्द मारे गए. सद्दाम पर रासायनिक हथियारों का प्रयोग करने के आरोप भी लगे. इराक पर अमेरिकी हमले के बाद सद्दाम हुसैन को पकड़ा गया और 2006 में फांसी दी गई.
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6. ईदी अमीन
सात साल तक युगांडा की सत्ता संभालने वाले ईदी अमीन ने 2,50,000 से ज्यादा लोगों को मरवाया. ईदी अमीन ने नस्ली सफाये, हत्याओं और यातनाओं का दौर चलाया. यही वजह है कि ईदी अमीन को युगांडा का बूचड़ भी कहा जाता है. पद छोड़ने के बाद ईदी अमीन भागकर सऊदी अरब गया. वहां मौत तक उसने विलासिता भरी जिंदगी जी.
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7. मेनगिस्तु हाइले मरियम
इथियोपिया के कम्युनिस्ट तानाशाह से अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ लाल आतंक अभियान छेड़ा. 1977 से 1978 के बीच ही उसने करीब 5,00,000 लाख लोगों की हत्या करवाई. 2006 में इथियोपिया ने उसे जनसंहार का दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई. मरियम भागकर जिम्बाब्वे चला गया.
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8. किम जोंग इल
इन सभी तानाशाहों में सिर्फ किम जोंग इल ही ऐसे हैं जिन्हे लाखों लोगों को मारने के बाद भी उत्तर कोरिया में भगवान सा माना जाता है. इल के कार्यकाल में 25 लाख लोग गरीबी और कुपोषण से मारे गए. इल ने लोगों पर ध्यान देने के बजाए सिर्फ सेना को चमकाया.
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9. मुअम्मर गद्दाफी
मुअम्मर गद्दाफी ने 40 साल से ज्यादा समय तक लीबिया का शासन चलाया. तख्तापलट कर सत्ता प्राप्त करने वाले गद्दाफी के तानाशाही के किस्से मशहूर हैं. गद्दाफी पर हजारों लोगों को मौत के घाट उतारने और सैकड़ों औरतों से बलात्कार और यौन शोषण के आरोप हैं. 2011 में लीबिया में गद्दाफी के विरोध में चले लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों में गद्दाफी की मौत हो गई.
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10. फ्रांकोइस डुवेलियर
1957 में हैती की कमान संभालने वाला डुवेलियर भी एक क्रूर तानाशाह था. डुवेलियर ने अपने हजारों विरोधियों को मरवा दिया. वो अपने विरोधियों को काले जादू से मारने का दावा करता था. हैती में उसे पापा डुवेलियर के नाम से जाना जाता था. 1971 में उसकी मौत हो गई. फिर डुवेलियर का बेटा भी हैती का तानाशाह बना.
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