चांद को छूने के सपने हम सभी बचपन से देखते हैं. भारत ने मानव रहित यान को चंद्रमा पर भेजने के सपने को आज के दिन साकार किया था.
विज्ञापन
22 अक्टूबर 2008 में भारत के पहले मानव रहित अंतरिक्ष यान चंद्रयान प्रथम ने चांद का रुख किया. चंद्रयान को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया गया था. भारतीय अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण कार्यक्रम में यह 27वां उपक्रम था. इसका कार्यकाल 2 साल के लिए निर्धारित किया गया था, लेकिन 29 अगस्त 2009 को बीच में ही नियंत्रण कक्ष से संपर्क टूट जाने पर इसे 30 अगस्त को बंद कर दिया गया. भारत से पहले पांच अन्य देश भी चांद पर अंतरिक्ष यान भेज चुके थे.
ब्लैक होल की दुनिया
ब्लैक होल यानि कृष्ण विवर के बारे में पूरी जानकारी नहीं मिल पाई है. घनघोर अंधेरे और उच्च द्रव्यमान वाले इन ब्लैक होल्स की तस्वीरें इस गैलेरी में.
तस्वीर: NASA
बहुत कुछ पर कुछ नहीं
ब्लैक होल वास्तव में कोई छेद नहीं है, यह तो मरे हुए तारों के अवशेष हैं. करोड़ों, अरबों सालों के गुजरने के बाद किसी तारे की जिंदगी खत्म होती है और ब्लैक होल का जन्म होता है.
तस्वीर: cc-by-sa 2.0/Ute Kraus
विशाल धमाका
यह तेज और चमकते सूरज या किसी दूसरे तारे के जीवन का आखिरी पल होता है और तब इसे सुपरनोवा कहा जाता है. तारे में हुआ विशाल धमाका उसे तबाह कर देता है और उसके पदार्थ अंतरिक्ष में फैल जाते हैं. इन पलों की चमक किसी गैलेक्सी जैसी होती है.
तस्वीर: NASA
सिमटा तारा
मरने वाले तारे में इतना आकर्षण होता है कि उसका सारा पदार्थ आपस में बहुत गहनता से सिमट जाता है और एक छोटे काले बॉल की आकृति ले लेता है. इसके बाद इसका कोई आयतन नहीं होता लेकिन घनत्व अनंत रहता है. यह घनत्व इतना ज्यादा है कि इसकी कल्पना नहीं की जा सकती. सिर्फ सापेक्षता के सिद्धांत से ही इसकी व्याख्या हो सकती है.
तस्वीर: NASA and M. Weiss (Chandra X -ray Center)
ब्लैक होल का जन्म
यह ब्लैक होल इसके बाद ग्रह, चांद, सूरज समेत सभी अंतरिक्षीय पिंडों को अपनी ओर खींचता है. जितने ज्यादा पदार्थ इसके अंदर आते हैं इसका आकर्षण बढ़ता जाता है. यहां तक कि यह प्रकाश को भी सोख लेता है.
सभी तारे मरने के बाद ब्लैक होल नहीं बनते. पृथ्वी जितने छोटे तारे तो बस सफेद छोटे छोटे कण बन कर ही रह जाते हैं. इस मिल्की वे में दिख रहे बड़े तारे न्यूट्रॉन तारे हैं जो बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाले पिंड हैं.
तस्वीर: NASA and H. Richer (University of British Columbia)
विशालकाय दुनिया
अंतरिक्ष विज्ञानी ब्लैक होल को उनके आकार के आधार पर अलग करते हैं. छोटे ब्लैक होल स्टेलर ब्लैक होल कहे जाते हैं जबकि बड़े वालों को सुपरमैसिव ब्लैक होल कहा जाता है. इनका भार इतना ज्यादा होता है कि एक एक ब्लैक होल लाखों करोड़ों सूरज के बराबर हो जाए.
तस्वीर: NASA/CXC/MIT/F.K. Baganoff et al
छिपे रहते हैं
ब्लैक होल देखे नहीं जा सकते, इनका कोई आयतन नही होता और यह कोई पिंड नहीं होते. इनकी सिर्फ कल्पना की जाती है कि अंतरिक्ष में कोई जगह कैसी है. रहस्यमय ब्लैक होल को सिर्फ उसके आस पास चक्कर लगाते भंवर जैसी चीजों से पहचाना जाता है.
1972 में एक्स रे बाइनरी स्टार सिग्नस एक्स-1 के हिस्से के रूप मे सामने आया ब्लैक होल सबसे पहला था जिसकी पुष्टि हुई. शुरुआत में तो रिसर्चर इस पर एकमत ही नहीं थे कि यह कोई ब्लैक होल है या फिर बहुत ज्यादा द्रव्यमान वाला कोई न्यूट्रॉन स्टार.
तस्वीर: NASA/CXC
पुष्ट हुई धारणा
सिग्नस एक्स-1 के बी स्टार की ब्लैक होल के रूप में पहचान हुई. पहले तो इसका द्रव्यमान न्यूट्रॉन स्टार के द्रव्यमान से ज्यादा निकला. दूसरे अंतरिक्ष में अचानक कोई चीज गायब हो जाती. यहां भौतिकी के रोजमर्रा के सिद्धांत लागू नहीं होते.
