इतिहास में आज: 17 दिसंबर
१६ दिसम्बर २०१४ऑरविल और विल्बर राइट बंधुओं की वजह से ही आज हम और आप विमान का सफर कर पा रहे हैं. राइट बंधुओं के मामूली से प्रयोगात्मक विमान से शुरू होकर यह उड़ान जेट विमानों और अंतरिक्ष यानों तक होते हुए चंद्रमा और मंगल तक जा पहुंची है.
राइट बंधुओं की यह कामयाबी दरअसल चार साल की कड़ी मेहनत और बार-बार नाकामी मिलने के बावजूद सपने को साकार करने के जज्बे का नतीजा थी. हालांकि अपने भाइयों की तरह वे कॉलेज नहीं गए लेकिन मशीनों से दोनों को खूब लगाव था. बचपन में उनके पिता ने उन्हें एक हेलीकॉप्टर सा खिलौना दिया था, जिसने दोनों भाइयों को असली का उड़न यंत्र बनाने के लिए प्रेरित किया. दोनों को मशीनी तकनीक की काफी अच्छी समझ थी जिससे उन्हें विमान के निर्माण में मदद मिली.
यह कौशल उन्होंने प्रिंटिंग प्रेसों, साइकिलों, मोटरों और दूसरी मशीनों पर लगातार काम करते हुए पाया था. दोनों ने 1900 से 1903 तक लगातार ग्लाइडरों के साथ परीक्षण किया था लेकिन वे ग्लाइडर नहीं उड़ा पा रहे थे. आखिरकार एक साइकिल मैकेनिक चार्ली टेलर की मदद से राइट बंधु एक ऐसा इंजन बनाने में सफल रहे, जो 200 पौंड से कम वजन का भी था और 12 हॉर्स पावर का था.
फिर समस्या आयी प्रोपेलर की. जलयान के प्रोपेलर विमान के लिए उपयुक्त नहीं थे. ऐसे में, राइट बंधुओं ने ग्लाइडरों के अनुभव के आधार पर उपयुक्त प्रोपेलर बनाने में सफलता हासिल की. उसके बाद उन्होंने अपने ग्लाइडर 'किटी हॉक' में यह इंजन और प्रोपेलर लगाकर विमान तैयार किया जिसने 17 दिसंबर 1903 को पहली उड़ान भरी. 12 सेकेंड की इस उड़ान ने 120 फीट की दूरी तय की और इतिहास रच दिया.