उत्तरी चिली के सैन जोसे में तांबे और सोने की एक खान में पांच अगस्त को एक धमाके के बाद ये खनिक वहां फंस गए. करीब 700 मीटर की गहराई से जमीन पर उनका पहला संपर्क पूरे 17 दिनों के बाद ही हो पाया. खनिकों के जीवित होने का संकेत सबसे पहले 22 अगस्त को मिला, जब खदान की गहराई तक पहुंचने वाले ड्रिल के छोर पर खटखट की आवाज सुनाई दी. जब बचाव दल ने इस ड्रिल को बाहर निकाला, तो उस पर लिखा था, "हम 33 लोग यहां ठीक हैं." फिर एक बोर होल के जरिए खनिकों के रिश्तेदारों के शब्द उनके कानों तक पहुंचने लगे. इसके बाद फाइबर ऑप्टिक लाइन लगाई गई जिसके जरिए फोन और वीडियो बातचीत संभव हुई.
इसके बाद जर्मनी समेत दुनिया भर के कई देशों सें विशेष किस्म की हेवी ड्रिल मशीनें मंगवाई गई और करीब दो महीने तक खुदाई चलती रही. खान से निकलने के बाद इन मजदूरों को निमंत्रणों और प्रस्तावों की झड़ी लग गई और दुनिया भर के लोगों ने उनकी जोखिम भरी लेकिन रोमांचकारी तस्वीरें टेलीविजन पर देखी. पूरी दुनिया के लिए सबसे ज्यादा हैरानी वाली बात ये रही कि जमीन से करीब 700 मीटर नीचे उन्होंने इतने दिन कैसे गुजारे. असल में ये सब अत्याधुनिक तकनीक की मदद से ही हो पाया. इंजीनियरों ने दो हजार फुट से ज्यादा गहरी खुदाई करवाई जिससे कैप्सूल की शक्ल की एक लिफ्ट उतारी गई. इसी लिफ्ट से पूरे 69 दिनों के बाद सभी खनिकों को जीवित बाहर निकालने में सफलता मिली.
इंडोनेशियाई द्वीप लोंबोक में सोने के खदानों की कमी नहीं. लेकिन कुछ लोग इससे पैसे कमा रहे हैं तो इससे पर्यावरण को नुकसान भी हो रहा है.
तस्वीर: Elisabetta Zavoliलोंबोक में सोने की खोज ने अर्थव्यवस्था को पूरी तरह पलट दिया है. पहले मछली पकड़कर और खेती करके लोग पैसे कमाते थे. इस तस्वीर में सोने की दुकान का मालिक रिज्की एक ग्राम सोना 15 यूरो यानी करीब 1200 रुपयों में बेचता है.
तस्वीर: Elisabetta Zavoliसेकोटोंग प्रांत में पहाड़ों के बीचों बीच सोने की चाहत में सैंकड़ों सुरंग सोने के दीवाने सैलानियों ने बिना मशीनों की मदद के अपने हाथों से खोदी हैं. सुरंग के दरवाजे पर नीले प्लास्टिक के झो़ंपड़े हैं.
तस्वीर: Elisabetta Zavoli48 साल का मजदूर सैफुल रोजाना 30 किलो की बोरियों में कच्चा माल भरता है. "मैं सूरज निकलते ही काम पर लग जाता हूं और सूरज ढलने तक नहीं रुकता. जितनी बोरियां भरती हैं, उतना आप और खोदते हैं क्योंकि पता नहीं एक बोरे में कितना सोना होगा."
तस्वीर: Elisabetta Zavoliसुरंग इतनी पतली हैं कि एक बार में सिर्फ एक आदमी अंदर घुस सकता है. सैफुल कहता है, "जब हम अपनी सुरंग खोदते हैं तो हम कई बार दोस्त की सुरंग में पहुंच जाते हैं. हम बस वापस आ कर दूसरी दिशा में खोदने लगते हैं." सिर पर एक छोटी टॉर्च से अंधेरी सुरंग में देखा जा सकता है. यहां का तापमान 38 डिग्री तक पहुंच सकता है.
तस्वीर: Elisabetta Zavoliकई गरीब परिवारों ने लोंबोक में अपनी किस्मत आजमाई है. 29 साल की देवी ग्राइंडर से स्टील के खंबे को निकाल रही हैं. कच्चे माल को मिट्टी में बदलने में उन्हें तीन घंटे लगे. ग्राइंडर वहीं रखा जाता है जहां उनका परिवार सोता और खाता है.
तस्वीर: Elisabetta Zavoliलोंबोक के तेलागे लेबूर गांव में 18 साल का मशूर मिट्टी से सोना अलग करता है. 14 साल की उम्र से मशूर सोना खनन का काम कर रहे हैं. उन्हें पारे के साथ सोना निकालने के खतरों के बारे में नहीं पता है. पारे से पाचन शक्ति को नुकसान हो सकता है. आंखें, त्वचा और किडनी को भी नुकसान हो सकता है.
तस्वीर: Elisabetta Zavoliसाइनाइड से कच्चे माल से सोना निकाला जा सकता है. साइनाइड जहरीला पदार्थ है. तावुन गांव के इस इलाके में कच्चे माल में साइनाइड मिलाया जा सकता है.
तस्वीर: Elisabetta Zavoliयह खनन केंद्र एक नहर के पास है जो समुद्र में गिरती है और जो मैंग्रोव पेड़ों के जंगलों से गुजरती है. पर्यावरण की सुरक्षा को लेकिन यहां कोई प्राथमिकता नहीं दी जाती. साइनाइड वाला पानी पूरे इलाके को नुकसान पहुंचाता है.
तस्वीर: Elisabetta Zavoliसोने के खनन के लिए इस्तेमाल होने वाले पदार्थों से लोगों के स्वास्थ्य को भी नुकसान हो सकता है. 12 साल की आगिस गिली गांव में साइनाइड प्लांट के पास खड़ी है. 2012 में आगिस के बालों में पारे की मात्रा संयुक्त राष्ट्र के मानकों से दुगुनी थी.
तस्वीर: Elisabetta Zavoli