तस्वीर: NASA/CXC/M.Weiss
सबसे बड़ा ब्लैक होल
यूरोपीय दक्षिणी वेधशाला के वैज्ञानिको ने हाल ही में अब तक का सबसे विशाल ब्लैक होल ढूंढ निकाला है. यह अपने मेजबान गैलेक्सी एडीसी 1277 का 14 फीसदी द्रव्यमान अपने अंदर लेता है.
तस्वीर: ESO/L. Calçada
अनसुलझे रहस्य
ब्लैक होल के पार देखना कभी खत्म नहीं होता. ये अंतरिक्ष विज्ञानियों को हमेशा नई पहेलियां देते रहते हैं.
तस्वीर: NASA/CXC/SAO/A.Prestwich et al
11 तस्वीरें1 | 11
यह प्रक्षेपण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के कार्यक्रम के अंतर्गत किया गया था. चंद्रयान प्रथम ने चंद्रमा की ध्रुवीय कक्षा में स्थापित होकर वहां से रिमोट सेंसिंग के जरिए चित्र भेजे. इसरो ने दावा किया कि चांद पर पानी भारत की खोज है. चंद्रयान मिशन के दौरान जमा किए गए डेटा के आधार पर नासा ने भी इस बात की पुष्टि की. चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता भारत के अपने मून इंपैक्ट प्रोब (एमआईपी) ने लगाया. इसरो के अनुसार चांद पर पानी समुद्र, झरने, तालाब या बूंदों के रूप में नहीं बल्कि चट्टानों की सतह के भीतर मौजूद है. यह एक बड़ी उपलब्धि थी. इसरो इस समय चंद्रयान द्वितीय पर काम कर रहा है जिसे 2016 में प्रक्षेपित किए जाने की संभावना है.
प्लूटो पर मिली बर्फ, आसमान भी नीला
पृथ्वी के पड़ोसी ग्रह मंगल पर पानी मिलने के बाद अब सुदूर स्थित प्लूटो पर भी बर्फ होने के संकेत मिले हैं और साथ ही उसका आसमान पृथ्वी की तरह नीला है.
न्यू हॉरिजंस का डाटा
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने न्यू हॉरिजंस अंतरिक्ष यान से मिली पहली रंगीन तस्वीरों के आधार पर यह दावा किया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि प्लूटो की धुंध के कण भूरे और लाल रंग के हो सकते हैं लेकिन वे नीला प्रकाश बिखेर रहे हैं.
तस्वीर: JHUAPL/SwRI
प्लूटो पर बर्फ
साथ ही प्लूटो पर बर्फ के कई छोटे-छोटे क्षेत्रों का पता चला है. कोलोराडो के बॉल्डर स्थित दक्षिण पश्चिम शोध संस्थान एसडब्ल्यूआरआई में न्यू हॉरिजंस के प्रमुख शोधकर्ता एलन स्टर्न ने इस बारे में कहा, "सुदूर अंतरिक्ष में नीले आकाश की उम्मीद किसने की होगी. यह बहुत सुंदर है."
तस्वीर: CC-BY-NC-ChaoticMind75
नीला आसमां
इसी संस्थान के कार्ली हॉवेट ने कहा कि छोटे-छोटे कणों द्वारा सूर्य की रोशनी के बिखराव के परिणामस्वरूप आकाश नीला दिखता है. पृथ्वी पर यह काम नाइट्रोजन के छोटे कण करते हैं, "प्लूटो पर वे बहुत बड़े लग रहे हैं लेकिन फिर भी वे छोटे हैं. ऐसे कणों को हम थोलिन कहते हैं."
तस्वीर: Colourbox
थोलिन कण
वैज्ञानिकों का मानना है कि थोलिन कण उच्च तापमान में बनते हैं जहां पराबैंगनी किरणें टूटती हैं और आयनीकृत नाइट्रोजन तथा मीथेन कण एक दूसरे से क्रिया कर जटिल आवेशपूर्ण आयन बनाते हैं. फिर ये आपस में जुड़कर बेहद जटिल कण बनाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/ZUMA Press
शनि का उपग्रह
यह प्रक्रिया पहली बार शनि के उपग्रह टाइटन के ऊपरी वातावरण में देखी गयी थी. ये जटिल कण तब तक मिलते रहते हैं जब तक वे छोटे अणु नहीं बन जाते. इन अणुओं पर फिर गैसों की परत जम जाती है और वे वायुमंडल की सतह पर आ जाते हैं. इन्हीं अणुओं की मौजूदगी के कारण प्लूटो की सतह का रंग लाल है.
तस्वीर: AP
राल्फ स्पेक्ट्रल कंपोजीशन मैपर
साथ ही प्लूटो पर बर्फ के कई छोटे-छोटे क्षेत्रों का पता चला है. न्यू हॉरिजंस पर लगे राल्फ स्पेक्ट्रल कंपोजीशन मैपर से मिले आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है. न्यू हॉरिजंस द्वारा भेजी और तस्वीरें देखने के लिए ऊपर दिए गए "+और" पर क्लिक करें.
तस्वीर: JHUAPL/SwRI
लाल बर्फ
मैरीलैंड विश्वविद्यालय की सिल्विया प्रोटोपापा का कहना है, "मुझे इस बात का आश्चर्य है कि यह बर्फ लाल है. हम अभी तक बर्फ और प्लूटो की सतह पर मौजूद थोलिन में संबंध समझ नहीं पाए हैं." न्यू हॉरिजंस यान अभी पृथ्वी से 3.1 अरब मील दूर है और उसकी सभी प्रणालियां सही ढंग से काम कर रही हैं.